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* प्रकृतिखण्ड * २६३

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चार अंगुल लंबे चार कौलोंसे छेद कर दिये | बर्षसे सत्रह लाख अट्टाईस हजार बताया है।

जायं । फिर उस पात्रको जलके ऊपर रख दिया इसौ तरह त्रेताका कालमान बारह लाख

जाय। उन छिद्रोंसे पानी आकर जितनी देरमें वह | छियानबे हजार मानव-वर्षं है। द्वापका आठ

पात्र भर दे, उतने समयकों एक दण्ड कहते | लाख चौसठ हजार तथा कलियुगका चार लाख

हैं। दो दण्डका एक मुहूर्त और चार मुहूर्तोंका बत्तीस हजार मानव-वर्ष है।

एक प्रहर होता है। आठ प्रहरोंसे एक दिन-| जैसे सात वार, सोलह तिथियाँ, दिन-रात,

शातकी पूर्ति होती है। पंद्रह दिन-रातको एक | दो पक्ष, बारह मास और वर्ष चक्रवत्‌ घूमते

पक्ष कहते हैं। दो पक्षोंका एक मास और बारह | रहते हैं, उसी प्रकार चारों युगोंका चक्र भी सदा

मासका एक वर्ष होता है। मनुष्योंके एक मासमें | ही चलता रहता है। राजेन्द्र! जैसे युग परिवर्तित

जितना समय व्यतीत होता है, वह पितरोंका एक | होते हैं, उसी प्रकार मन्वन्तर भी। इकहत्तर दिव्य

दिन-रात है। कृष्णपक्षमें उनका दिन कहा गया | युगोंका एक मन्वन्तर होता है। इसी क्रमसे चौदह

है ओर शुक्लपक्षमें रात्रि। मनुष्योंके एक वर्षमें मनु भ्रमण करते रहते हैं।

देवताओंके एक दिन-रातकी पूर्ति होती है। नश्वर! मैंने भगवान्‌ शंकरके मुखसे धर्मात्मा

उत्तरायणमें उनका दिन होता है और दक्षिणायनमें | मनुओंका जो आख्यान सुना है, वह बता रहा

रात्रि। नश्वर! मनुष्य आदिकौ अवस्था युग एवं | हूँ। तुम मुझसे सुनो। आदिमनु ब्रह्माजीके पुत्र

कर्मके अनुरूप होती है। अब प्रकृति, प्राकृत | हैं। इसलिये उन्हें स्वायम्भुव मनु कहा गया है।

पदार्थ एवं ब्रह्मा आदिकौ आयुका परिमाण सुनो । | उनकी पत्नी पतिव्रता शतरूपा हैं। स्वायम्भुव मनु

सत्ययुग, तरता, द्वापर ओर कलियुग--इन चारोंको | धर्मात्माओंमें वरिष्ठ और मनुओंमें गरिष्ठ हैं। वे

एक चतुर्युग कहते हँ । इनकी काल- संख्या बारह | तुम्हारे प्रपितामह लगते हैं। उन्होंने भगवान्‌

हजार दिव्य वर्ष है। सावधान होकर सुनो, | शंकरका शिष्यत्व ग्रहण किया है। वे विष्णुत्रतका

सत्ययुग आदिका कालमान क्रमशः चार, तीन, पालन करनेवाले जीवन्मुक्त एवं महाज्ञानी थे।

दो और एकं दिव्य वर्ष है। उनकी संध्या और | उन्होंने भगवान्‌ शंकरकी आज्ञासे भगवान्‌ विष्णुकौ

संध्यांशकाल दो हजार दिव्य वर्पोकि बताये गये | प्रसन्नताके लिये प्रतिदिन एक लाख बहुमूल्य रत्र,

हैं*। मनुष्योंके मानसे चारों युगोंका परिमाण दस करोड़ स्वर्णमुद्रा, सोनेके सींगसे सुशोभित

तैंतालीस लाख बीस हजार वर्ष है। इनमें | एवं सुपूजित एक लाख दिव्य धेनु, अग्निशुद्ध

गणनाके विद्वानोंने सत्ययुगका मान मनुष्योंके | दिव्य वस्त्र, एक लाख श्रेष्ठ मणि, सब प्रकारकी

* इस विषयका स्पष्टीकरण यों समझना चाहिये। सत्ययुग चार हजार दिव्य वर्षोंका होता है। युगके आरम्भमें

चार सौ दिव्य वर्षोंको संध्या होती है ओर युगके अन्तमें चार सौ दिव्य वर्षोंका संध्यांशकाल होता है। इस प्रकार

सत्ययुगका कालमान चार हजार आठ सौ दिव्य वर्ष है। त्रेताका संध्यामात तीन सौ दिव्य वर्ष, युगमान तीन सहस्र

दिव्य बर्ष और संध्यांशमान तीन सौ दिव्य वर्ष। इस तरह त्रेताका सम्पूर्ण कालमान तीन हजार छः सौ दिव्य वर्ष

है। द्वापरका संध्यामान दो सौ दिव्य वर्ष, युगमान दो हजार दिव्य वर्ष और संध्यांशमान दो सौ दिव्य वर्ष है। ये

सब मिलाकर दो हजार चार सौ दिव्य वर्ष होते हैं। इसी तरह कलियुगका संध्यामान एक सौ दिव्य वर्ष, युगमान

एक सहस्न दिव्य वर्ष और संध्यांशमान एक सौ दिव्य वर्ष है। इस प्रकार कलियुगका पूरा मान बारह सौ दिव्य

वर्ष है। इन चार युगोंका सम्मिलित कालमान बारह हजार दिव्य वर्षं है।

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