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स्मरण ओर स्नान करनेते यह मनुष्योकों इस पृष्यीपर छषमी
प्रदान कूरनेवान् शेता है | तुम भी इसमें स्नान करके अपने
पिके समीप जाओ |
झुक मुनिका यह वचन सुनकर राजकुमारने कमछ-
हरोयरमें समान दिया और धनिको प्रणाम करके घोड़ेफर
वाराह मगवान् तथा अखिसरोवर तीर्थकी मदिमा, मक्त कुम्हार तथा राजा
तोण्डमानका परमंधामगमन
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सगवान् वाराह कहते हैं--एक दिन निधाद्राज
मु तोप्डमानके द्वारपर आया | द्रारफालोंखे उसके आगमनकी
खूचना पाकर महाराजने “उसे दस्वारमें बलाया और मन्त्रियों-
के साथ पुत्र और परिवारखदिति उसका स्वागत-सत्कार
किया । तत्पश्चात् प्रसन्न होकर उन्होंने बसुसे पूछा-
ध्वनेचर | किस कार्यसे तुदा यहो आगमन हुआ है !?
चुने कद्दा--राजन ! मैंने वनमें एक बढ़े आश्चर्यकी
बात देखी टै, उसे सुनिये । रातमें कोई छ्वेत रंगझा याराह्
आकर मेरा सावों चरमे खगा | तब मैंने हाथमें घनुप्र केकर
उसका पीछा किया । खदेद्नेपर यह यायुफे तमान वेगत
भागा और मेरे देखते-देखते स्वामिपुम्करिणौके तटपर
अस्मीकर्म भुख शया । तब मैने करोषवश उस षस्मीकको
छोदमा आरम्भ किमा । इतनेमें ही मूर्छिते शोकर एृष्वीपर
शिर पदं | उसी समय मेरा यह पुत्र भी भा गया और मुझे
पृष्वीपर मूषित होकर पढ़ा देख पवित्र होकर देवाधिदेव
भगबान् मधुवूदनकी स्तुति करने तस्मा । तब भगवान् वाराह-
का सुझमें आवेश हुआ उन्होंने मेरे पुत्रे $दा--
भ्निषादराज | ठुम शीषर गाजाके ख जाकर मेरा सा
डूत्तान्त उनसे कशो । राज्य काछी गोके दूघसे अभिषेक करते
हुए. इस चस्मीकको धो डाके, तब इसके भीतर एक परम
सुन्दर शिल्प दिखायों देगी । उसे देकर किसी क्रारीगरसे
मेरी मूर्ति बनवाये, जिसमें मैं भूमिदेवीको अपने बाय अहक-
में छेकर खड़ा रहूँ और मेरा मख सूकरके समान हो । मूर्ति
जैयार हो जानेपर पढ़े-बढ़े मुनीश्यों और बेखानस
महारम्या उसकी स्याएना कराकर स्वयं तोष्डमान भी
उसकी पूजा करें ।” यों ककर भगवान् वाराहने मुझ्ते छोड़
दिया। तब मैं स्वस्थ हो गया। डेवाधिदेश सगंबान वाराह
आपसे क्या कराना चाहते हैं, यह बतस्मनेंके लिये ही मैं यहाँ
आया हूँ ।
राजा तोण्डमान भी यह सुनकर बहुत प्रसन्त और
विस्मित हुए. । तदनन्तर पुष्कर आदि मन्त्रियोंके साथ कार्य-
का निश्चय करके बेङ्कयचक जनेका विचार किया और सब
ग्वाल्मेंकों बुल्मकर कह्ा--गोफ़ाण | जितनी भी मेरी खली
और कफिस्ा गौर हैं, उन खबकों बछद्रोखह़ित वेह्कंटाचलके
समीप सभो ।› गोपोंकों ऐसी आशा देकर राजानि मन्त्रियोंकों
सूचित किया-+कल दौ यात्रा करनी है । इसके वाद खव
प्रजाको विदा करके ख़ितेरिद्रिय राजाने भस्तःपुरमे प्रवेश
किया और अपनी पक्षियोंसे वाराहजीकी वह कथा सुनाकर वे
शतम यहीं सोये । रुपनेसें भगवात् भीनिवासने राजाकों
बिका मार्ग दिखाया और उनके नगरते केकर विछके
अन्ततक मार्गम परूखव वि दिये । राज्य यह स्वप्न देखकर
अब सवेरे उठे; तब उन्होंने शीघ्र ही मन्मियो, प्रजाओं और
जाक्षणोंकों भी शत्य । उन सबसे अपना देखा हुआ स्वप्न
सुनाकर जब उन्होंने दरवाजेपर दष्टि डाली, तब यहाँ परूछव
बिछे हुए. दिल्लायी दिये । तब उपयुक्त पूतम पोड़ेपर
खयार हो राजा तोण्डमान परसे णे भर विलके परस
पहुँचकर वहीं उन्होंने नगर बनाया । उस समय देवाधिदेव
भगवाते स्वयं राजाकों यश आदेश दिया अर्थात् संकेत किया
कि 'दमली और चम्पा-ये दो वृक्ष बहुत उत्तम र,
इनका पालन करो । इमी मेरा आशय है और म्य
खदमीजीका स्थान है । अतः राजाओं, ऋषियों, देवताओं तथा
मनुष्योंकों इन दो वरक्षोंकी वन्दना करनी चाहिये ।?
तोष्डमानसे पैसा कट्ककर भगयान् विष्णु चुप हो गये ।
उनका बच्चन झुनकर गाजाने चाहारदिवारी बनवायी और