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२२२ | [ ब्रह्माण्ड पुराण

मुनि के द्वारा उस मन्त्रीसे कहा गया था तो बह मन्त्रीकाल से प्रेरित

होकर उस दुष्कर्म में प्रयुत्ष हो गया था और बल (सेना) से समन्वित उस

मन्त्रीने परम सुहृढ़ पाणों से उस होम घेनु को बाँध करके अपने साथ ले

जाने के लिये खींचा था )५। इसके अनन्तर क्रोध से भविष्य में होने काले

कर्म से प्रेरित होते हुए जमदर्नि ते गौ के खींचते हुए उस मर्त्री को अपनी

शक्ति को भरपूर लगाकर जंसी शक्ति उनमें थी उसी के अनुसार रोका था

।६। उन्होने कहा था कि मैं अपने जीते जी इस घेनु को नहीं छोड़ूगा । यह्‌

कहते हुए उनको बड़ा क्रोध उत्पन्त: हो गया और उस महामुनि ने बड़ी

दृढता के साथ अपनी दोनों बाहुओं को उस धेनु क कण्ठ में डालकर उसको

बलपूर्वक पकड़ लिया था ॥७।

ततः क्रोधपरीतात्मा चन्द्रगुप्तोडतिनि्धु णः ।

उत्सारयध्वमित्येनमादिदेण स्वसैनिकान्‌ ।।८

अप्रधृष्यतमं लोके तमृषि राजकिकराः !

भर्जजज्ञिया प्रहद्येनं परिवनत्रुः समंततः ॥&

दंडे कशाभिल॑गुडेविनिध्नंतश्र मृषिभिः ।

ते समुत्सारयन्‌ धेनोः सुदुरतरमंतिकात्‌ ।\१०

स तथा हन्यमानोऽपि व्यथितः क्षमयान्वितः ।

न चुक्रोधाक्रोधनत्वं सतो हि परमं धनम्‌ । ११

स च शक्तः स्वतपसा संहत मपि रक्षितुम्‌ ।

जगत्सवं क्षयं तस्य चिन्तयन्न प्रचुक्रुधे ॥१२

स पूर्व क्रोधनोऽत्यर्थं, मातुरथे प्रसादितः ।

रामेणाभूत्ततो नित्यं शांतः एव महातपाः ॥१३

स हन्यमानः सुभ्रृशं चूणितांगास्थिबंधन: ।

निपपात महातेजा धरण्यां गतचेतनः ।। १४

: इसके अनन्तर क्रोध से परीत जामा वाले उस अत्यन्त नीच चन्द्रगुप्त

नेअपने सैनिकों को आज्ञा दे दी भ्रों कि इस मुनि को बल पूर्वक हटा दो

।८। वह मुनि इस लोक में ऐसे ओ कि कोई भी उनको प्रध्ित नहीं कर

सकता था तथापि राजा के किकरों ने उस ऋषि को अपने स्वामी की आशा

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