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लोभसे बेच देता है, बह “कुम्भीपाक' नरकमें | पास दक्षिणा, अत्रिके पास अनसूया, नलके पास

पचता है*। उस पापीकों नरकमें भोजनके | दमयन्ती, चन्द्रमाके पास रोहिणी, कामदेवके पास

स्थानपर कन्यके मल-मृत्र प्राप्त होते हैं। कौड़ों रति, कश्यपके पास अदिति, बसिष्ठके पास

और कौओंद्वारा उसका शरीर नोचा जाता है।| अरुन्धती, गौतमके पास अहल्या, कर्दमके पास

बहुत लम्बे समयतक वह कुम्भीपाक नरकमें | देवहूति, बृहस्पतिके पास तारा, मनुके पास

रहता है। फिर जगतूमें जन्म पाकर उसका | शतरूपा, अग्निके पास स्वाहा, इन्द्रके पास शची,

रोगग्रस्त रहना निश्चित है। गणेशके पास पुष्टि, स्कन्दके पास देवसेना तथा

तपको ही सर्वस्व माननेवाले नारद! इस | धर्मके पास साध्वी मूर्ति पत्नीरूपसे शोभा पाती है,

प्रकार कहकर देवी तुलसी चुप हो गयौ। | वैसे ही तुम भी इस शङ्घचूडकौ सौभाग्यवती

इतनेमें ब्रह्माजीने आकर कहा--शड्डूचूड़ ! | प्रिया बन जाओ। शङ्कुचूडकी मृत्युके पश्चात्‌ तुम

बज जार र] | पुनः गोलोकमें भगवान्‌ श्रीकृष्णके पास चली

¶ | जाओगी और फिर वैकुण्ठमें चतुर्भुज भगवान्‌

बिष्णुको प्राप्त करोगी ॥ '

भगवान्‌ नारायण कहते हैं--नारद ! शङङ्खचूड

\ | ओर तुलसीको इस प्रकार आशीर्वाद रूपमे आज्ञा

क| | देकर ब्रह्माजौ अपने लोके चले गये। तब

शङ्घुचूडने गान्धर्व-विवाहके अनुसार तुलसीको

अपनी पन्नौ बना लिया। उस समय स्वर्गमें

दुन्दुभियां बजने लगीं। आकाशसे पुष्प बरसने

तुम इस देवीके साथ क्या बातचीत कर रहे हो ?| लगे। तदनन्तर शङ्कुचूड अपने भवने जाकर

अब गान्धर्व -विवाहके नियमानुसार इसे पत्नीरूपसे तुलसीके साथ आनन्दपूर्वक रहने लगा।

स्वीकार कर लेना तुम्हारे लिये परम आवश्यक अपनी चिरसद्धिनी धर्मपत्नी परम सुन्दरौ

है; क्योकि तुम पुरुषोंमें रल् हो ओर यह साध्वी | तुलसीके साथ आनन्दमय जीवन विताते हुए

देवी भी कन्याओमिं रत्न समझी जाती है । इसके | राजाधिराज प्रतापौ शद्भुचूड़ने दीर्घकालतक राज्य

बाद ब्रह्माजीने तुलसीसे कहा--'पतिक्रते! तुम | किया । देवता, दानव, असुर, गन्धर्व, किन्नर और

ऐसे गुणी पतिकी क्या परीक्षा करती हो? देवता, | राक्षस- सभी शह्लुचूड़के शासनकालमें सदा शान्त

दानव और असुर-सवको कुचल डालनेकी | रहते थे। अधिकार छिन जानेके कारण देवताओंकी

इसमें शक्ति है। जिस प्रकार भगवान्‌ नारायणके स्थिति भिक्षुक-जैसी हो गयी थी। अतः वे सभी

पास लक्ष्मी, श्रौकृष्णके पास राधिका, मेरे पास | अत्यन्त उदास होकर ब्रह्माकी सभामें गये और

सावित्री, भगवान्‌ वाराहके पास पृथ्वी, यज्ञके अपनी स्थिति बतलाकर बार-बार अत्यन्त विलाप

* यः कन्यापालनं कृत्वा करोति विक्रयं यदि विपदा धनलोभेन कुम्भीपाकं स गच्छति॥

{प्रकृतिखण्ड १६। ९८)

† पश्चात्‌ प्राप्स्यसि गोविन्दं गोलोके पुनरेव च।चतुर्भुज॑ च वैकुण्ठे शङ्कचूटै मृते सति॥

{प्रकृतिखण्ड १६। ११४)

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