+ पुराणे परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
सूर्यनारायणके प्रिय पुष्प, सूर्यमन्दिरमें मार्जन-लेपन आदिका फल,
दीपदानका फल तथा सिद्धार्थ-सप्तमी-ब्रतका विधान और फल
ख्रह्माजी बोले--याज्ञवल्क्य ! एक यार मैंने भगवान्
सूर्यनारायणसे उनके प्रिय पुषपोकि विषयमे जिज्ञासा की । तब
उन्होंने कहा था कि मल्लिका- (चेर फूकतकी एक जाति) पुष्प
मुझे अत्यन्त प्रिय है। जो मुझे इसे अर्पण करता है, वह उत्तम
भोगोंको प्राप्त करता है। मुझे शेत कमल अर्पण करनेसे
सौभाग्य, सुगन्धित कुटज-पुष्पसे अक्षय ऐशर्यकी प्राप्ति होती
है तथा मन्दार-पुष्पसे सभी प्रकारके कुछ-रोगोंका नाश होता
है ओर बिल्व-पत्रसे पूजन करनेपर विपुल सम्पत्तिकी प्राप्त
होती है। मन्दार-पुष्पकी मालासे सम्पूर्ण कामनाओँकी पूर्ति,
यकुल- (मौलसिरी-) पुष्पकी मालासे रूपवती कन्याका
ल्थरभ, पलाझएष्पसे अरिष्ट-दान्ति, अगस्त्थ-पुष्पसे पूजन
करनेपर (मेरा) सूर्यनागयणका अनुग्रह तथा करवीर-
(कमैल-) पुष्प समर्पित करनेसे मेरे अनुचर होनेका सौभाग्य
श्ाप्त होता है। बेलाके पुष्पोंसे सूर्यकी (मेरी) पूजा करनेपर मेरे
स्त्रेककी प्राप्ति होती है। एक हजार कमल-पुष्प चढ़ानेपर मेरे
(सूर्य) तरेके निवास करनेका फल प्राप्त होता है। बकुल-
पुष्प अर्पित करनेसे भानुलोक प्राप्त होता है। कस्तूरी, चन्दन,
कुंकुम तथा कपूरके योगसे बनाये गये यक्षकर्दम गन्धका
लेपन करनेसे सरति प्राप्त होती है । सूर्यभगवानके मन्दिरका
मार्जन तथा उपलेपन करनेवाला सभी रोगोंसे मुक्त हो जाता है
ओर उसे द्र ही प्रचुर घनकी प्राप्ति होती है। जो भक्तिपूर्वक
गेरूसे मन्दिस्का लेपन करता है, उसे सम्पति प्राप्त होती है और
वह रोगौसे मुक्ति प्राप्त करता है और यदि मृत्तिकासे लेपन करता
है तो उसे अठारह प्रकारके कुप्टरोगॉंसे मुक्ति मिल जाती है ।
सभी पुष्पोसें करबीरका पुष्य और समस्त विलेपनॉपें
रक्तचन्दनका विलेपन मुझे अधिक प्रिय है। करवीरके पुष्पोंसे
जो सूर्यभगवान्की (मेरी) पूजा करता है, वह संसारके सभी
सुखोंको भोगकर अन्तपे स्वर्गलोकमें निवास करता है।
प्रत्दिस्पें लेपन करनेके पश्चात् मण्डल बनालेपर
सूर्यस्थेककी प्राप्ति होती है । एक मण्डल बनानेसे अर्थ प्राप्ति,
दो मण्डल बनानेसे आरोप्य, तीन मण्डलकी रचना करनेसे
अविच्छिन्न संतान, चार मण्डल बनानेसे लक्ष्मी, पाँच मण्डल
बनानेसे विपुल धन-धान्य, छः मण्डलॉकी रचना कानेसे
आयु, बल और यज्ञ तथा सात मण्डलॉकी रचना करनेसे
पण्डलका अधिपति होता है तथा आयु, धन, पुत्र और
राज्यकी प्राप्ति होती है एवं अन्ते उसे सूर्यलोक मिलता है।
मन्दिरमे धृतका दीपक प्रज्वलित करनेसे नेत्र-रोग नतौ
होता । महुएके तेलका दीपक जलानेसे सौभाग्य प्राप्त होता है,
तिलके तेलका दीपक जल्मनेसे सूर्यललोक तथा कड़आ तेलसे
दीपक जलानेपर अत्रुऑपर विजय प्राप्त होती है।
सर्वप्रथम गन्ध-पुष्प-धूप-दीप आदि उपचारोसे सूर्यका
पूजन कर नाना प्रकारके वैवेद्य निवेदित करने चाहिये। पुष्पोमें
चमेलो और कनेरके पुष्प, धूपो विजय-धूप, गन्धोंमें कुंकुम,
केरषोमं रक्तचन्दन. दीपॉपें घृतदीप तथा नैवेदयो मोदक
भगवान् सूर्यनारायणको परम प्रिय है । अतः इन्हीं वस्तुओंसे
उनकी पूजा करनी चाहिये । पूजन करनेके पश्चात् प्रदक्षिणा
और नयस्कार करके हाथमें श्वेत सरसोंका एक दाना और जल
लेकर सूर्यभगवानके सम्मुख खड़े होकर हृदयमें अभीष्ट
कामनाका चिन्तन करते हुए सरसॉसहित जलको पी जाना
चाहिये, परंतु दाँतोंसे उसका स्पर्श नहीं हो। इसी प्रकार दूसरी
सामरमीको शेत सर्षप (पीत सरसों) के दो दाने जलके साथ
पान करना चाहिये और इसी तरह सातवीं सप्तमौतक एक-एक
दाना बढ़ाते हुए इस मन्त्रसे उसे अभिमन्त्रित करके पान
करना चाहिये--
सिद्धार्थकस्त्व॑ हि त्नेके सर्वत्र श्रूयसे यथा।
तथा मामपि सिद्धार्थमर्थत: कुरुत रखि: ॥
(आहापर्य ६८ । ३६)
तदनन्तर शास्त्रोक्त रोतिसे जप और हवन करना चाहिये ।
यह भी विधि है कि प्रधप सप्तमीके दिन जल्के साध सिद्धार्थ
(सरसों) का पान करे, दूसरी सप्तमीको घृतके साथ और आगे
शहद, दही, दूध, गोमय और पञ्चगव्यके साथ क्रमशः
एक-एक सिद्धार्थ बढ़ाते हुए सातवीं सक्तमीतक सिद्धार्थका
पान करे । इस प्रकार जो सर्पप-सप्ममीका ब्रत करता है, वह
यहुत-सा घन, पुत्र और ऐश्वर्य प्राप्त करता है। उसकी सभी
सनःकामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं और वह सूर्यत्भेकमें निधास
करता है। (अध्याय 5८)