खतुयु गाख्यान वर्णनम् ] [ ११५
में प्रजाओं में भ्रणों की अर्थात् गमंस्य शिशुओं की हस्थाए' वैर के कारण
हुआ करेगी १ इसी कारण से कलियुग को प्राप्त करके लोगों की आय-बल
यिक्रम तथा रूप का सौन्दयं सभी नष्टो जाया करते हैं \७६।
तदा चाल्पेन कालेन सिद्धि सच्छत्ति मानवाः]
धन्या धर्म चरिष्यंति युगान्ते द्विजसत्तमा; 34७९१
शरुतिस्मृत्यु दितं धर्मं ये चरंत्यनसूयका: ।
ग्रेतायामाब्दिको घर्मो द्वापरे मासिकः स्मृतः ।५२
यथाशक्ति चरम्प्राश्षस्तदत्ना प्राप्नुयात्कलौ ।
एषा कलियुगावस्था संध्यांशं तु निबोधत ।\७३
युगे यृगेत्, हीयते च्रित्रिफादास्त् सिद्धयः ।
यु गस्वभावास्संध्यासु तिष्ठन्तीह् तु याहणः ॥७४
संध्यास्वभावाः स्वांणेषु पादशेया: प्रतिष्ठिताः ।
एवं संध्यांशके काले संप्राप्ते सु यु गांसिके ॥१ ७५
येषां शास्ता छासाधुनां शरृरणां निधनोत्थित: ।
गोज्रेण वं चन्द्रमसौ नाम्ना प्रमतिशच्यले ।।७६
माधवस्य तू संऽभेन पूर्वं स्वायंभुवेऽन्तरे ।
समा; स विशत्ति; पूर्णा: पर्येटन्वं वसु धराम् (७७
उस कलियुग में मनुष्य थोड़े समय में सिद्धि को प्राप्त कर लिया
करते हैं--इस यूग की विशेषता है । इस युग के अन्त में ते मानव और
श्रष्ठ द्विेज परम प्रन्य हैं जो धैर्य का समाचरण किया करते हैँ ।७१। जो
अनिन्दित मानव कर ति और स्पृत्तियों में कहे हुए धर्म का समाचरण कियत
करते हैं। ऐसा श्रम प्रेतायुग ये एक वर्ष में बलवान एचं पर्ण होता है बही'
धर्म द्वावर में एक मास में साख सफल होता है और बही धर्म इस कलियुग
में अपनी शक्ति के अनुसार सभाचरित होने पर एक ही दिल में प्राज्ञ अत
कर लिया करता है। यह कलियुग के समय की अश्रस्था हैं अब इस कलि
के सन्ध्य का अंग समझ नो ।७२-७३। युग-युग में सिद्धियाँ तीन-तीम धाद
क्षीण हुआ करती हैं जैधा श्री युग-स्त्रभाव से सन्याओं में यहाँ पर स्थित रहा
करती हैं जैसा भी युग का स्वभाव हौ ।अ४| उनके अपने अंशों में संध्या के