पृथ्वी व्यायाम बिस्तर: ] [ ५५
संततानि नदीभेदेरगम्यानि परस्परम् ।३5
वसंति तेषु सत्त्वानि नानाजातीनि स्वेश: ।
इदं हैमवतं वर्ष भारतं नाम विश्रुतम् ।\३१
हेमकूटं परं ह्यस्मान्नाम्न्ता किंपुरुषं स्मृतम् ।
नैषधं हेमकूटात्त हरिवर्षं तदुच्यते ॥।३२
हरिवर्षात्परं चापि मेरोश्च तदिलावृतम् ।
इलावृतात्परं नीलं रम्यकं नाम विश्रुतम् ।३३
रम्यकात्परतः ण्वेतं विश्च. तं तद्धिरण्मयम् ।
हिरण्मयात्परं चैव श्षुंगवत्तः कुरु स्मृतम् ३४
धनुः संस्थे तु विज्ञेये ढ़ं वर्ष दक्षिणोत्तरे ।
दीर्घाणि तत्र चत्वारि मध्यमं तदिलावृतम् ।\३५
उनसे दो सष्टस्र नव्वे ओर दो सहस्त अस्सी आयत्त ह । उनके सशयः
मँ जनपदं हैं गे सात वषं दवै २&€। उन प्रपातो से विषमं पर्मतों से गे ्ं।
निरन्तर बहने कालो नदियों के बहुत से भेदों से ठे परस्पर में गमन करने
के अयोग्य है ।३०। उतमें अनेक जातियों वाले जोच निवास करते हँ भरः
सभीःओर जे वहाँ रहा करते है । यह हैमवत वषं है जो भारत--इसः नामं
सेः प्रसिद्ध है ।३१। इससे आगे हेमकूट है जो नाम से किम्पुरुष काः गयाः है ।
हेमकूट से आगे नषध है जो हरि वर्ष कहा जाया करता है ।३२॥ हरिवषं से
परे मेरु करा वह इलावृत है । इलावृत से आगे नील है जो रम्यक नामःसे
विख्यात है ।३३। रम्यक से आगे श्गेत है जो हिरण्मय नाम से विश्रृतःदै
हिरण्मय से आगे शयु ङ्गंवत् है जो कुरु कहा गया है । ३४) दक्षिणः ओर उत्तरः
दिशा में धनुःसंस्थ दो वषं जानने चाहिए । वहा वर चार दीचं है जो मध्यम
है वह इलावृत है ।३५।
अर्वाक् च निषधस्याथ वेच दक्षिणं स्मृतम् ।
परं नीलवतो यच्च वेद्यद्धं तु तदुत्तरम् ।। ३६
वेद्ध दक्षिणे: क्रीणि जीणि वर्षाणि चोत्तरे ।
तयोमेध्ये तु विज्ञेयो मेरुमंध्यः इलावृतम् ।।३७
दक्षिणेन तु नीलस्य निषधस्योत्तरेण तु ।