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लिङ्ग-निर्माण करके वीक्षणादि विधानसे उनकी | वर्षतक ऐसा करनेसे वह लिङ्गं ओर उसका पूजन
शुद्धि करे। तत्पश्चात् विधिवत् पूजन करना चाहिये । | मनोवाज्छित फल देनेवाला होता है । विष्णु आदि
पूजनके पश्चात् मन्त्रोंकोी लेकर अपने-आप स्थापित | देवताओंकी स्थापनाके मन्त्र अलग है । उन्हीके
करे और उस लिङ्गको जलमें डाल दे। एक | द्वारा उनकी स्थापना करनी चाहिये ॥ ८७ -८९॥
इस प्रकार आदि आण्नेव महापुराणमें 'शिव-प्रविष्ठाकी तिधिका वर्णन” त्ामक
सत्तावबेवाँ अध्याय यूदा हुआ॥ ९७॥
अद्ठानबेवाँ अध्याय
गौरी-प्रतिष्ठा-विधि
भगवान् शिव कहते हैं-- स्कन्द! अब मैं | कर्णिकायै नमः। ॐ श्चं पुष्कराक्षेभ्यो नम: ।'--
पूजासहित गौरीकी प्रतिष्ठाका वर्णन करूँगा,
इन मन्त्रोंद्राय कर्णिका एवं कमलाक्षोंका पूजन
सुनो। पूर्ववत् मण्डप आदिकी रचना करके | करें। इसके बाद “ॐ हां पुष्टयै नमः। ॐ हुं
देवीकी स्थापना एवं शय्याधिवासन करे। पूर्वोक्त
मन्त्रौ ओर मूर््यादिकोंका न्यास करके आत्म-
तत्त्व, विद्यातत्व और शिवतत्त्वका परमेश्वरमें
स्थापन करे। तदनन्तर पराशक्तिका न्यास, होम
और जप पूर्ववत् करके क्रियाशक्तिस्वरूपिणी
पिण्डीका संधान करे । सर्वव्यापिनी पिण्डीका ध्यान
करके वहाँ रत्न आदिका न्यास करे। इस विधिसे
पिण्डीकौ स्थापना करके उसके ऊपर देवीको
स्थापित करे॥ १-४॥
वे देवी परमशक्तिस्वरूपा है । उनका अपने ही
मन्त्रसे सृष्ट-न्यासपूर्वक स्थापन करे। तदनन्तर
पीठे क्रियाशक्तिका और देवीके विग्रहमें ज्ञानशक्तिका
न्यास करे। इसके बाद सर्वव्यापिनी शक्तिका
आवाहन करके देवोकी प्रतिमामें उसका नियोजन
करे। फिर "शिवा" नामवाली अम्बिका देवीका
स्परशपूर्वक पूजन करे * ॥५-६॥
पूजाके मन्त्र इस प्रकार रै-*ॐ आं
आधारशक्तये नम: | ॐ कूर्मांय नमः। ॐ कन्दाव
नमः । ॐ हीं नारायणाय नम:। ॐ ऐश्वर्याय नमः।
ॐ अधश्छदनाय नमः। ॐ पशासनाय नमः।'
ज्ञानायै नमः। ॐ हूँ क्रियायै नम: ।'-- इन मदर
पुष्टि, खाना एवं क्रियाशक्तिका पूजन करे ॥ ७ -१०॥
"ॐ नालाय नपः। ॐ रं धर्माय नमः। ॐ रं
ज्ञानाय नमः। ॐ यैराग्याय नमः। ॐ अश्चर्माय
नपः। ॐ र अज्ञानाय नमः। ॐ अवैराग्याय
नपः। ॐ अनैश्वर्याय नमः।'
--इन मन्त्रोंद्रा नाल आदिकी पूजा करे । ॐ
वाचे नमः। ॐ हूं रागिण्यै नमः। ॐ
ज्वालिन्यै नमः। ॐ हाँ शमायै नमः। ॐ
ज्येष्ठायै नपः। ॐ हौ रौक्रौ नवशक्त्यै नमः।
--इन मन्त्रोंद्रारा वाक् आदि शक्तियोंकी पूजा
करे। * ॐ गौँ गौर्यासनाय नम: । ॐ गौ गौरीमूर्तये
नमः।' अब गौरीका मूलमन्त्र बताया जाता है--
"ॐ हीं सः महागौरि रुद्रदयिते स्वाहा गौर्यै नमः।
ॐ गां हृदयाय नमः, ॐ गीं शिरसे स्वाहा । ॐ
गुं शिखायै वषट्। ॐ ग कवचाय हुम्। ॐ गौ
नेत्रत्रयाय वौषट्! ॐ गः अस्त्राय फट्। ॐ गौं
विज्ञानशक्तये नमः ।'--इन मन्त्रे शिखा आदिकी
पूजा करे ॥ ११--१५॥
"ॐ गुं क्रियाशक्तये नमः।'-- इस मन्त्रसे
तदनन्तर केसरोंकी पूजा करे। तत्पश्चात् ' ॐ हीं | क्रियाशक्तिकी पूजा करे। पूर्वादि दिशाओंमें इन्द्रादि
* पाठान्तरके अनुसार ' अमुके ' इत्यादि वामसे नको स्पर्शपूर्कक पूजन करे । यथा-- रामेश्वर्य नमः। कृष्णेश्यै नमः ।' इत्यादि ।