२७४
अर्का घना विश्च ईशा नवपञ्चदशांशकाः ।
कालांशास्तैरूनयुक्ते रवौ हास्तोदयौ विधोः ॥ १६३॥
दृष्टा ह्यादौ खेटविम्बं दृगौच्यं लप्वमेक्षय च।
तल्लप्बपातविम्बान्तरदगौच्याप्तरविप्रभा ॥ १६४॥
( ग्रहोके उदयास्तकालांश ~ ) १२, १७, १३,
११, ९, १५ ये क्रमसे चन्द्र, मङ्गल, बुध, गुरु, शुक्र
और शनिके कालांश हैं | अपने-अपने कालांशतुल्य
सूर्यसे पीछे ग्रह होते हैं तो अस्त और कालांशतुल्य
सूर्यसे आगे होते हैं तो उदय होता है। (अर्थात् ग्रह
अपने-अपने कालांशके भीतर सूर्यसे पीछे या आगे
जबतक रहते हैं, तबतक सूर्य सान्निध्यवश अस्त
(अदृश्य) रहते हैं) ॥ १६३॥
( ग्रहोंके प्रतिविम्बद्धारा छायासाधन-- ) सम
भूमिमें रखे हुए दर्पण आदियमें ग्रहोंके प्रतिविम्बको
देखकर दृष्टिस्थानसे भूमिपर्यन्त लम्ब पातकर
दृष्टिको ऊँचाईका मान समझे। लम्बमूल और
संक्षि नारदपुराण
प्रतिविम्बके अन्तर-प्रमाणको दृष्टिकी ऊँचाईसे भाग
देकर लब्धिको १२ से गुणा करनेपर उस समय उस
ग्रहकी छायाका प्रमाण होता है! ॥ १६४॥
अस्ते साक्यवा ज्ञेया गतैष्यास्तिथयो बुधै:।
शरेन्द्वाप्तोत्तराशा सा संस्कृतार्कापिपैर्विधोः ॥ १६५॥
षोडशाश्रतिधिर्हीना स्वघ्रतिथ्याश्चषभाहता ।
व्यस्तेषु क्रान्तिभागैश्ष द्विप्नतिथ्या हुता स्फुटम्॥ १६६॥
संस्कारदिक्र बलनमङ्लाद्यं॑प्रजायते।
स्वेष्वंशोनाः सितं तिथ्यो वलनाशोत्रतं विधोः ॥ १६७॥
शृ ्गमन्यन्रतं वाच्यं वलनाङ्गुललेखनात्।
( चन्द्रशुद्ञेन्नति-ज्ञान-- ) सूर्यास्त-समयमें
सावयव गत ओर एष्य तिथिका साधन करे । उस
सावयव तिथिको १६ से गुणा करके उसमें तिथिके
वर्गको घटाकर रोषको स्वदेशीय पलभासे गुणा करे ।
गुणनफलमें १५ से भाग देकर लब्धि (फल)-कौ
दिशा उत्तर समझे। उसमें सूर्यको क्रान्तिका यथोक्त
को ६ अंश १८ कलाम घटानेपर ५। १३। ४९ हुआ। इससे उपर्युक्त गुणनफल ६४। १६ में भाग देनेपर लब्थि १२। १८
सुख ने हुई। पिन त होनेके काएण इसकी दिशा दक्षिण हु और सजि अहत ज्ञ ९।५२ यह उत्तर
है; भा: जज दिला रपत भक २। २६ अक स्पष्ट शर हुआ। इसे स्पष्ट शरके द्वार चद्रप्रहणकी
भोति प्रसमान आदि साधन केके लिये सूर्यस्पष्ट गति ६९। १५ को २ से गुणा कर गुणनफ्लमें ११ का भाग देनेपर सूर्यविम्ब १६।
८ हुआ और चद्धस्पष्ट गति ७२६। ३० में ७४ का भाग देनेपर चद्रविष्वं ९। ४९ हुआ। इन दोनोंका योगका आधा किया तो १०।
२८ हुआ, उसमें स्पष्ट शर २। २६ को घटानेपर शेष ८। २ यह ग्रसमान हुआ।
अब स्थिति-घटी-साधत करके लिये सूर्य और विष्बयोगार्ध १०।२८ में स्पष्ट शर २। २६ को जोड़नेपर योगफल
१२। ५४ हुआ। इसको १० से गुणा करनेपर गुणनफ़ल १२९। » को प्रासमान ८। २ से गुणा किया तो गुणनफल १०३६। १८
हुआ। इसके मूल ३२। १६ ये इसोके पष्ठंश ५। २२ को घटानेपर शेष २६। ४९ में चद्भविम्ब ९। ४९ का भाग देनेपर लब्धि घट्यादि
२। ४४ स्थिति-षरी हुई।
अब स्थिति-घटो २। ४४ को ६ से गुणा करके गुणनफल अंशादि १६। २४ को वित्रिभ लप्र ८। २। ४६। १७ में घटनेसे
७। १६। २२। १७ स्पर्शकालिक पितरि हुआ। तथा दर्शान््तकालकों गति ६१। १५ को स्थिति-घटी २। ४४ द्वा गुणा करके गुननफल
१६७ में ६० का भाग देनेपर लब्धि २। ४० को दर्शत्तकालिक सूर्य ८। ५। २६। २५ में घटनेपर स्पर्शकाॉलिक सूर्य ८। ५। २३। ३८
हुआ। इन स्पर्शकालिक सूर्य और वित्रिभ लप्रके द्वारा पूर्वदर्शित विधिसे स्पर्श्ालिक ऋणलम्बत १। १७ घटयादि हुआ।
इसी प्रकार स्थिति-घटी २। ४४ को ६ से गुणा करनेपर अंशादि फल १६। २४ को विद्रिध लग्र ८। २। ४६। १७ में जोड़नेसे
मोक्षकालिक वित्रिभ लग्र ८। १९। १०। १७ हुआ। एवं सूर्याति ६१। १५ को स्थिति-घटो २। ४४ से गुणा कर गुणनफल १६७
में ६० का भाग देनेपर भागफल २। ४७ को सूर्य ८। ५। २६। २५ पँ जोड़नेसे मोक्षकालिक स्पष्ट सूर्य ८। ५। २९। २२ हुआ।
इन दोन (विव्रिध और सूर्य) के दाग पूर्वकथित विधिसे मोक्षकालिक धनलम्बन (सूर्यसे वित्रिभ अधिक होनेके कारण) घट्यादि
०। ५६ हुआ।
अब द््तकस्त १३।४ में स्थिति - घटौ २। ४४ को घटनेसे १०। २० मध्यमस्पर्शकाल हुआ, इसमें स्पर्शकर्यलिक ऋणलम्बन
१। ६७ को घटानेसे ९। ३ स्पष्ट (भूज़स्थानोय) स्पर्शकाल हुआ तथा दर्शान्तकालमें स्थिति-घटो जोड़नेपर मध्यम दर्शान््तकाल
१५। ४८ हुआ। एवं इसमें मोक्षकालिक धनलम्बन ०। ८६ जोड़नेपर १६। ४४ स्पष्ट मोक्षकाल हुआ।
१, उदाहरण-यदि समभूमिसे लम्बमात (दृष्टिकों ऊँचाई) ७२ और द्रष्टा तथा प्रतिविष्वका अन्तर
भूमिमान ९६ अङ्गुल है, तो उक्त रीतिके अनुसार भूमिमान ९६ को दृष्टिको ७२ से भाग देकर १२ से गुणा करनेपर
"५२ «२६ अर्गल छायाप्रमाण हुआ।