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& श्री लिंग पुराण # ९३

ईशान! हे ईश्वर! आपको नमस्कार है। हे शर्व! हे सत्य!

हे सर्वज्ञ! हे ज्ञान! हे ज्ञान के जानने के योग्य! हे शेखर!

है नीलकण्ठ! हे अर्धनारीश्वर! हे अव्यक्त! आपको

नमस्कार है। हे स्थाणु! हे सोम! हे सूर्य! हे भव! हे यश

करने वाले! हे देव! हे शंकर! हे अम्बिका पति! हे

उमापति! हे नीलकेश! हे वित्त! हे सर्पो के शरीर में

आभूषण पहनने वाले! नन्दी बैल पर सवारी करने वाले!

सभी के कर्त्ता! भर्तां आदि, रामजी के नाथ! हे

राजाधिराज! पालन करने वालों के स्वामी! केयूर के

आभूषण पहनने वाले! श्रीकण्ठ ( विष्णु ) के भी नाथ!

त्रिशूल हाथ में धारण करने वाले! भुवनों के ईश्वर! हे

देव! आपको नमस्कार है। हे सारंग, हे राजहंस! हे सर्पो

के हार बाले! हे यज्ञोपवीत वाले! सर्प की कुण्डली की

माला वाले! कमर में सर्पो का सूत्र धारण करने बाले! हे

वेद गर्भाय! हे संसार को अपने पेट ( गर्भ ) में रखने

वाले! हे संसार के गर्भ! हे शिव! आपको बारम्बार

नमस्कार है।

ब्रह्मा जी बोले -हे देवताओ! इस प्रकार मुझ ब्रह्मा

के साथ भगवान विष्णु महादेव जी की स्तुति करके

रुक गए । इस पुण्य, सब पापों को नाश करने वाले

स्तोत्र के द्वारा जो स्तुति करता है, पढ़ता है अथवा ब्राह्मण

या वेद पारंगत विद्वानों के द्वारा श्रवेण करता है, वह

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