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श्रीनरसिंहपुरण

[ अध्याप २७

नहुषस्यापि पितृमत्यां ययाति; ॥ ७॥ यस्य बंशजा

युष्णय:। ययातेः शर्पिष्ठायां पृरुरभवत्‌॥ ८ ॥

पूरोर्वशदायां संयातिः पुत्रोऽभवत्‌। यस्य पृथिव्यां

सम्यन्ना: सर्वे कामाः ॥ ९॥

संयातेर्भानुदत्तायां सार्वभौमः। स तु सवां पृथिवीं

धर्पेण परिपालयत्ररसिंहं भगवन्तमाराध्य यागदानैः

सिद्धिमाप॥ १० ॥ तस्य सार्वभौमस्य वैदेह्यां भोजः।

यस्य वंशे पुरा देवासुरसंग्रामे विष्णुचक्रहतः

कालनेमिः कंसो भूत्वा वृष्णिवंशजेन वासुदेवेन

घातितो निधनं गतः ॥ ११॥

तस्य भोजस्य कलिङ्गायां दुष्यन्तः । स तु नरसिंहं

भगवन्तमाराध्य तत्प्रसादाक्गिष्कण्टकं राज्यं धर्मेण

कृत्या दिवं प्रा्रवान्‌। दुष्यन्तस्य शकुन्तलायां

भरतः। स तु धर्मेण राज्यं कुर्वन्‌ क्रतुभिर्भूरि-

दश्चिणैः सर्वदेवतामयं भगवन्तपाराध्य

निवृत्ताधिकारो ब्रह्मध्यानपरो वैष्णवे परे ज्योतिषि

लयमवाप॥ १२॥

भरतस्य आनन्दायापजमीदः । स च परमवैष्णवो

नरसिंहमाराध्य जातपुत्रो धर्पेण कृतराज्यो

विच्णुपुरमारूरोह ॥ १३॥ अजमीढस्य सुदेव्यां वृष्णिः

पुतरोऽभवत्‌। सोऽपि बहुवर्षं धर्मेण राज्यं कुर्वन्‌

दुष्टनिग्रहं शिष्टपरिपालनं सप्द्वीपां पृथ्वी वशे चक्रे ।

वृष्णोरुग्रसेनायां प्रत्यञ्चः पुत्रो बभूव ॥ १४॥ सोऽपि

धरेण पेदिनीं पालयन्‌ प्रतिसंवत्सरं ज्योतिष्टोमं

नहुषके भी पितृमततौके गभसि ययाति हुए, जिनके

वंशा यूष्ण कहलाते ई । ययातिके शर्मिष्ठाके गर्भसे

पुरु हुए। पूरुके वंशदासे संयाति नामक पुत्र छुआ,

जिसको इस पृथ्वौपर सभी तरहके मनोवाज्छिते भोग

प्रात थे ॥ १--९ #

संयातिसे भानुदत्ताके गर्भसे सार्वभौय नामक पुत्र

हुआ। उसने सम्यूर्ण पृथ्वीका धर्पूर्वक् पालन करते हुए

यज्-दान आदिके द्वारा भगवान्‌ नृसिंहकौ आराधना

करके सिद्धि (मुक्ति) प्राप्न कर लौ । उपर्युक्त सा्बभौपसे

वैदेहीके गर्भसे भोज उत्पन्न हुआ, जिसके वंशमें कालनेमि

नामक राक्षस, जो पहले देवासुर-संग्राममें भगवान्‌ विष्णुके

चक्रसे मारा गया था, कंसके रूपमें उत्प हुओ और

यृष्णिवंशी वसुदेवनन्दन भगवान्‌ श्रीकृष्णके हाथसे मारा

जाकर मृत्युको प्राप्त हुआ॥ १०-११॥

भोजको पन्नो कशिग्ञासे दुष्बन्तका जन्म हुआ। वह

भगवान्‌ नृसिंहकौ आराधना करके उनको प्रसप्नतासे

धर्मपूर्वक निष्कण्टक राज्य भोगकर जीवनके अन्‍्तमें

स्वर्गको प्रात्त हुआ। दुष्यन्तको शकुन्तलाके गर्भसे भर्व

नापक पुत्र प्राप्त हुआ। यह धर्पूर्वक राज्य करता हुआ

प्रचुर दक्षिणावाले यज्ञॉंसे सर्वदेवमय भगवान्‌ विष्णुकी

आराधना कर्के कमांथिकारसे नियृत्त एवं ब्रह्मध्यान-

परायण हो परम ज़्योतिर्मय सैष्णवधाममें लोन हो

गया॥ १२॥

भरतके उसकौ पली आतनन्‍्दाके गर्भसे अजमीद

नामक पुत्र हुआ। यह परम वैष्णव था। राजा अजमीढ

भगवान्‌ नृसिंहकी आराधनासे पुत्रवान्‌ होकर धर्मपूर्षवक

राज्य करनेके पश्यात्‌ श्रीक्रिष्णुधामको प्रात हुए।

अजमीढके सुदेवोके गर्भसे वृष्णि नामक पुत्र हुआ। यह

भी बहुत यर्षोतक धर्मपूर्वक राज्य करता रहा। दुष्टोंका

दमन और सज्जनोंका पालन करते हुए उसने सातों

द्रीपॉसे युक्त पृथ्वीकों अपने बशमें कर लिया था।

यृष्णिके उग्रसेनाके गर्भसे प्रत्यक्ष नामक पुत्र हुआ। वह

भी धर्मपूर्वक पृथ्वीका पालन करता था। उसने प्रतिवर्ष

ज्योतिष्टोसयागका अनुष्ठाने करते हुए आयुका अन्त होनेपर

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