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# शरणं वज सर्यशां मृत्युजयमुमापतिम्‌ #

[ संक्षि स्कन्दपुराण

जीका, रमय शिखरपर शङ्कर जीका तथा रजतमय शिलरपर

भगवान्‌ विष्णु अधिकार है।

मेरूपर्बतके चारों ओर चार विष्कम्भ पर्वत माने गये हैं !

पूर्वमें मन्दराचल, दक्षिणमें गन्धमादन, पश्चिमे सुपार्स्थ तथा

उत्तरमें कुमुद नामक पर्वत दै । मन्द्राचरू पर्वतपर कदम्बंका

विशाल वृक्ष है, ओ विशेषरूपसे जानने योग्य है। इसी प्रकार

गन्धमादन पर्वतपर जम्बू वृक्ष, सुपाए्व पर्वतपर अद्यत्य वृक्ष

तथा कुमुद प्बंतपर चट वृक्षकी खिति मानी गयी है। ये चारों

वृक्ष उन-उन पर्वर्तोकी ध्यजाके समान हैं । इनका दीं

विस्तार स्वारह-ग्यारई सौ योजन है । इनके चार वन हैं, ओ

पर्वतके विखरपर ही सवित हैं । पूवम नन्दन बन, दक्षिणमें

चैत्ररथ यनः, पश्चिमम पैशाच वन तथा उत्तरम सर्वतोभद्र

नामक वन टै । इन्हीं चार बनौंमें चार सरोवर भी टै । पूर्वमें

अरुणोद सरोयर, दक्षिणमें मान शरोर, पश्चिममें शीतोद चरो-

वर तथा उत्तरमँ महाहदद नामक सरोवर है। ये विष्कम्भ

पर्वत फ्चीस-पचीस हआर योजन ऊँचे र । इनकी चौड़ाई भी

हजार हजार योजन मानी गयी है । इनके सिवा वहां और मी

बहुत-से केसर-पर्व ' हैं। मेरुमिरिके दक्षिण दिशामें निषध,

देमकूट और हिमवान---ये तीन मर्यादा पव॑त हैं। इनकी लया

एक लल योजन और चौडाई दो हजार योजन है । मेदक

उत्तरमें भी तीन मर्यादा पर्वत टै नील, श्वेत और श््गवान्‌।

प्रेस्से पूर्व माल्यचान्‌ पर्वत है और मेरके पश्चिम गन्धमादन

पर्वत दै । ये सभी पर्वत जम्बूद्वीपमें चारों ओर कके हुए हैं ।

गन्धमादन पर्व॑तपर जो जम्बूका शृ है, उसके फल बढ़े-बड़े

हथियोंके खमान होते हैं। उस जम्बूक़े दी नामपर इस द्वीपको

जम्बूद्वीप कहा गया है ।

पूर्वकाल स्वापः युव नामसे प्रसिद्ध एक मनु हो गये हैं। वे

ही आदि मनु और प्रजापति के गये हैं । उनके दो पुत्र हुए,

पियत और उत्तानपाद | राजा उचानपादके पुत्र परम धर्मात्मा

भरुवजी हुए, जिन्होंने भक्ति-भायसे भगवान्‌ विष्णुकी आराधना

करके अविनाशी पद दो प्राप्न कर लिया | राजर्पि प्रियकतके दस

पुत्र हुए; जिनमेंसे तीन तो रुन्यास ग्रहण करके परते निकछ

गये और फरजझ परमात्माको प्रात हो गये । शेष सात द्वीपोर्मे

उन्होंने अपने सात पुश्रोंकों प्रतिष्ठित किया । राजा प्रियग्रतके

ज्येष्ठ पुत्र आग्नीअ जम्बूद्धीपके अधिपति हुए। उनके नौ पुत्र

१, जते कमरों कर्णिछके चारों ओर केसर होते रै, वैसे

मेरे सब ओर दो पर्वत हैं। वे फेसरके ही सकृ आन पढ़ते दें ।

अतः उन्हें केसर पंत कदा दे ।

जम्बूद्ीपके नौ खण्होंके स्वामी माने गये हैं। ये नवो खण्ड

आज भी उन्हींके नामसे विख्यात हैं | प्रत्येक खण्डका विस्तार एक

इजार योजन है । मेरुके चारों ओर और गन्धमादन तथा

माल्यवानके बीचमें सुवर्णमयी भूमिसे सुशोमित भू-भाग दै, उसे

इद्त कर्थं कहते ह । मास्यवान्‌ पर्यतसे छेकर समुद्रपर्यस्त

भद्राश्व॒ वर्धं कहल्यता हे । गन्धमादनते समुद्रतककी मूमिको

केतुमाल वर्ष कहा गया दै । शञ्गवान्‌ पव॑तसे आरम्भ करके

सागरतकके भूलण्डको कुरु वर्ष कहते है । शञ्चयान्‌ और

शेत पर्वतके यीचका भाग दिरण्यमय वर्ष कद्लाता है । नी

और श्वेत पर्यतके बीचमें रमय वर्ष हे । निषध और हेमकूट-

के बीच हरि वकी स्थिति है । हिमवान्‌ और देमकूटके मध्य-

का भूमाग किंपुरुष वर्ष माना गया है । हिमासयसे लेकर

उसके नामसे उस वर्षको शाकद्रीप कडा गया रै । राजा

प्रियगरतके पुत्र मेधातिथि उस द्वीपके अधिपति हैं । उनके

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