& श्री लिंग पुराण @ १६३
की प्रशंसा करते थे।
द्वापर में परस्पर मनुष्यों की बुद्धि में भेद हुए। इससे
सभी प्राणियों को काम, क्लेश, शरीर रोग तथा दन्द
तापो को सहना पड़ा वेद शास्त्रों में लुप्त होने से
वर्णशंकरता भी आ गई । काम, क्रोध आदि फैल गए।
द्वापर में व्यास जी ने चारों वेदों का विभाग किया । मन्न
ब्राह्मण के विन्यास से तथा स्वर वर्ण की विपरीतता से
ब्राह्मण कल्प, सूत्र, मन्न वचन के अनेक भेद पैदा किये।
इतिहास पुराण भी काल गौरव से अनेकता को प्राप्त
हुए । ब्राह्म, पद्म, वैष्णव, शौव, भागवत, भविष्य,
नारदीय, मार्कण्डेव, आग्नेय, लिंग, वाराह, वामन, कर्म,
मत्स्य, गरुड, स्कन्द्, ब्रह्माण्ड, पुराणों का संकलन हु ।
मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत याज्ञवल्क्य, उशना,
अशिरा, अंगिरा, यम, आपस्तम्ब, सम्वर्त, कात्यायन,
वृहस्पति, पराशर, व्यास, शंख, लिखित, दक्ष, गौतम,
शातादप, वशिष्ठ आदि ऋषियों के द्वारा स्मृतियां रची
गह । उस समय वृष्टि, मरण तथा व्याधि आदिक उपद्रव
होने लगे। बाणी, मन, शरीरो से नाना प्रकार के क्लेश
होने लगे तथा दुःख से छूटने का विचार करने लगे।
विचार और विराग दोषों के कारण उत्पन्न होने लगे।
द्वापर में ज्ञान से दुःख हानि का विचार करने लगे । इस
प्रकार रजोगुण तथा तमोगुण से युक्त युत्ति द्वापर में रही ।