त्रैलोक्यविजया-विद्या
भगवान् महेश्वर कहते हैं--देवि! अब मैं | खोलिये। ॐ ! नृत्य-मुद्रामें तलवार धारण
समस्त यन्त्र-मन्रोंको नष्ट करनेवाली * त्रैलोक्यविजया
विद्या'का वर्णन करता हूँ॥१॥
ॐ द् , ॐ नमो भगवति दृष्टिणि
क हिलि हिलि, रक्तनेत्रे किलि
किलि, महानिस्वने कुलु, ॐ विद्युजिह्वे कुलु
ॐ निमसि कट कट, गोनसाभरणे चिलि चिलि,
शवमालाधारिणि द्रावय, ॐ महारौद्रि
सार््रचर्मकृताच्छदे विजृम्भ, ॐ नृत्यासिलता-
धारिणि श्रुकुटीकृतापाड्े विषयनेत्रकृतानने
बसामेदोबिलिप्तगात्रे कह कह, ॐ हस हस,
क्रुध्य, ॐ नीलजीमूतवर्णेऽभ्रमालाकृताभरणे
विस्फुर, ॐ धण्टारवाकीण्दिरे, ॐ
सिंसिस्थेडरुणवर्णे, ॐ हां हीं हूं रौद्ररूपे हूं हीं
क्ली, 3० हीं हु मोमाकर्ष, ॐ धून धून, ॐ हे
इः स्वः खः, वज़िणि हूं क्षूं क्षां क्रोधरूपिणि
प्रज्वल प्रज्वल, ॐ भीपभीषणे भिन्द, ॐ महाकाये
छिन्दे, ॐ करालिनि किटि किटि, महाभूतमातः
सर्वदुष्टनिवारिणि जये, ॐ विजये ॐ
त्रैलोक्यविजये हूं फट् स्वाहा ॥
ॐ हूं षं हुं, ॐ बड़ी-बड़ी दाढ़ोंसे जिनकी
आकृति अत्यन्त भयंकर है, उन महोंग्ररूपिणी
भगवतीको नमस्कार है । वे रणाङ्गणे स्वेच्छापूर्वक
क्रीडा कर, क्रीडा करें। लाल नेत्रोवाली ! किलकारी
कौजिये, किलकारी कीजिये। भीमनादिनि कुलु।
ॐ विद्युजिल्ने! कुलु। ॐ मांसहीने ! शत्रुओंको
आच्छादित कीजिये, आच्छादित कीजिये।
भुजङ्गमालिनि! वस्त्राभूषणोसे अलंकृत होइये,
अलंकृत होडये। शवमालाविभूषिते! शत्रुओंको
खदेडिये। ॐ शत्रुओंके रक्तसे सने हुए चमद्धेके
वस्त्र धारण करनेवाली महाभयंकरि! अपना मुख
करनेवाली !! टेढ़ी भौंहोंसे युक्त तिरछे नेत्रोंसे
देखनेबाली! विषम नेत्रोंसे विकृत मुखवाली !!
आपने अपने अद्ध मजा ओर मेदा लपेट रखा
है। ॐ अट्टहास कीजिये, अट्टहास कीजिये।
हँसिये, हंसिये। क्रुद्ध होइये, क्रुद्ध होइये। ॐ
नील मेघके समान वर्णवाली! मेघमालाकों आभरण
रूपे धारण करनेबाली!! विशेषरूपसे प्रकाशित
होइये। ३&घण्टाकी ध्वनिसे शत्रुओंके शरीरोंकी
धजिजयाँ उड़ा देनेवाली ! ॐ सिंसिस्थिते! रक्तवर्णे!
ॐ हां हीं हूं रौद्रूपे ! हू ह़ं क्लीं ॐ हीं हूं त
शत्रुओंका आकर्षण कीजिये, उनको हिला
कपा डालिये। ॐ हे हः खः वच्रहस्ते। हंशुशां
क्रोधरूपिणि! प्रज्वलित होइये, प्रज्वलित होइये।
ॐ महाभयंकरको डरानेवाली । उनको चीर
डालिये। ॐ विशाल शरीरवाली देवि ! उनको
कार डालिये। ॐ करालरूपे ! शत्रुओंको डराइये,
डराइये। महाभयंकर भूतोंकी जननि! समस्त
दुष्टोंका निवारण करनेवाली जये!! ॐ विजये!!!
ॐ त्रैलोक्यविजये हं फट् स्वाहा ॥ २॥
विजयके नीलवर्णा, प्रेताधिरूढ़ा
त्रैलोक्यविजया-विद्याकी बीस हाथ ऊँची प्रतिमा
बनाकर उसका पूजन करे। पञ्चाङ्गन्यास करके
रक्तपुष्पोका हवन करें। इस जैलोक्यविजया-
विद्याके पठनसे समरभूमिमें शत्रुकी सेनाएँ पलायन
कर जाती हैं॥३॥
ॐ नमो बहुरूपाय स्तम्भय स्तम्भय ॐ
मोहय, ॐ सर्वशब्रुन् द्रावय, ॐ ब्रह्माणमाकर्षय,
ॐ विष्णुमाकर्षय, ॐ महेश्वरमाकर्षय, ॐ इन्द्रं
टालय, ॐ पर्वतां श्चालय, ॐ सप्तसागराञ्शोषय
ॐ च्छिन्द च्छिन्द बहुरूपाय नमः ॥