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& श्री लिंग पुराण & १२३

शिवजी ने तीन प्रकार का आचमन कहा है, जो ब्राह्मणों

को बड़ा हितकारी है। वरूण स्नान (जल के द्वारा)

दूसरा उससे उत्तम है वह है भस्म से, तीसरा स्नान मन्त्र

के द्वारा हो जाता है। जो पुरुष दुष्ट भाव वाले हैं उनकी

शुद्धि जल या भस्म से नहीं होती है । अतः शुद्ध भाव

वाला ही मनुष्य पवित्र होता है ।

सब नदी तालाब आदि में लय पर्यन्त जो नित्य स्नान

है वह दुष्ट भाव वाला नहीं होता है। मनुष्यो का कमल

रूपी चित्त तभी खिलेगा जब ज्ञान रूपी सूर्य की आभा

से पवित्र हो जायेगा । मिट्टी, गोबर, तिल, पुष्य, भस्म,

कुशा, तीर्थं के लिए ले जानी चाहिये । हाथ पैर धोकर

आचमन करके देह के मल को दूर कर किनारे पर रखे

उन द्रव्यो से स्नान करे।

“उद्धतासिवरहेन ' आदि मन्त्र को बोलकर मिट्टी

से स्नान करे। ' गन्ध द्वारा' मन्त्र से गोबर लगाकर स्नान

करे।

मलिन वस्त्र त्याग कर शुभ वस्त्र धारण करे, तब

तीन बार आचमन करे । सब पापों से शुद्ध होने के लिए

वरुण देव का आह्वान करे, मानसिक पूजन करके ध्यान

करे। आचमन तीन बार करके तीर्थ में गोता लगावे तथा

शिव का स्मरण कर जल को अभिमन्त्रित करे, फिर

गोता लगाकर अघमर्षण मन्त्र का जप करे। उसी जल में

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