८४ | [ ब्रह्माण्ड पुराण
शान्ति नाम वाला कहा जाता है । हविष्मान् -पौलह-श्रीमानु-सुकोति-भागंव-
आयो मूत्ति-आतच्रेय-वसिष्ठ-अपव-पौलस्त्य-अप्रतिम-गाभाग-काश्यप।६६-७०।
अभिमन्युश्चांनिरसः सप्तेते परमर्षयः ।
सक्षेत्रश्चोत्तमोजाश्चाश्च वीय॑ँवाचू ।\७१
शतानीको निरामित्रो वृषसेनो जयद्रथः ।
भूरियम्न: सुवर्चाश्च दशैते मानवाः स्मृताः ॥७२
एकादशे तु पययि सावर्ण वे तृतीयके ।
निर्वाणरतयो देवाः कामगा वे मनोजवाः ॥७३
गणास्त्वेते त्रयः ख्याता देवतानां महात्मनाम् ।
एकेकस्त्रिशतस्तेषां गणस्तु त्रिदिवौकसाम् ७४
मासस्याहानि त्रिंगत्तु यानि वै कवयो विदुः ।
निर्वाणरतयो देवा रात्रयस्त विहंगमा ७५
गणस्तृतीयो यः प्रोक्तो देवतानां भविष्यति ।
मनोजवा मूहुर्त्तास्तु हति देवाः प्रकीर्तिताः ।\७६
एते हि ब्रह्मण पुत्रा भविष्या मानवाः स्मृताः ।
तेषामिद्रो वृषा नाम भविष्यः सुरराट् ततः ॥७७
अभिमन्यु--आ ज़िरस--ये सात परम ऋषि अर्थात् सर्वोत्तम सात
ऋयि हैं। सुक्षे्-उत्तमौजा-मूरिमेन-वी्यंवान् --शतानीक-निराभित्र-
बृषसेन-जयद्रथ-भूरिसेन-सुवर्चा--ये दण मानव कहे गये हैं ॥७१-७२। एका-
देश पर्याय में तीसरे सावणं में निर्माण रति बलि देवगण हैं जो स्वेच्छा से
गमन करने वाले हैं और मन के ही तुल्य बेग से समन्वित है।७३। महान्
आत्माओं वाले देवताओं वाले देवताओं के ये तीन गण विख्यात हैं। उन
स्वगंवासियों एक-एक तीन सौ गण हैं ।७४ एक मास के तीस होते हैं
जिनको कविंगण जानते हैं। निर्याण (मोक्ष) में रति अर्थात् अनुराग रखने
वाले हैं और रात्रिर्या तो विहङ्गम (पक्षो) दँ ।७५। तीसरा गण जो कहा
गया है वह देवताओं का होगा । मन के बेग़ और मृहृत्तं --ये देव कीतित
किये गये हैं ।७६। ये सब ब्रह्माजी क पुत्र होते वाले हैं जो कि मानव कहे
गये हैं। फिर उनका इनदर वृषा नाम वाला सुरराट् होने वाला है ॥७७।