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२६४ * संश्च ब्रह्मवैवर्तपुराण *

खेतीसे हरी-भरी भूमि, लाखों उत्तमोत्तम गजराज, | मनु हैं तथा धर्मात्मा देवसावर्णिको तेरहवां मनु

सोनेके आभूषर्णोसे विभूषित तीन लाख रत्न, | कहा गया है । महाज्ञानी चन्द्रसावर्णि चौदहवें मनु

सहसो स्वर्णजरित रथरत्र, एक लाख शिबिका, | है । मनुओंकी जितनी आयु होती है, उतनी ही

अन्नसे भरे हुए तीन करोड़ सुवर्णपात्र, जलसे | इन्द्रोंकी भी होती है।

भरे हुए तीन कोटि सुवर्ण-कलश, कर्पूर आदिसे |... ब्रह्माका एक दिन चौदह इन्द्रोंसे अविच्छिन्न

सुवासित ताम्बूल और विश्वकर्माट्वारा रचित तथा | कहा जाता है। जितना बड़ा उनका दिन होता

रेष्ठ रकि सारभागसे खचित एवं वहिशुद्ध | है, उतनी ही बड़ी उनकी रात भी होती है।

विचित्र वस्त्रसहित माल्यसमूहोंसे सुशोभित तीन | नरेश्वर! उसे ब्राह्मी निशाके नामसे जानना चाहिये।

करोड़ विचित्र स्वर्ण - पर्यङ्कका ब्राह्मणोके लिये|उसीको बेदोंमें 'कालरात्रि' कहा गया है। राजन्‌!

दान किया था। भगवान्‌ शंकरसे परम दुर्लभ ज्ञान, | ब्रह्माका एक दिन एक छोटा कल्प माना गया

श्रीकृष्णका मन्त्र तथा श्रीहरिका दास्यभाव प्राप्त | दै । महातपस्वी मार्कण्डेय ऐसे ही कल्पसे सात

करके वे गोलोकको चले गये । अपने पुत्रको | कल्पतक जीवित रहते हैं। ब्रह्माका दिन बीतनेपर

मुक्त हुआ देख प्रजापति ब्रह्मा बड़े प्रसन्न हुए। ब्रह्मलोकसे नीचेके सारे लोक प्रलयाग्निसे जलकर

उन्होने संतुष्ट होकर भगवान्‌ शंकरकी स्तुति को | भस्म हो जाते हैं। वह अग्नि सहसा संकर्षण

ओर आदिमनुके स्थानपर दूसरे मनुकी सृष्टि की । | (शेषनाग)-के मुखसे प्रकट होती है । उस समय

वे भी स्वयम्भूके पुत्र होनेके कारण स्वायम्भुव | चन्द्रमा, सूर्य और ब्रह्माजीके पुत्रगण निश्चय ही

मनु कहलाये। दूसरे मनुका नाम स्वारोचिष है । | ब्रह्मलोकमें चले जाते हैँ । जब ब्रह्माकी रात बीत

ये अग्रिदेवके पुत्र हैं। राजा स्वारोचिष भी | जाती है, तब वे पुनः सृष्टिका कार्य प्रारम्भ करते

स्वायम्भुव मनुके समान ही महान्‌ धर्मिष्ठ एवं | है । ब्रह्माकी रात्रिमें जो लोकोंका संहार होता

दानी रहे हैं। दो अन्य मनु राजा प्रिवत्रतके पुत्र | है, उसे "द्र प्रलय ' कहते है । उसमें देवता,

तथा धर्मात्माओमें श्रेष्ठ हैं। उनके नाम हैं--तापस | मनु और मनुष्य आदि दग्ध हो जाते हैं। इस

ओर उत्तम। दोनों ही वैष्णव हैं तथा क्रमशः | प्रकार जब ब्रह्माके तीस दिन-रात व्यतीत हो

तीसरे और चौथे मनुके पदपर प्रतिष्ठित हैं। वे | जाते हैं, तब उनका एक मास पूरा होता है।

दोनों भी भगवान्‌ शंकरके शिष्य हैं तथा | वैसे ही बारह महीर्नोका उनका एक वर्ष होता

श्रीकृष्णकौ भक्तिमें तत्पर रहते हैँ । धर्मात्माओंमें है । इस प्रकार ब्रह्माके पंद्रह वर्ष व्यतीत होनेपर

श्रेष्ठ रैवत पाँचवें मनु हैँ । चाक्षुषको छटा मनु | एक प्रलय होता है, जिसे वेदे “ दैनन्दिन प्रलय '

जानना चाहिये। वे भी विष्णुभक्ति तत्पर | कहा गया है । प्राचीन वेदज्ञोंने उसीको ' मोहरात्रि'

रहनेवाले हैं। सूर्यपुत्र श्राद्धदेव जो विष्णुके भक्त कौ संज्ञा दी है। उसमें चन्द्रमा, सूर्य आदि;

हैं, सातवें मनु कहे गये हैं (इन्हींको वैवस्वत | दिक्पाल, आदित्य, वसु, शुद्र मनु, इन्द्र, मानव,

मनु कहते हैं)। सूर्यके दूसरे वैष्णव पुत्र सावर्णि | | ऋषि, मुनि, गन्धर्वं तथा राक्षस आदि; मार्कण्डेय,

आठवें मनु हैं। विष्णुत्रतपरायण दक्षसावर्णि नवे | लोमश और पेचक आदि चिरजीवी; राजा

मनु हैं। ब्रह्मज्ञानविशारद ब्रह्मसावर्णि दसवें मनु | इन्द्रह्युप्न, अकूपार नामक कच्छप तथा नाडीजंघ

हैं। ग्यारहवें मनुका नाम धर्मसावर्णि है। वे नामक बक--ये सब-के-सब नष्ट हो जाते है ।

धर्मिष्ठ. वरिष्ठ तथा सदा ही वैष्णवोकिं तव्रतका | ब्रह्मलोकके नीचेके सब लोक तथा नागोके स्थान

पालन करनेवाले हैँ । ज्ञानी रुद्रसावर्णि बारहवें | भी विनाशको प्राप्त हो जाते है । ऐसे समयमे

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