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२९० ऋग्वेद संहिता भाग-९

इक्कीस प्रकार की ऐसी छोटी-छोटी चिड़ियाएँ है, जो विष के फलों को खा जाती हैं, पर फिर भी प्रभावित

नहीं होती । इसो प्रकार हम भी विष से मृत्युरहित हों । अश्वारूढ़ सूर्य ने इस विष का निवारण कर दिया है;

मधुला विधा विष को अपृत रूप प्रे बदल देती है ॥१२ ॥

२००३. नवानां नवतीनां विषस्य रोपुषीणाम्‌ |

सर्वासामग्रभं नामारे अस्य योजनं हरिष्ठा मथु त्वा मधुला चकार ॥१३ ॥

निन्यानवे प्रकार की औषधियाँ हैं, जो विषों की निवारक है, उन सभी को हम जानते है । उनके उपयोग

६.५ प्रकार के विष का निवारण होता है । अश्वारद्‌, सूर्य इसका निवारण करे तथा मधुला शक्ति इसे अमृत

॥१३ ॥

२००४ त्रिः सप्त मयूर्य: सप्त स्वसारो अग्रुवः ।

तास्ते विषं वि जभ्रिर उदकं कुम्भिनीरिव ॥१४॥

है विष पीडित प्राणी !जिस प्रकार घड़ों मे ख्रियाँ जल ले जाती हैं, उसी प्रकार इक्कीस मोरनियां और

भगिनीरूपा सात नदियाँ आपके विष का निवारण करें ॥१४ ॥

२००५. इयत्तकः कुषुम्भकस्तकं भिनद्यच्नश्मना ।

ततो विषं प्र वावृते पराचीरनु संवतः ॥१५ ॥

इतना छोटा सा यह विषयुक्त कीट है, ऐसे हमारी ओर आने वाते छोटे कौर को हम पत्थर से पार डालते

है । उसका विष अन्य दिशाओं में चला जाय ॥१५ ॥ ह

२००६. कुषुम्भकस्तदब्रवीद्भिरेः प्रवर्तमानक: ।

वृश्चिकस्यारसं विषमरसं वृश्चिक ते विषम्‌ ॥ १६ ॥

पहाड़ से आने वाले कुषुम्भक (नेवला) ने यह कहा कि बिच्छू का विष प्रभावहीन है । हे बिच्छू ! तुम्हारे

विष में प्रभाव नहीं है ॥१६ ॥

[इस सूक्त में विषैले जीवों के विष के शपन के सूत्र हैं, ज जोध के योग्य हैं।]

॥ इति प्रथमं मण्डलम्‌ ॥

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