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६० ] [ ब्रह्माण्डं पुराण

इन्द्रद्वीपः कशेरूसांस्ताम्रवर्णों ग॒सस्तिभावद्‌ ।

नागद्वीपस्तथा सौम्यो गांधवेस्त्वथ वारुणः ।&

अयं तु नवमस्तेषां द्वीप: सागरसंवृत: ।

योजनानां सहस्र तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरात्‌ ।\१०

आयतो ह्याकुमार्थ्या वे चागंगाप्रवाच्च वे ।

तिर्यगत्तरविस्तीणेः सहसूणि नवैव तु ।{११

द्वीपो ह्य.पनिविष्टोऽयं स्लेच्छरतेषु सर्वेशः ।

पूवे किराता यस्यति पश्चिमे ग्रवना: स्मृताः ॥१२

ब्राह्मणाः क्षत्रिया कश्या मध्ये शूद्राश्च भागशः)

इज्यायुधवरणिज्याशिवेत्तेयंतो व्यवस्थिताः १३

तेषां संव्यवहा रोऽत्र बत्तते वे परस्परम्‌ ।

धर्मार्थंका मसंयुक्तो वर्णानां त्‌, स्वकम॑ंसु ।।१४

इस भारत वं के नौ भेद हैं उनको आप लोग भली-भांति समझ

लीजिए ? वे सब समुद्र से अन्तरित हैं--ऐसे ही जान लेने चाहिए ओर

परस्पर में वे सब अगम्य हैं अर्थात्‌ अज्ञेय एवं गमन न करने के योग्य है ।८ा

उनके नाम - ये .. हैं--इन्द्रद्वीप--कशेख्मानू---ताम्रवर्ण-- गभस्तिमाबु-नाग

द्वीप--सौस्य--गन्धवें--वारुण ।€। यहः नौवाँ उन द्वीपों में है जो सागर से

संवृत है ।ल्‍:यह द्वीप दक्षिण-उत्तर से एक सहसु योजन है ।१०। भागोरथी

गङ्गा के उद्ग़म स्थान से कन्या कुमारी तक यह आयत है । नौ सहसु

योजन तिरछा अत्तर की ओर विस्तीणं है ।११। यह दवीप अन्तो में सभी

ओर स्लेच्छों द्वारा उपनिविष्ट है ' इसके अन्त मेँ पूवं में किरात रहा करते

हैं और पश्चिम में यवन लोग वाले बताये गये हैं | १२। मध्य के भागों में

ब्राह्मण--क्षज्रिय---वे श्य ओर शूद्र. निवास करते हैं। जो य्ञा्ंन--शस्व--

प्रयोग--वाणिज्य से अभिवर्त्तन करते हुए व्यवस्थित हैं ।१३। यहा पर इन

चारों वर्णों में परस्पर में समात्तीम व्यवहार रहा करता है.। अपसे वर्ण के

अनुसार जो इनके अपने कर्म हैं उन्हीं में यह व्यवहार धर्म अर्थ और काम

से समन्वित होता है ।१४।

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