गौरीने भी देवासुर-संग्राममें देवताओंको रक्षा की
व
रेशमी वस्त्रसे आच्छादित कर, कलशपर स्थापन
थी। अष्टदल-कमलकी कर्णिका तथा दलोंमें | करके उसका पूजन करे! इस यन््रको धारण
गौरीके बीज (हीं) मन््रसे सम्पुटित अपना नाम | करनेसे सभी रोग शान्त होते हैं एवं शत्रुओंका
लिख दे । पूर्व दिशामें रहनेवाले प्रथमादि दलोंमें विनाश होता है ॥ ४०--४३ ६ ॥
रक्षायंत्रका स्वरूप .
पूजाके अनुसार गौरीजीकी अङ्ग-देवताओंका
न्यास करे। इस तरह लिखनेपर शुभे! ' रक्षायन्त्े'
बन जायगा॥ ३६-३७॥
अब इन्हीं संस्कारोके बीच “मृत्युंजय-मन्त्र 'को
कहता हूँ, जो सब कलाओंसे परिवेष्टित है,
अर्थात् उस मन्त्रसे प्रत्येक कार्यका साधन हो
सकता है, तथा जो सकारसे प्रबोधित होता है।
मन्त्रका स्वरूप कहते हैं--
ॐकार पहले लिखकर फिर बिन्दुके साथ
जकार लिखे, पुनः धकारके पेटमें वकारको
लिखे, उसे चन्द्रबिन्दुसे अद्धित करे। अर्थात् ' ॐ
अब 'भेलखी विद्या' को कह रहा हूँ, जो
जं ध्वम्--यह मन्त्र सभी दुष्टौका विनाश | वियोगमें होनेवाली मृत्युसे बचाती है। उसका
करनेवाला है॥ ३८-३९ ३ ॥
दूसरे “रक्षायन््र' का उद्धार कहते हैं--
गोरोचन-कुङ्कुमसे अथवा मलयागिरि चन्दन-
कर्पूरसे भोजपत्रपर लिखे हुए चतुर्दल कमलकी
मन्त्रस्वरूप निम्नलिखित है--
“ॐ वातले वितले विडालमुखि इन्द्रपुत्रि
उद्धवो वायुदेवेन खीलि आजी हाजा मयि वाह
इहादिदुः अह मां
कर्णिकामे अपना नाम लिखकर चारों दलोंमें | यस्महमुपाडि ॐ भेलखि ॐ स्वाहा।'
उश्कार लिखे। आग्नेय आदि कोणोंमें हकार
लिखे । उसके ऊपर षोडश दलोंका कमल बनाये ।
उसके दलोमे अकारादि षोडश स्वरोको लिखे।
फिर उसके ऊपर चौंतीस दलोंका कमल बनाये ।
नवरात्रके अवसरपर इस मन्त्रको सिद्ध करके
संग्रामके समय सात बार मन्त्रजप करनेपर शत्रुका
मुखस्तम्भन होता है ॥ ४४--४६॥
"ॐ चण्ड, ॐ हू फट् स्वाहा ।'-- इस
उसके दलोंमें "क" से लेकर “क्ष ' तक अक्षरोको | मन्त्रको संग्रामके अवसरपर सात बार जपनेसे
लिखे। उस यन्त्रको श्वेत सूत्रसे वेष्टित करके | खङ्ग -युद्धमें विजय होती है ॥ ४७-४८ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापएयणमे “नाना प्रकारके बलाका विचार” नामक
एक सौ तैतीरवां अध्याय एर हुआ॥ १३३॥
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