६४ ] [मत्स्य पुराण
सम्प्रधपित करते हुए उसने इस मही पर भ्रमण किया था ।४३। प्रताप
वाले उसने अश्वे के द्वारा समाक्ृष्ट होकर घूमते हुए भगवान् शम्भू के
` उपवन में वह चले गये थे । बह बन कल्पद्र म और लताओं से. समा-
कीर्ण था और महत् वन का नाग शरवण शा।४४। जिस अवन में
सोमाद्ध को गेखरमें धारण करने वाले भगवान् शम्भू देवेश्वर उमादेवी
के साथ रमण किया करते हैं पहिले ही समय में वहाँ पर शरबण में
समय (संकेत) कर दिया गया था ।४५। पुरुष संज्ञा वाला कोई भी
जीव यदि तेरे इस वनमें समागत होगा तो वह इस दण योजनके मंडल
: में तुरन्त ही स्त्रीत्व को प्राप्त हो जायगा चाहे कोई भी हो सभी के
लिए यह प्रभाव अवश्य होगा ।४६। यह राजा टल इस समय का ज्ञान
ही नहीं रखता था । यह भूल तथा अज्ञानवण उस शरवण नामक वन
में पहुँच गया" था ओर उसमें प्रवेश करते ही यह स्त्रीत्व को प्राप्त हो
गया था तथा जो इसकी सवारी का अश्व था वह भी वडवा (घोड़ी)
हो गया था । हे नृप ! जब समस्त पुरुषत्व.के लक्षण हत -हो गये थे
तो इस राजाको बहुत ही अधिक विस्मय हुआ था जब कि उसने अपने
आपको एक स्त्रीके रूपमें पाया था । अब तो वह इल इला नाम वाली
स्त्री हो गई थी जिसके पीत--उन्नत और परम धनस्तन थे ।४७-४८।
उसी बन में श्रमण करते हुए उस इला भामिनी ने विचार किया था
कि ऐसी दणा में मेरा यहाँ कौन तो पिता है अथवा कौन भाई है और
कौन मेरी माता ।४६।
११-सू्यवंश वर्णन
अथान्गिषन्तो राजानं श्रातरस्तस्यमानव।[: ।
इक्ष्वाकुप्रमुखाजग्मुस्तदाश रवणान्तिकम्् । १
ततस्तेदहशु: सर्गे: बडवामग्रत: स्थिताम् ।
-रत्नपर्याण किरणदीप्तकायामनत्तमाम् ।२