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अगदिन्याख्यान. |] [ =€

फिर अन्य साधारण जन्तुं की तो कथा हो क्‍या है ।१६। यह -मैंने

कृकवक्कु दे दिया है जो कृमियो को खा जायगा । है वत्स! यह क्लेदन

और रुधिर का भी अपनयन करेगा ।१७। इस प्रकार से जत्र उससे

कहां गया था तो उस महान्‌ यजस्वी यमने तीज़ तपश्चर्या का तपन

किया शा ओर वह तपस्या भी फल-पत्र और बायु का ही केवल अशन

करके गोकर्णं नामक तीर्थ में की थोी।१८। अयुतायुत अशन दशों हज़ार

वर्ष पर्य्यन्त भगवान्‌ महादेव का समाराधघन किया था । तब तो इस

उत्युग्न तप से महादेव परम सन्नुष्टहो गये थे और उनी समय में जटा

धारी प्रभु ने बरदान दे दिये थे ।१६। महादेव ने कहा था लोकपाल-

कता छो जायगी और पित लोक में नृपालय होगा । तुम्हारा कर्तव्य

कर्म यही होगा कि सम्पूणं जगतका धर्म और अधमं का आप परीक्षण

क्रिया करेंगे कि कौन कितना धर्मनिष्ठ है और कौन घोर पापात्मा है

आपके द्वारा यह निर्णय होने पर ही वह दुःख दण्ड तथा सुख स्वगं.

का उपभोग किया करो ।२९) है अनघ ! इस प्रकार से शूलपाणि के

प्रसाद से बह बम लोकपाल हो गया था तथा पितृगणक्र अधिपति होने

का पद तथा धर्मा-श्र्म का निर्णायक वन गया थ।।२१।

विवस्वातथ तदुज्ञात्वा संज्ञायाः कम्मंच्रष्टितम्‌ ।

स्वष्टुः समीपमगमदाचचक्षे चरौषवान्‌ ।२२

तमुवाच ततस्त्वष्टासान्त्वपवं द्विजोत्तमाः ।

तवासहन्ती भगवन्‌ ! महस्तीत्र तमोनुदम्‌ ।२३

वडवारूपमास्थाय मत्‌सकाणमिहागता ।

निवारिता मया सातु त्वया चैव दिवाकर ।२४

यस्मादविज्ञाततया मत्‌ संकाशमिहायता । -

तस्मान्मदीयं भवनं प्रवेष्टु न त्वमहंसि ।२५

एबमुक्ता जगामाथ मरुदेणमनिन्दिता ।

वडवा खूवमरृपस्थाय भूतले सम्प्रतिष्ठिता ।२६

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