पूर्वभागे द्वार्विशोःश्याय:
तेषां ययाति पष्ठानाौ पहाक्लपराक्पः।
देवयानीमुशनसः सुतौ भार्यामवाप सः॥६॥
उन पचो में ययाति महाबलो और पराक्रमो था। उसने
शुक्राचार्य की पुत्री देवयानो को पत्नी रूप में प्राप्त किया।
शर्मिष्ठामामुरीक्षेव तनयां वृषपर्वणः।
यदुश्च तुर्वसुझैव देवयानी व्यजायता।७॥
उसने असुर वृषपर्वा कौ पुत्री शर्मिष्ठा को भी पन्नों बना
लिया। देवयानी ने यद् और तुर्बसु को जन्य दिया।
दृञनानुञ पूरुश्च शिष्ठा चाप्यजोजनत्।
सो5भ्यपिझ्नदतिक्रम्य ज्येष्ठं यदुमनिन्दितम्॥ ८॥
पुरमेव कनीवांसं पितुर्वचनपालकप्।
दिशि दक्षिणपूर्वस्यां तुर्वसुं पत्रपादिशत्॥। ९॥
शिष्ठा ने भी दुदु, अनु और पुरु को जन्म दिया। ययाति
ने अनिन्दित ज्येष्ट पुत्र यदु का उल्लंघन करके पिता के वचन
का पालन करने वाले कनिष्ठ पत्र पुर का हौ राज्याभिषेक
किया और दक्षिण-पूर्व दिशा का राज्य तुर्वसु को सौंपा।
दक्षिणापरयो राजा यदु श्रेष्ठ ययोजयत्।
प्रतीच्यामुत्तरायाज्ञ दुल्लुञ्ञानुमकल्पयत्॥ १०॥
राजा ने दक्षिण और पश्चिम दिशा के भाग में श्रेष्ठ पुत्र यदु
को नियुक्त किया। पश्चिम और उत्तर दिशा में दुद्यु और अनु
को प्रतिष्ठित किया।
तैरियं पृथिवी सर्वा धर्मतः एरिपालिता।
राजापि दारसहितो वनं प्राप पहायशाः॥ १९॥
वे राजा सम्पूर्ण पृथिवी का धर्मपूर्वक पालन करने लगे
और महायशस्वौ राजा ययाति पत्नी सहित वन को चले गये।
वदोरप्यभवन् पत्राः पञ्च देवसुतोषमा:।
सहस्रजित्तथा श्रेष्ठ: क्रोप्टनीलो जिनो रघु:॥ १२॥
यदु के भी देवपुत्र के समान पाँच पुत्र हुए। उनमें
सहस्नजित् श्रेष्ठ धा और शेष चार ये- क्रोष्ठ, नोल, जिन
और रघु।
सहस्रजित्सुतस्तदच्छतजित्राप पार्थिव:।
सुताः झतजितो5प्यासंस्क्रय: परपयार्िकाः॥ १३॥
हैहफ्श हैव राजा वेणुहयश्च यः।
हेहयस्यापवतपतरो धर्म इत्यभिविश्वुत:॥ १४॥
सहस्रजित् का पुत्र शतजित् नामक राजा था और शतजित्
के परम धार्मिक तीन पुत्र हुए-- हैहय, हय और राजा
बेणुहय। हैहय का पुत्र धर्म नाम से विख्यात हुआ।
तस्य पुत्रो5भवद्दिप्रा धर्मनेन्न: प्रतापवान्।
धमित्रस्य कीर्तिस्तु सञ्जितस्ततमुतोऽभवत्।। १५॥
विप्रवृन्द! धर्म का पुत्र प्रतापी धर्मनेत्र हुआ। धर्मनेत्र का
पुत्र कोति और उसका पुत्र सज्ञित हुआ।
महिष्यः सम्चितस्थाभूजडश्रेण्यस्तद-वब:।
भड़श्रेण्यस्य दायादो दुर्दमो नाप पार्थिव:॥ १६॥
सज्जित का पुत्र महिष्म और उसका पुत्र भद्धश्रेण्य हुआ।
धद्रश्रेण्य का पुत्र दुर्दम नामक राजा हुआ।
दुर{मस्य सुतो धीपानसको नाप वीर्यवान्।
अयकस्य तु दायादष्छत्वारो लोकसंपता:॥ १७॥
कृतवीर्यः कृताम्क्षि कृतवर्मा च तत्युत:।
कृतौजाश्च चतु्चों5भूत्कार्तवीर्यस्तवार्जुन:॥ १८॥
दुर्दम का पुत्र धोमान् तथा शक्तिमान् अन्धक हुआ।
अन्धक के चार लोकप्रसिद्ध पुत्र हुए- कृतवीर्य, कृताग्नि,
कृतवर्मा और चौथा कृतौना। कृतवीर्य का करर्तवीर्या्जुन
नामक पुत्र हुआ।
सहस्नवाहुर्ुतिमास्नर्वेदविदां वरः।
तस्य राषो5भवस्यृत्युर्जामदस्यों जनाईन:॥ १९॥
बह सहस्र भुजाओं से युक्त, धुतिमान् तथा धनुर्वदवेत्ताओं
में श्रेष्ठ था। जमदग्नि के पुत्र भगवान् परशुराम उसको मृत्यु
का कारण बने।
तस्य पृत्रशतान्यास-यक्ष तत्र महारधा:।
कृतास्त्रा वलिनः शूरा धर्मात्मानो मनस्विन:॥ २०॥
छर शूरसेनश्च कृष्णो शृष्णस्तयैव च।
जच्ध्वजश्च कलवान्नारायण्परो कृषः॥ २९॥
कार्तवीर्यार्जुन के सौ पुत्र हुए थे, जिनमें पाँच महारथो,
अख चलाने में निपुण, बली, वौर, धर्मात्मा ओर मनस्वी थे।
उनके नाम थे- शुर, शूरसेन, कृष्ण, धृष्ण ओर जयध्वज।
इनमें जयध्वज बलवान् तथा नारयण की भक्ति में परायण
धा।
शूरसेनादय: पूर्वे चत्वारः प्रथितौजस:।
सुद्रभक्ता महात्मानः पूजयति स्य शङ्कप्॥ २२॥
शूरसेन आदि प्रथम चार राजा प्रसिद्ध पराक्रमी, रुद्रभक्त
और महात्मा थे। वे शंकर कौ उपासना करते थे।
जयध्यज़स्तु मतिपाद्देवं नारायणं हरिम्। `
जगाम शरणं विष्णं दैवतं बर्षतत्पर:॥ २३॥
एवं धर्मपरायण जयध्वज भगवान् नारायण हरि
के शरणापत्र हो विष्णु देवता कौ उपासना करता था।