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* अध्याय ७४ +

१५१

करे। आवाहनका अर्थ है सादर सम्मुखीकरण-- | विधिपूर्वक उनकी पूजा करे। पहले जलसे

इष्टदेवको अपने सामने उपस्थित करना। देवताकों

अर्चा विग्रहे बिठाना ही उसकी स्थापना है।

“प्रभो! मैं आपका हूँ'--ऐसा कहकर भगवान्‌से

निकरतम सम्बन्ध स्थापित करना ही ' संनिधान'

या ' संनिधापन' कहलाता है। जबतक पूजन-

सम्बन्धी कर्मकाण्ड चालू रहे, तबतक भगवानूकी

समीपताको अक्षुण्ण रखना ही ' निरोध" है और

अभक्तोके समक्ष जो शिवतत्त्वका अप्रकाशन या

संगोपन किया जाता है, उसीका नाम ' अवगुण्ठन '

दै । तदनन्तर सकलौकरण करके 'हृदबाब नमः",

"शिरसे स्वाहा", “शिखायै बषद्‌', * कवचाय

हुम्‌", "नेत्राभ्यां वौषट्‌ ', "अस्त्राय फट्‌'-इन छः

मन्त्रोंद्वारा हृदयादि अड्रोंकी अङ्गीके साथ एकता

स्थापित करें--यही ' अमृतीकरण ' है । चैतन्यशक्ति

भगवान्‌ शंकरका हदय है, आठ प्रकारका ऐश्वर्य

उनका सिर है, बशित्व उनकी शिखा है तथा

अभेद्य तेज भगवान्‌ महे श्वरका कवच दै । उनका

दुःसह प्रताप ही समस्त ॒विध्नोका निवारण

करनेवाला अस्त्र है । हदय आदिको पूर्वमे रखकर

क्रमशः "नमः ', ' स्वधा ', " स्वाहा ' ओर ' वौषट्‌ '

का क्रमशः उच्चारण करके पाद्य आदि निवेदन

केरे ॥ ५७ -६१ ३ ॥

पाद्यको आराध्यदेवके युगल चरणारविन्दे,

आचमनको मुखारविन्दे तथा अर्घ्य, दूर्वा, पुष्प

और अक्षतको इष्टदेवके मस्तकपर चढ़ाना चाहिये ।

इस प्रकार दस संस्कारोंसे परमेश्वर शिवका

संस्कार करके गन्ध-पुष्प आदि पश्च-उपचारोंसे

* ये पाँच मन्त्र इस प्रकार हैं--

देवविग्रहका अभ्युक्षण (अभिषेक) करके राई-

लोन आदिसे उबटन और मार्जन करना चाहिये।

तत्पश्चात्‌ अर्ध्यजलकी नदो और पुष्प आदिसे

अभिषेक करके गडडुओंमें रखे हुए जलके द्वारा

धीरे-धीरे भगवानकों नहलाबे। दूध, दही, घी,

मधु और शक्कर आदिको क्रमश: ईशान, तत्पुरुष,

अघोर, वामदेव और सद्योजात --इन पाँच* मत्त्रोंद्वार

अभिमन्त्रित करके उनके द्वारा बारी-बारीसे स्नान

करावे। उनको परस्पर मिलाकर पञ्चामृत बना ले

और उससे भगवानूको नहलावे। इससे भोग और

मोक्षकी प्राप्ति होती है। पूर्वोक्त दूध-दही आदियें

जल और धूप मिलाकर उन सबके द्वारा इष्ट

देवता-सम्बन्धी मूल-मन्त्रके उच्चारणपूर्वक भगवान्‌

शिवको स्नान करावे॥ ६२-६६ ॥

तदनन्तर जौके आटेसे चिकनाई मिटाकर

इच्छानुसार शीतल जलसे स्नान करावे। अपनी

शक्तिके अनुसार चन्दन, केसर आदिसे युक्त

जलद्वारा स्नान कराकर शुद्ध वस्त्रसे इष्टदेवके

श्रीविग्रहको अच्छी तरह पोंछे। उसके बाद अर्घ्य

निवेदन करे । देवताके ऊपर हाथ न घुमावे।

शिवलिङ्गके मस्तकभागको कभी पुष्यसे शून्य न

रखे । तत्पश्चात्‌ अन्यान्य उपचार समर्पित करे ।

(स्नानके पश्चात्‌ देवविग्रहको वस्त्र और यज्ञोपवीत

धारण कराकर) चन्दन-रोली आदिका अनुलेष

करे। फिर शिव-सम्बन्धी मन्त्र बोलकर पुष्प

अर्पण करते हुए पूजन करे । धूपके पात्रका अस्त्र-

मन्त्र (फट्‌) -से प्रोक्षण करके शिव-मन्त्रसे धूपद्वारा

(१) ॐ ईशानः सर्वविद्यातामी अर: सर्वभूतानां बरह्माधिपशिर्ब्ह्मणे ब्रह्य शिवो मेऽस्तु सदा शिवोम्‌ 9

(२) ॐ तत्पुरुषाय विश्हे महादेवाय धीमहि । तनो स्दरः प्रषोदयात्‌ ॥

(३) ॐ अोरिभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरत्रोभ्य: । सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः 9

(४) ॐ> कामदेवाय बमो ज्यष्टाव नमः: जेशय नमो रुद्राय नमः कम्लाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकालाय नमो बलाय नमो बल-

प्रमथनाय नमः जमो मनोन्मनाय

सर्वभूतदमनाय

(५) ॐ सद्चोजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय चै रमो कमः । भवे भवे नातिभवे भवस्व मां भवोदद्धवाय चमः ॥

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