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५.६ सामठेद-संहिता

॥पंचम: खण्ड: ॥

९२७.पिबा सोममिन्द्र मन्दतु त्वा यं ते सुषाव हर्यश्वाद्रिः ।

सोतुर्बाहुभ्यां सुयतो नार्वा ॥९॥

है अश्वपति इनद्रदेव ! याजक द्वारा अपने हाथों से, पत्थर के सहयोग से निकाला गया सोमरस, आपके

लिए अश्व-शक्ति जैसे गुणों से युक्त एवं आनन्दवर्द्धक सिद्ध हो । आप इसका पान करें ॥१ ॥

९२८.यस्ते मदो युज्यश्चारूरस्ति येन वृत्राणि हर्यश्व हंसि ।

स त्वामिन्द्र प्रभूवसो ममत्तु ॥२॥

घोड़ों के स्वामी, है समृद्धिशाली इन्द्रदेव ! जिस सोमरस के उत्साह द्वारा आप वृत्रासुर (दष्टो) का हनन करते

हैं, वह श्रेष्ठ रस आपको आनन्द प्रदान करे ॥२ ॥

९२९.बोधा सु मे मघवन्वाचमेमां यां ते वसिष्ठो अर्चति प्रशस्तिम्‌ ।

इमा ब्रह्म सधमादे जुषस्व ॥३॥

है रेश्वर्यशाली इनद्रदेव । विशिष्टं याजक (वसिष्ट) गुणगान करते हुए, जिस श्रेष्ठ वाणी से आपकी

अर्चना कर रहे हैं, उसे आप भली-भाँति विचारपूर्वक स्वीकार करें । यज्ञस्थल पर इस (ज्ञानरूपी) हविष्य को आप

ग्रहण करें ॥३ ॥

९३०.विश्वा: पृतना अभिभूतरं नरः सजूस्ततक्षुरिन्द्रं जजनुश्च राजसे ।

क्रत्वे वरे स्थेमन्यापुरीमुतो्रमोजिष्ठं तरसं तरस्विनम्‌ ॥४॥

युद्धस्थल पर अपने प्रचण्ड पराक्रम द्वारा शत्रुओं का विनाश कर, उन पर विजय प्राप्त करने वाले इन्धदेव

की, सभी स्तुति करते हैं । सत्कर्मों के बल पर उच्चपद प्राप्त करने वाले, त्वरित गति से कार्य सम्पन्न करने वाले,

इन्द्रदेव की महिमा का गान करके उनकी सामर्थ्य को बढ़ाते हैं ॥४ ॥

९३१.नेमिं नमन्ति चक्षसा मेषं विप्रा अभिस्वरे ।

सुदीतयो बो अद्गहो5पि कर्णे तरस्विनः समृक्वभिः ॥५ ॥

शक्तिशाली इन्द्रदेव की उत्तमवाणौ से स्तुति करने वाले ऋत्विज्‌ अति विनप्र हैं (इद्धदेश को देखते ही

पहले नमस्कार करते है) । किसी से द्रोह न करने वाले हे श्रेष्ठ तेजस्वी स्तोताओ ! आप भी इन्द्रदेव के कानों

को प्रिय लगने वाली ऋचाओं से उनकी स्तुति करो ॥५ ॥

९३२.समु रेभासो अस्वरनिन्द्र॑ सोमस्य पीतये ।

स्वः पतिर्यदी वृथे धृतव्रतो ह्योजसा समूतिभिः ॥६ ॥

सोमपायी व्रतशील आचरण वाले, देवलोक के स्वामी, बल एवं वैभवशाली इन्रदेव, याजको को महानता

प्रदान करना चाहते हैं । ऋत्विग्गण ऐसे इद्धदेव की विधिपूर्वक स्तुति करते है । ।६ ॥

९३३.यो राजा चर्षणीनां याता रथेभिरधिगुः ।

विश्वासां तरुता पृतनानां ज्येष्ठं यो वृत्रहा गृणे ॥७ ॥

जो रथ के द्वारा तीव्रगति से आगे जाने वाले हैं, शत्रुओं का विनाश कर उनसे अपने भक्तो की रक्षा कले

वाले हैं, उन प्रजा के स्वामी श्रेष्ठ इद्धदेव का हम गुणगान करते हैं ॥७ ॥

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