१०० | [ मत्स्यपुराण
धुन्धूमारत्वमगमद् धुन्धु ना ना हतः पुरा ।३१
तस्य पुत्रास्त्रयो जाता इढाश्वो दण्ड एव च ।
कपिलाश्वश्च विख्यातो धौन्धुमारिः प्रतापवान् ॥३२
हृढ़ाश्वस्य प्रमादश्चहयश्वस्तस्यचात्मजः ।
हयै्वस्य निकुम्भोऽभूत्संहताश्वस्तताऽभवत् ।।३३
अकृताश्वो रणाश्वश्च संहताश्वसुतावुभौ ।
युवनाश्वो रणाश्वस्य मान्धाताचततोऽभत् ३४
मान्धातुः पृरुकुत्सोऽद्रम्मसेनश्च पार्थिव: ।
मुचकुन्दश्च विख्यातः गत्रजिच्चः प्रतापवान् ॥३५
सुयोधन के पुत्र का नाम पृथु और पृथु का आत्मज विश्वग नाम-
धारी था । इसके पुत्र का नाभ इन्दु था और इन्दु का सुत युवनाश्व
हुआ था ।२६। भ्रावस्त महान् तेज वाला था। इसके वृत्र का नाम
वत्सक था । हे द्विजगणो ! इसी ने गौड़ देश में श्रीवस्ती नाम वाली पुरी
का निर्माण किया था ३०। श्रीवस्त से वृहृदश्व ने जन्म प्राप्त किया
था और इसके पुत्र का नाम कुवलाश्व हुआ था । यह ॒धुन्धुन्मारता को
प्राप्त हो गया था क्योंकि पहले घुन्धु नामधारी का हनन किया था \३१।
इसके तीन सुतो ने जन्म ग्रहण क्रिया था । उनके नाम हढ़ाश्व और दड
थे तथा तीसरा कपिलाएव था जो प्रताप वाला धौन्धुमारि नाम से
विख्यात हुआ था । ३२ | हेढ़ाश्व का प्रमोद और प्रमोद का हर्यश्व
पुत्र हुआ था । हयेश्व का निकुम्भ सुत उत्पन्न हुआ था फिर इसका पुत्र
संहताण्व पैदा हुआ था ।३३। संहताश्व के अकृताव और उरणाश्व ये
दो सुत हुये थे । उरणाश्व का पुत्र युवनाश्व हुआ तथा फिर इसके
मान्धाता नाम वाले ने जन्म ग्रहण किया था ।|३४। मान्धाता के पुत्र
का नाम पुरुकुत्स था अध्मंसेन पाथिव भी हुआ था एवं मुचुकुन्द परम
विख्यात हुआ ओर प्रतापधारी शत्रुजित् भी हुआ था ! ऐसे ये चार धुन्र
हुये थे ।३४।