१५६ ] [ “मेल्स्ये पुराण
वाहिका और इसी प्रकारेस गोण और घथघर ये दो परम विशाल '"पुँण्य
शाली नद है । ये सभी अत्युत्तम तीर्थ स्थल दँ ।३३-३५।
कालिका च नदी पुण्या वितस्ता च नदी तथां]
एतानि पितृतीर्थानि णस्यन्ते स्नानदानयोः ।३६
श्राद्धमेतेषु यदहत्तन्तदनन्तफलं स्मताम् ।
द्रोणी वाटनदी धारासरित् क्षीरनदी तथा ।३७ `
गोकणं :जकणंञ्च तथा च पुरुषोत्तमः ।
द्वारका कृष्णतीथंञ्च तथाबु सरस्वती ।३८
नदी मणिमती नाम तथा च गिरिकर्णिका ।
घृतपापं तथा तीर्थ समुद्रो दक्षिणस्तथा ।३६
एतेषु पितृतीर्थेषु श्राद्धमानन्त्यमशु ते ।
तों ` मेघकरं नामं स्वयमेव जनार्दनः ।४० ` `
यत्र णाङ्घधरो विष्णुर्मेखलायामवस्थितः ।:
तथा मन्दोदरी तीथं तीर्थ चम्पा नदी शुभा ।४१
तथा साभलनाथश्च महालालनदी तथा । `
चक्रवाक चम्मंकोटं तथा जन्मेश्वरं महत् ।४२ `
कालिका नदी परम पुण्य शालिनी है तथा तितस्ता नाम धारिणी
नदी है | ये सब जो यहाँ तकः बताये गये है पित् तीथ कहलाते है और-
ये सभी स्नान तथा दान करने मे अधिकः प्रणस्त माने गये हैँ ।३६। इन -
उक्ततीर्थोमे जो भी कोई श्राद्ध दिया जाता है वह. अनन्त फलों का
प्रदान करने बाला हुआ करता है ऐसा ही बताया गया है । इनके भी
अतिरिक्त और भी महान् तीर्थ हैं--द्रोणी वाट नदी धारा सरित्-क्षीर
नदी-गौक्णं, ग जकर्णं, पुरुषोत्तम, द्वारका, कृष्णा तीर्थ, अनुद सरस्वतीः
मणिमती नदी, भिरिकभ्यिका--धृतपाप नाम वाला तीर्थ तथा ` दक्षिण
समुद्र ये सभी महा महिमा मय तीर्थ है, इनमें जो कि पितृतीर्थं हैं (जो
भी श्राद्ध दिया जाता है उसकी अनन्त फल शालित्ताहो जाया करती