अध्याय ९३-९४ ]
गन्धर्व, सिद्ध, यक्ष, किंनर और राक्षसोंकी स्ट्रियोंमें
भी कोई इतना सुन्दर नहीं है। विश्वकी अन्य
स्त्रियोंमें भी कहीं ऐसा रूप नहीं दीखता।
फिर नारदजी सहसा उठे और वैष्णवीदेबीको
प्रणामकर आकाश मार्गद्वारा समुद्रम स्थित
+ महिषासुरकी मन्त्रणा और देवासुर- संग्राम *
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सैकड़ों कन्याओंसे व्याप्त है । उनमें जो सबसे
प्रधान है वैसी देवताओं, दैत्यों और यक्षोके यहाँ
भी कोई सुन्दरी कन्या नहीं दिखायी देती।
कौतक कहूँ, मैंने उसकी जैसी सुन्दरता देखी है
तथा उसमें जितना सतीत्वका प्रभाव है, ऐसी
महिषासुरकी राजधानीमें पहुँच गये । उसने ब्रह्माजीके | कन्या समस्त ब्रह्माण्डे भी कभी कहीं नहीं
वरप्रसादसे सारी देव-सेनाको पराजिते कर दिया
था। महिषासुरने सभी लोके विचरण करनेवाले
नारदमुनिको आये देखकर बड़ी श्रद्धा-भक्तिसे
पूजा की।
नारदमुनिने उस असुरसे कहा--असुरेन्द्र!
सावधान होकर सुनो । विश्वमे रत्रके समान एक
कन्या प्रकट हुई है । तुमने तो वरदानके प्रभावसे
चर-अचर तीनों लोकॉको अपने बशमें कर
लिया है। दैत्य! मैं ब्रह्मलोकसे मन्दराचलपर
गया, वहाँ मैंने देवीकी बह पुरी देखी, जो
देखी । देवता, गन्धर्व, ऋषि, सिद्ध, चारण तथा
सब अन्य दैत्योके अधिपति भी उसी कन्याकौ
उपासना करते हँ । पर देवताओं और गन्धर्वोपर
जो विजय प्राप्त करनेमें समर्थ न हो, ऐसा कोई
भी व्यक्ति उस कन्याको जीतनेमें समर्थ नहीं है ।
वसुंधरे ! इस प्रकार कहकर नारद मुनि क्षणभर
वहाँ ठहरकर फिर महिषासुरसे आज्ञा लेकर तुरंत
वहसे प्रस्थित हो गये और वे जिधरसे अये थे,
उधर ही आकाशकौ ओर चले गये ।
[अध्याय ९१-९२]
(मित
महिषासुरकी मन्रणा ओर देवासुर संग्राम
भगवान् वराह बोले-- नारदजीके चले जानेपर
महिषासुर सदा चकितचित्तसे उसी कन्याका ध्यान
करने लगा। अतः उसे तनिक भी कहीं चैन न
था। अब उसने अपने मन्त्रिमण्डलको बुलाया।
उसके आठ मन्त्री थे, जो सभी शूरवीर, नीतिमान्
एवं बहुश्रुत थे। वे थे प्रस, विघस, शङ्कुकर्ण,
विभावसु, विद्युन्माली, सुमाली, पर्जन्य ओर क्रूर ।
वे महिषासुरके पास आकर बोले कि 'हम-
लोगोके लिये जो सेवाकार्यं हो, आप उसकी
तुरंत आज्ञा कीजिये ।' उनकी बात सुनकर दैत्योंका
शासक पराक्रमी महिषासुर बोला -' नारदजीके
कथनानुसार मैंने एक कन्याको पानके लिये
तुमलोगोंकों यहाँ बुलाया है । मन्त्रियो! देवर्षि
नारदने मुझे एक लड़कौको बात बतायी है; किंतु
देवताओंके स्वामी इन्द्रको जीते बिना उसकी
प्राप्ति सम्भव नहीं है। अब आप सब लोग
बिचारकर शीघ्र बतायें कि वह कन्या किस प्रकार
सुलभ होगी और देवता कैसे पराजित होगे ?'
महिषासुरके ऐसा कहनेपर सभी मन्त्री अपना-
अपना मत बतलाने लगे । प्रस बोला --' दैत्यवर !
आपसे नारदमुनिने जिस कन्याकौ बात कही है,
वह महान् सतौ है । उसका नाम ' वैष्णवी "देवी है ।
उस सुन्दर रूप धारण करनेवाली देवीको पराशक्ति
कहा जाता है। जो गुरुक पत्नी, राजाकी रानी तथा
सामन्त, मन्त्री या सेनापतिकी स्त्रियोंक अपहरणकी
इच्छा करता है, वह राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाता
है । प्रघसके इस प्रकार कहनेपर विघसने कहा--
"राजन्! उस देवीके विषयमे प्रघसने सत्य बात ही
बतलायी है । यदि सन लोगोंका एक मत हो जाय
और बुद्धि इस बातका समर्थन करे तौ सर्वप्रथम