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ययात्यष्ठकसम्वादवर्णन | | १७३

१६-ययात्यष्टकसम्वाद वर्णन

यदा वसन्नन्दने कामरूपे संवत्सराणामयुतं शतानाम्‌ ।

कि कारणं कार्तयुगश्रधान हित्वा तह वसुधामन्वपद्यः । १

ज्ञाति सुहृत्‌ स्वजनो यो यथेह क्षीण चित्तं त्यज्यते तानवेहिः ॥

तथा स्वे श्रीणपुण्यं मनुष्यन्त्यजन्तिः सद्यः खेचरा देवस्काः ।२

कथं तस्मिन्‌ क्षीणपुण्या भवन्तु संमुह्यते मेऽत्रमनोऽतिमात्रम्‌ \

कि विशिष्टाःकस्य धामोपयान्ति तद्र ब्र हि क्षेत्रवित्त्वं मतोमे।३

इमं भौमं नरकन्ते पतन्ति लालप्यमाना नरदेव ! सर्वे ।

ते कं ङ्कुगोभायुपलाणनाथे क्षितौ विचृद्धि बहुधा प्रयान्ति ।४

तस्मादेवं वजनीयं नरेन्द्रः दुष्टं लोके गहणी यञ्न्व कम्मे ।

आख्यात ते पाथिकः सर्वमेतत्‌ भूयश्चेदानीं वद किन्मे वदामि ।५

यदा तु कांस्ते- वित्तुदन्ते वयांसि तथा गृ ध्नाःशितिकण्ठाः पत ङ्गाः।

कथं भवन्ति कथमाभवन्ति त्वत्तो भीमं नरकमहं णोभि ।६

अष्टक ने कहा-काम रूप नन्दन वन में एक से अवन (दण संहस्र)

सम्वत्सरो तक वास करते हुए' कात्ता युग प्रधान उसका त्याग करके

पुनः इस बसुधा पर प्राप्त हो गया था-इसका क्या कारण हैं? ।१।

ययाति ने कहा--जिस' तरह से यहाँ पर चित्त के क्षीण हो जाने पर

मानवोके द्वारा अपनी ज्ञातिं वाला-सुहूद ओर स्वजन त्यागदिया जाया

करता है उसी भाँति स्वर्ग में खेचर देवों के संच्र में भी क्षीण पृण्य वाले

मनुष्य को तुरन्त ही' त्याग दिया करते ।२। अष्टक ने कहा--वहाँ

पर पुण्यों को क्षीण करने' वाले कैसे' हो जाते हैं-इस विपय पे मोरा मन

अत्यधिक मोहित' हो जाता है ॥ किस विशेषता से युक्त. पुरुष किसके

धाम को जाया करते हैं-यह सन्न आप हमको बतलाइये क्योकि मोरे

विचार में आप पूर्णतया क्षेत्र के वेक्ता हैं ।३। ययाति ने कहा--हे

लालप्यमानः सब इस आपके भूमिमें रहने कले नरक में गिरा कर्ते ।

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