स्वगेचिष तथ्य स्थारोधिण मपुके जन्म एवं ज्रित्रका वर्णन“ १५९
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दिये देती हूँ। आप हस राश्ससे पेरी रन्ना| शिषः 5४
कौजिये। पिनाकधारी भगवान् रद्र पहले यह
रहस्य स्वायम्भुत्न मनुको दिया था) मनुने वसिष्ठौ श,
तसिष्रजीने मेरे नान्ते और नानीन दहेजक्े रूपमें |
मेरे पित्ताकों दिया था। पैने बाल्यावस्थामें आपने
पिता हो इसकी शिक्षा पायी शौ । यह सम्पूर्ण
अस्त्रोंका हृदब है, जो नभस्त शज्जुओंका संहार
करनेब्राला है। आप इसे शप्र हौ ग्रहण करें और '
ब्राह्यणके शापसे प्रेरित होकर आये हुए इस
दुरत्माको मार डालें।
मार्कण्डेयजी कहते हैं--स्वरोन्त्रिपूने 'कहुत्
अच्छा' ऋहकर मनोरमाकों प्रार्थना स्वौकार
को। फिर मनगोरमाने आश्वमन करके रहस्य एवं
उपम॑ततार-विधिक्ते सहित वह सम्पूर्ण अस्प्रॉका प ‡
हदय उन्हें दे दिया। इसी बौचमें भयानक | युक्त आयुवँदके ज्ञाता रै । तन्होँने अथर्वनेदके
आकारवाला वह राक्षस जोर-जोरसे गर्जना | तेरहवें अधिकारतकका ज्ञान प्राप्त किया है । पै इस
करता हुआ शीक्षतापूर्वंक वहाँ आ पहुँचा। आते | मनोर्माका पिता और खज्जभारी विद्याधरराज
ही उसने मनोरयाकरो गकड लिया। वह वेचारो | नलनाभका पुत्र इन्दोवराक्ष हूँ। पूर्वकाले एक
बचाओ, बचाओ ' कहती हुई करुणामयी त्राणो | दिन मैंने ब्रह्ममित्र मुदिके पास जाकर प्रार्थना
चिलाप करने लगी। तन स्वरौचिष्को बड़ा | की--' भगवन्! मुझे सम्पूर्ण आयुर्वेद शास्त्रका
क्रोध हुआ और उसने अत्यन्त भयंकर प्रचण्ड | ज्ञान प्रदान कौजिये। अनेकों यार विनीत भावसे
आस्च् हाथपें ले उसे धनुभपर चढ़ाकर एकटक | प्रार्थना करमेपर भी जब उन्होंगे मुझे आयुरवेदको
नेत्रोंसे गक्षसको ओर देखा। यह देख वह | शिक्षा नहीं दो, तब पैंने दूसरे उपायका अवलम्बन
निशाचर भयर व्याकुल हो उठा और मनोरपाको | किया। जिस समय बे दूसरे विद्यार्थियोंकों आयुर्वेद
छोड़कर विनीते भावसे जोला-'ब्रोश्वर ! मुझपर | पठते, उस समय पं भी अदृश्य रहकर बह विद्या
प्रपत दोय, इस अस्त्रको शान्त कीजिये और
मेरी बत सुनिये। आज आपने परम वुद्धिमान्
ब्रह्मपित्रके दिये हुए अत्यन्त भयंकर शापे पेरः
उद्धार कर दिया। भहाभाग! आपसे बढ़कर
दूसश कोई पैर उपकारों नहीं है।'
स्वरोचिष्ते पूछा-भहात्सा भ्रहामित्र भूनिने
तरमै किस कारणसे और कैसा शाप दिया धा?
राक्षस बोला--बहांमित्र मुनि आठों अद्रोरे
प्षीखा करता। जब शिक्षा पुरी हो गयी, तब मुझे
ब्रा हर्ष हुआ और मैं कार-बार हसने लगा;
हँसनेकी आवाज सुनकर मुनि मुझे पहचान गये
और क्रोभसे गर्दन हिलाते हुए कठोर वनने
बोले--' खोटो ब्रद्धिवते भिद्माक्षर ! तूने राको
भाँति ऊद्ृश्य होकर मुझसे विद्याक्का अपहरण
क्रिया है और मेरी अश्नहेलना करके हँसी उड़ायों
' है, इसलिये मेरे चाप्ये वु राक्षत हो जा।' उनके