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पूर्वभाग-द्वितीय पाद

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हों, उस अङ्गे निश्चितरूपसे व्रण होता ही है। | कर्क लग्र हो तो जातककी मृत्यु होती है। दो

षष्ठ भावमें पापग्रह हो तो उस राशिके आश्रित

अङ्गम व्रण होता है। यदि उसपर शुभग्रहकी दृष्टि

हो तो उस अड्भमें तिल या मसा होता है। यदि

शुभग्रहका योग हो तो उस अड्भमें चिह्न (दाग)

मात्र होता है॥९४--९६३॥

( ग्रहोंके स्वरूप और गुणका बर्णन-- )

सूर्यकी आकृति चतुरस््रन है, शरीरकी कान्ति और

नेत्र पिङ्गल हैं। पित्तप्रधान प्रकृति है और उनके

मस्तकपर थोड़े-से केश हैं। चन्द्रमाका आकार

गोल है; उनकी प्रकृतिमें वात और कफकी

प्रधानता है, वे पण्डित और मृदुभाषी हैं तथा

उनके नेत्र बड़े सुन्दर हैं। मङ्गलकौ दृष्टि क्रूर है,

युवावस्था है, पित्तप्रधान प्रकृति है और वह

चञ्चल स्वभावका है । बुधकी प्रकृतिमें कफ, पित्त

और वातकी प्रधानता है, वह हास्यप्रिय और

अनेकार्थक शब्द बोलनेवाला है। बृहस्पतिकी

अङ्गकान्ति, केश और नेत्र पिङ्गल हैं, उनका

शरीर बड़ा है, प्रकृतिमें कफकी प्रधानता है और

वे बड़े बुद्धिमान्‌ हैं। शुक्रके अङ्ग और नेत्र सुन्दर

है, मस्तकपर काले घुँघराले केश हैं और वे

सर्वदा सुखी रहनेवाले हैं। शनिका शरीर लम्बा

और नेत्र कपिश वर्णके हैं, उनकी वातप्रधान

प्रकृति है, उनके केश कठोर हैं और वे बड़े

आलसी है ॥९७--१०० ॥

( ग्रहोंके भातु-- ) सरयु (शिरा), हड्डी, शोणित,

त्वचा, वीर्य, वसा और मजा-ये क्रमशः शनि, सूर्य,

चन्र, बुध, शुक्र, गुरु और मङ्गलके धातु हं ॥ १०१॥

( अरिष्टकथन-- ) चन्द्रमा, लग्न और पापग्रह--

ये राशिके अन्तिमांशमें हों अथवा चन्द्रमा और

तीनों पापग्रह ये लग्रादि चारों केन्द्रोंमें हों तथा

पापग्रह लग्न और सप्तम भावमें हों तथा चन्द्रमा

एक पापग्रहसे युक्त हो और उसपर शुभग्रहकी

दृष्टि न हो तो शिशुका शीघ्र मरण होता है ॥१०२-

१०३॥ क्षीण चन्द्रमा १२ वें भावमें हो, पापग्रह

लग्र और अष्टम भावमें हों तथा शुभग्रह केन्द्रमें

न हों तो उत्पन्न शिशुकी मृत्यु होती है। अथवा

पापयुक्त चन्द्रमा सप्तम, द्वादश या लग्रमें स्थित

हो तथा उसपर केन्द्रसे भिन्नस्थानमें स्थित

शुभग्रहकी दृष्टि न हो तो जातककी मृत्यु होती

है। यदि चन्द्रमा ६, ८ स्थानमें रहकर पापग्रहसे

देखा जाता हो तो शिशुका शीघ्र मरण होता है।

शुभग्रहसे दृष्ट हो तो ८ वर्षमें और शुभ तथा

पापग्रह दोनोंसे दृष्ट हो तो ४ वर्षमें जातककी

मृत्यु हो जाती है। क्षीण चन्द्रमा लग्नमें तथा

पापग्रह ८, १, ४, ७, १० में स्थित हों तो उत्पन्न

बालकका मरण होता है। अथवा दो पापग्रहोंके

बौचमें होकर चन्द्रमा ४, ७, ८ स्थानमें स्थित हो

या लग्न ही दो पापग्रहोंके बीचमें हो तो

जातककी मृत्यु होती है। पापग्रह ७, ८ में हों

और उनपर शुभग्रहकी दृष्टि न हो तो मातासहित

शिशुकौ मृत्यु होती है। राशिके अन्तिमांशमें

चन्द्रमा पापग्रहसे अदृष्ट हो तथा पापग्रह त्रिकोण

(५, ९)-में हो अथवा लग्नमें चन्द्रमा और

सप्तममें पापग्रह हो तो शिशुका मरण होता है।

राहुग्रस्त चन्द्रमा पापग्रहसे युक्त हो और मङ्गल

अष्टम स्थानमें स्थित हो तो माता और शिशु

दोनोंकी मृत्यु होती है। इसी प्रकार राहुग्रस्त सूर्य

यदि पापग्रहसे युक्त हो तथा बली पापग्रह अष्टम

भावमें स्थित हो तौ माता और शिशुका शस्त्रसे

मरण होता है ॥ १०४-१०९॥

१. जिसकी लम्बाई - चौड़ाई बराबर हो, वह चौकोर वस्तु ' चतुरल ' कहलाती है ।

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