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* अध्याय ५५०

होना चाहिये। एकमुखलिड्रको बाहुरहित बनाना | जितने भी लिङ्गं हैं, उन सबका शिरोभाग

चाहिये। एकमुखलिड्रमें विस्तारके छठे अंशसे | त्रपुषाकार या कुकूकुटाण्डके समान गोलाकार

मुखका निर्गमन हितकर कहा गया है। मुखयुक्त | होना चाहिये॥ ४५--४८॥

इस ग्रकार आदि आर्तव महापुराणमें “लिङ्गमान एवं व्यक्ताव्यक्त लक्षण आदिका वर्णन

नामक चौवनवां अध्याय पूद्र हुआ॥५४॥

पचपनवां अध्याय

पिण्डिकाका लक्षण

श्रीभगवान्‌ हयग्रीव कहते हैं-- ब्रह्मन्‌! अब

मैं प्रतिमाओंकी पिण्डिकाका लक्षण बता रहा हूँ।

पिण्डिका लंबाईमें तो प्रतिपाके बराबर होनी

चाहिये ओर चौडाई उससे आधी। उसकी

ऊँचाई भी प्रतिमाकी लंबाईसे आधी हो और उस

अर्द्धभागके बराबर ही वह सुविस्तृत हो । अथवा

उसका विस्तार लंबाईके तृतीयांशके तुल्य हो ।

उसके एक तिहाई भागको लेकर मेखला बनावे।

पानी बहनेके लिये जो खात या गर्ते हो, उसका

माप भी मेखलाके ही तुल्य रहे । वह खात उत्तर

सूत्रपात करे ॥ १--५॥

प्रतिमाकी ऊँचाई पूर्ववत्‌ सोलह भागकी

संख्याके अनुसार करे। छः ओर दो अर्थात्‌ आठ

भार्गोको नीचेके आधे अड्भमें गतार्थं करे। इससे

ऊपरके तीन भागको लेकर कण्टका निर्माण करे ।

शेष भागोंको एक-एक करके प्रतिष्ठा, निर्गम तथा

पटिटका आदिमे विभाजित करे। यह सामान्य

प्रतिमाओंमें पिण्डिकाका लक्षण बताया गया

है। प्रासादके दारके दैर्घ्य-विस्तारके अनुसार

प्रतिमा-गृहका भी द्वार कहा गया है। प्रतिमाओंमें

दिशाकी ओर कुछ नीचा होना चाहिये। पिण्डिकाके | हाथी और व्याल (सर्प या व्याघ्र आदि)-की

विस्तारके एक चौथाई भागसे जलके निकलनेका

मार्ग (प्रणाल) बनाना चाहिये। मूल भागमें

उसका विस्तार मूलके ही बराबर हो, परंतु

आगे जाकर वह आधा हो जाय। पिण्डिकाके

विस्तारके एक तिहाई भागके अथवा पिण्डिकाके

आधे भागके बराबर वह जलमार्ग हो। उसकी

लंबाई प्रतिमाकी लंबाईके तुल्य ही बतायी गयी

है। अथवा प्रतिमा ही उसकी लंबाईके तुल्य

हो। इस बातकों अच्छी तरह समझकर उसका

मूर्तियोंसे युक्त तत्तत्‌-देवताविषयक शोभाकी रचना

करे॥ ६--८ ॥

श्रीहरिकी पिण्डिका भी सदा यथोचित शोभासे

सम्पन्न बनायी जानी चाहिये। सभी देवताओंकी

प्रतिमाओंके लिये वही मान बताया जाता है,

जो विष्णु-प्रतिमाके लिये कहा गया है तथा

सम्पूर्ण देवियोंक लिये भी वही मान बताया जाता

है, जो लक्ष्मीजीकी प्रतिमाके लिये कहा गया

है॥ ९-१०॥

इस प्रकार आदि आरतेय महापुराणमें “पिण्डिकाके लक्षणका वर्णन” नामक

प्रचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५५ #

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