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कं ख्रहाखेण्ड । नि ८९

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लक्ष कोटि मनोहर आश्रम हैं, जिनसे वह अभीष्ट | बनमालासे वे विभूषित हैं। त्रिभंगी छबिसे युक्त

धाम अत्यन्त दीप्तिमान्‌ एवं श्रीसम्पन्न दिखायी देता | और मणिमाणिक्यसे अलंकृत हैं। मोरपंखका

है। उन सबके मध्यभागमें एक परम मनोहर आश्रम | मुकुट धारण करते हैं। उत्तम रतन्नमय मुकुटसे

है, जो अकेला ही सौ मन्दिरोंसे संयुक्त है। वह | उनका मस्तक जगमगाता रहता है। रत्रोंके

परकोटों तथा खाइयोंसे घिरा हुआ तथा पारिजातके | बाजूबंद, कंगन और मंजोरसे उनके हाथ-पैर

वनोंसे सुशोभित है। उस आश्रमके भवनोंमें जो | सुशोभित हैं। उनके गण्डस्थल रन्नमय युगल

कलश लगे हैं, उनका निर्माण रत्रराज कौस्तुभमणिसे | कुण्डलसे अत्यन्त शोभा पाते हैं। उनकी दन्तपंक्ति

हुआ है। इसलिये वे उत्तम ज्योतिःपुञ्जसे जाज्वल्यमान | मोतियोंकी पाँतिका तिरस्कार करनेवाली है। वे

रहते हैं। उन भवनोंमें जो सीढ़ियाँ हैं, वे दिव्य बडे ही मनोहर हैं। उनके ओठ पके हुए

हीरोंके सार-तत्त्वसे बनी हुई हैं। उनसे उन | विम्बफलके समान लाल हैं। उन्नत नासिका

भवनोंका सौन्दर्य बहुत बढ़ गया है। मणीन्धसारसे | उनकी शोभा बढ़ाती है। सब ओरसे घेरकर खड़ी

निर्मित वहाँके किवाड़ोंमें दर्पण जड़े हुए हैं। नाना | हुई गोपाङ्गनाएं उन्हें सदा सादर निहारती रहती

प्रकारके चित्र-विचित्र उपकरणोंसे वह आश्रम | हैं। वे गोपाङ्गना भी सुस्थिर यौवनसे युक्त, मन्द

भलीभाँति सुसज्जित है। उसमें सोलह दरवाजे हैं | मुस्कानसे सुशोभित तथा उत्तम रल्नोंके बने हुए

तथा बह आश्रम रब्रमय प्रदीपोंसे अत्यन्त उद्धासित | आभूषणोंसे विभूषित हैं। देवेन्द्र, मुनीन्द्र, मुनिगण

होता रहता है। तथा नरेशोंके समुदाय और ब्रह्मा, विष्णु, शिव,

वहाँ बहुमूल्य रब्रोंद्वारा निर्मित तथा नाना | अनन्त तथा धर्म आदि उनकी सानन्द वन्दना

प्रकारके विचित्र चित्रोंसे चित्रित रमणीय रत्रमय | किया करते हैं। वे भक्तोंके प्रियतम, भक्तोंके नाथ

सिंहासनपर सर्वेश्वर श्रीकृष्ण बैठे हुए हैं। उनकी | तथा भक्तोंपर अनुग्रह करनेके लिये कातर

अङ्गकान्ति नवीन मेघ-मालाके समान श्याम है । | रहनेबाले हैं। राधाके वक्षःस्थलपर विराजमान परम

वे किशोर-अवस्थाके बालक हैं। उनके नेत्र | रसिक रासेश्वर हैं। मुने! वैष्णवजन उन निराकार

शरत्कालकी दोपहरीके सूर्यकी प्रभाको छीने लेते | परमात्माका इस रूपमें ध्यान किया करते हैं।

हैं। उनका मुखमण्डल शरत्पूर्णिमाके पूर्ण चन्द्रमाकी | बे परमात्मा ईश्वर हम सब लोगोंके सदा ही ध्येय

शोभाको ढक देता है। उनका सौन्दर्य कोटि | हैं। उन्हींको अविनाशी परब्रह्म कहा गया है।

कामदेबोंकी लावण्यलीलाको तिरस्कृत कर रहा | बे ही दिव्य स्वेच्छामय शरीरधारी सनातन भगवान्‌

है। उनका पुष्ट श्रीविग्रह करोड़ों चन्द्रमाओंकी |

प्रभासे सेवित है। उनके मुखपर मुस्कराहट

खेलती रहती है। उनके हाथमे मुरलौ शोभा पाती

है । उनके मनोहर छविकौ सबने भूरि-भूरि प्रशंसा

की है। वे परम मड्भलमय हैं। अग्निम तपाकर

शुद्ध किये गये सुवण्कि समान रंगवाले दो

पीताम्बर धारण करनेसे उनका श्रीविग्रह परम

उज्ज्वल प्रतीत होता है। भगवान्‌के सम्पूर्ण अङ्ग

चन्दनसे चर्चित तथा कौस्तुभमणिसे प्रकाशित है ।

घुटनोंतक लटकती हुई मालतीकौ माला और

हैं। वे निर्गुण, निरीह और प्रकृतिसे परे हैं।

सर्वाधार, सर्वबीज, सर्वज्ञ, सर्वरूप, सवं श्र,

सर्वपूज्य तथा सम्पूर्ण सिद्धिर्योको हाथमें देनेवाले

है । वे आदिपुरुष भगवान्‌ स्वयं ही द्विभुज रूप

धारण करके गोलोकमें निवास करते हैं। उनकी

वेष-भूषा भी ग्वालोकि समान होती है और

वे अपने पार्षद गोपालोसे घिरे रहते हैँ । उन

परिपूर्णतम भगवान्‌को श्रीकृष्ण कहते हैं। वे

सदा श्रीजीके साथ रहनेवाले और श्रीराधिकाके

प्राणेश्वर रहै। सबके अन्तरात्मा, सर्वत्र प्रत्यक्ष

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