२२६ ॥ । [ मर्स्यपूराण
वालेयो तब्राह्मणाश्चेव तस्य वंशकराः प्रभो ।२५
वलेश्च ब्रह्मणा द॑त्तो वरः भ्रीतेन धीमतः ।
महायोगित्वमायुश्च कल्पस्य परिमाणकम् ।२६
संग्रामे चाप्यजेयत्वं घमं चैवोत्तमा मतिः !
तरैकाल्यदशंन चेव प्रधान्यं प्रसवे तथा ।२७
जयञ्चामतिमं युद्धे धमं तत्वाथंदर्शनम् ।
चतुरो नियताचु वर्णान् सव स्थापयिता प्रभुः ।२८
तेषाञ्च पञ्च दायादादङ्गखाङ्गाः सुह्यकास्तथा ।
पुण्ड्रा: कलि ज्गाश्च तथा अ ङ्गस्यतुनिबोधत ।२६
तितिक्ष पूर्व दिशा में एक महान् प्रसिद्ध राजा हुआ था । इसके
जो पुत्र उत्पन्न हमा था उसका नाम वृषद्रय था और इसके पुत्र का
नाम॒ सेन था ।२२। सेन के यहाँ सुतथा नामधारो पुत्र ने जन्म लिया
था तथा सतपा का पुत्र वलि हुआ था । वंश के क्षीण होने पर प्रजा
की इच्छा से यह मानुष योनि में प्रसूल हुआ था ।२३। यह महान् योगी
नलि महात्मा के द्वारा वन्धो से वद्ध हुआ था । इसने क्षेत्रज पाँच पार्थिव
पुत्रों को समुत्पादित किया था । उसने अज्भू---वज़ू--सुह्य-पुण्ड्र और
कलिग को जन्म दिया था । वातेयक्षेत्र कहा जाता है । हे प्रभो ! वातेय
और ब्राह्मण उसके कंकर हुये थे ।२४-२५। बुद्धिमान बलि को
परम प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वरदान प्रदान किया था कि महायोगित्व
प्रात होवे---एक कल्प पर्यन्त आयु हो जावे-संग्राम में अजेम्त्व की
प्राप्ति हो, धमं में अत्युत्तम मति होवे, तीनों कालो के देखने का ज्ञान
होवे---प्रसव में प्रधानता हो तथा युद्ध में अप्रतिम विजय हो और धर्म
में तत्वार्थ का दर्शन प्राप्त होवे । ये सभी ब्रह्माजी के प्रदान किये हुए
वरदान थे) वह चारों नियत वर्णों का स्थान करने वाला प्रभु हुआ
था ।२६-२७-र८ उनके पाँच दायाद ये--वंग---अग सुह्यक--