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* मुनियोंका भगवानूके अवतारके सम्बन्धमें प्रश्न और श्रीव्यासजीद्वारा उसका उत्तर + २७३

इस भवसागरसे मेरा उद्धार कीजिये। सुरेश्वर! मैं समस्त कामनाओंका त्याग करके स्वस्थचित्त हो

आपकी कृपासे आपके ही सनातन परम पदको गये। समस्त इन्द्रियॉंकों वशमें करके ममता और

प्राप्त करना चाहता हूँ, जहाँ जानेसे फिर इस | अहंकारसे रहित हो एकाग्रचित्तसे भगवान्‌

संसारमें नहीं आना पड़ता। | पुरुषोत्तमका ध्यान करने लगे। भगबानूके निर्लेप,

श्रीभगवान्‌ बोले--मुनिश्रेष्ठ तुम मेरे भक्त | निर्गुण, शान्त और सन्मात्र स्वरूपका चिन्तन

हो। सदा मेरी ही आराधना करते रहो । तुम्हें मेरे | करते हुए उन्होने दुर्लभ मोक्ष प्राप्त कर लिया। जो

प्रसादसे अभीष्ट मोक्षपदकी प्राप्ति होगी । विप्रवर ! | महात्मा कण्डुकी कथाको पढ़ता अथवा सुनता है,

मेरे भक्त क्षत्रिय, वैश्य, स्त्री, शुद्र॒ तथा अन्त्यज | वह सब पापोंसे मुक्त हो स्वर्गलोके जाता है।

भी परम सिद्धिको प्राप्त होते हैं; फिर तुम-जैसे | मुनिवरो! इस प्रकार मैंने इस कर्मभूमि तथा

तपोनिष्ठ ब्राह्मणकी तो बात ही क्या है! चाण्डाल | मोक्षदायक पुरुषोत्तमकषेत्रका वर्णन किया, जहाँ

भी यदि उत्तम श्रद्धासे युक्त एवं मेरा भक्त हो तो | साक्षात्‌ भगवान्‌ पुरुषोत्तम निवास करते हैं। जो

उसे अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है; फिर औरोंकी तो | मनुष्य संसारजनित दुःखोंका नाश और मोक्ष

चर्चा ही क्‍या है।* प्रदान करनेवाले वरदायक भगवान्‌ श्रीपुरुषोत्तमका

व्यासजी कहते हैं-यों कहकर भक्तवत्सल | भक्तिपूर्वक दर्शन, स्तवन और ध्यान करते हैं, वे

भगवान्‌ विष्णु वही अन्तर्धान हो गये। उनके चले | समस्त दोषोंसे मुक्त हो भगवान्‌के अविनाशी

जानेपर मुनिवर कण्डु बहुत प्रसन्न हुए और | धाममें जाते हैं।

(ज

मुनियोँका भगवान्‌के अवतारके सम्बन्धमें प्रश्न और

श्रीव्यासजीद्रारा उसका उत्तर

मुनि बोले--पुरुषश्रेष्ठ व्यासजी ! आपने भारतवर्ष इसमे अधिकतर दुःख ही भग है। यह पानीके

तथा पुरुषोत्तमक्षेत्रके अद्भुत गुणोंका वर्णन किया।, बुलबुलेकी भाँति अत्यन्त चडल-क्षणभ्जुर है।

उस क्षेत्रके उत्तम माहात्म्यकों सुनकर हमें बड़ी | इसकी भयंकरता इतनी बढ़ी हुई है कि उसका

प्रसन्नता हुई है। हमारे मनमें बहुत दिनोंसे एक | विचार आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे

संदेह है। उसका निवारण करनेवाला आपके | संसारमें उन्हें जन्म ग्रहण करनेकी क्या आवश्यकता

सिवा दूसरा कोई नहीं है। हम भूतलपर श्रीकृष्ण, | थी? इस भूतलपर अवतीर्णं हो उन्होंने जो-जो

बलदेव और सुभद्राके अवतारका रहस्य सुनना | लीलाएँ कीं, उनका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।

चाहते हैं। वीरवर श्रीकृष्ण ओर बलभद्र किसलिये | उनका सम्पूर्ण चरित्र अद्भुत ओर अलौकिक है।

अवतीर्णं हुए थे? वे वसुदेवके पुत्र होकर नन्दके | भगवान्‌ सम्पूर्ण देबताओंके स्वामी एवं सुरश्रेष्ठ हैं

घरमे क्यो रहे? यह मर्त्यलोक सर्वथा निःसार है । । और पृथ्वीको उत्पन्न करनेवाले तथा अविनाशी

* मद्धक्तोः क्षत्रिया वैश्याः स्त्रिय: शुद्रान्यजातिजा:। प्राप्रुवन्ति पर सिद्धिं कि पुनस्त्वं द्विजोचम ॥

श्चपाकोऽपि च मद्धक्तः सम्यक्‌ श्रद्धासपन्वितः | प्राप्रोत्वथिपतां सिद्धिमन्येषां तत्र का कथा॥

(१७८ । ६८५-१८६)

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