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+ स्रैक्षिप्ति शिवपुराण
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हिमवानको भगवान् शिवके पास लग्मपत्रिका भेजना, विवाहके लिये
आवश्यक सामान जुटाना, मङ्गलाचारका आरम्भ करना, उनका
निमन्रण पाकर पर्वतो ओर नदियोंका दिव्यरूपे आना, पुरीकी
सजाक्ट तथा विश्वकर्माह्ारा दिव्य-मण्डय एवं देवताओंके
निवासके लिये दिव्यलोकको निर्माण करवाना
नारदजीने पृच्छ - -तात } भ्रह्मप्राज्ञ !
श्रभो ! आप कृपापूर्वक यह बताइये कि
सम्मर्कियोंके चले जानेपर हिमानेलने क्या
किया ।
बहाजीने कहा--मुनीक्षर !
अरुन्धतीसहित उन सप्तर्पियोंके चले जानेपर
हिमवानले जो कार्य किया, वह तुम्हें बता
रहा हूँ। सप्तर्षियोंके जानेके वाद अपने मेर
उस पत्निकाको उन्होंने भगवान् श्चिवके पास
भेजा। पर्वतराजके बहुत-से आत्मीयजन
असन्नमनसे नाना प्रकारकी सामग्नियाँ लेकर
यहाँ गये। कैत्यासपर भगवान् शिवके
समीप पहुँचकर उन ल्लोगोनि क्षिवको तिलक
लगाया और यह ल्कप्रपत्र उनके हाथमें
दिया। वहाँ भगवान् शिवने उन सबका
कशायोग्य विशेष सत्कार किया फिर दे
सख लोग प्रसन्नचित्त हो झलराजके पास
ल्त्रैट आये । महेश्वरके द्वारा विशेष सप्मानित
होकर बड़े हर्षके साथ लौटे हुए उन लोगोको
देखकर हिमवान्के हृदयमें अत्यन्त हर्ष
हुआ। तत्पश्चात् आनन्दित हो दौलराजने
नाना देश्ॉमें रहनेवाले अपने बन्धुओंको
लिस्प्रित निमन्त्रण भेजा, जो उन सबको
सुर देनेवाला थ । इसके बाद वे बड़े आदर
और उत्साहके साध उत्तम अत्र एवं नाना
प्रकारकी विवाहोचित सामग्रियोंका संभ्रह
करने गे । उन्होंने चाबल, गुड़, शक्कर,
जटा, दूध, दही, घी, पिठाई, नमकीन
पदार्थ, मक्खन, पकथान, महान् स्वादिष्ट
रस और नाना प्रकारके व्यञ्जन इतने अधिक
एकत्र किये कि सूखे पदा्थोके पहाड़ खड़े हो
गये और दव पदार्धोकी बावड़ियाँ खन
गयीं । शिवे पार्षदों और देवताओंके लिये
ही हितकर नाना प्रकारकी वस््तुएँ, भाँति-
तिके बहुमूल्य वस, आगमें तपाकर शुद्ध
किये हुए सुवर्ण, रजत और विभिन्न
प्रकारके मणिरत््--इनका तथा अन्य
उपयोगी द्रव्योंका विधिपूर्वक संग्रह करके
गिरिराजने मजूलतकारी दिनम पाद्गततिक
कृत्य करना आरम्भ किया। पर्वतराजके
घरकी स्क्रियोंने पार्वतीका संस्कार करवाया ।
भांति- भातिके आभूषणोंसे विभूषित हुई
टाजभरकनकी उन सुन्दरी स्ििमोनि सानन्द
मद्गलेकार्यका सम्पादन किया। नगरके
ब्राह्मणोंकी श्नियोनि स्यय॑ बड़े हर्षके साथ
स्तरेकोचारका अनुष्ठान किया। उसमे
मद्गत्वपुर्वक भाँति-भाँतिके उत्सव पनोये
गये । हर्षभरे हदयसे उत्तम मङ्गलाचारका