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* ब्वैततीर्थ, शुक्रतीर्थं ओर इद्धतीर्थका माहात्म्य * १६५

गौओंके बिना जीवन नहीं रह सकता।' उस | बोले- आपलोग गो-यज्ञ कीजिये, तभी दिव्य

समय मैंने देवताओंसे कहा-'जाओ, भगवान्‌ | और मानस गौएँ प्राप्त होंगी।' तत्पश्चात्‌ गौतमी

शंकरसे याचना करो।' तदनन्तर उन्होंने भगवान्‌ गड्भाके तटपर देवताओंने गोयज्ञका आयोजन

शंकरकी स्तुति करके उनसे सब हाल कहा।| किया। फिर वहाँसे गौएँ बढ़ने लगीं । तभीसे

महादेवजीने भी देवताओंको उत्तर दिया-' इस | वह तीर्थ " गोवर्धन ' नामसे प्रसिद्ध हुआ। वह

विषयमे नन्दौ जानते हैं।' तब सब देवता | देवदाओंकी प्रीति बढ़ानेवाला है । मुनिश्रेष्ट !

नन्दिकेश्वरके पास जाकर बोले-' हमे जगत्‌का वहां किया हुआ केवल स्नान भी सहस गो-

उपकार करनेवाली गौएँ दीजिये ।' नन्दी | दानोंका फल देनेवाला है ।

श्वेततीर्थ, शुक्रतीर्थं और इन्द्रतीर्थका माहात्म्य

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! श्वेततीर्थ तीनों

लोकोंमें विख्यात है। उसके श्रवणमात्रसे मनुष्य | | सकते। जिनके ऊपर भगवान्‌ शंकर प्रसन्न हो

सब पापोंसे छुटकारा पा जाता है। पूर्वकालमें | जाये, उन्हें भय कैसा।'

श्वेत नामके एक ब्राह्मण थे, जो महर्षि गौतमके | तब मृत्युने अपना फंदा हाथमें लेकर स्वयं ही

प्रिय सखा थे। वे गोदाबरीके तटपर रहकर | ब्राह्मणके घरमे प्रवेश किया । ब्राह्मण तो भक्तिपूर्वक

अतिथियोंके स्वागत- सत्कार लगे रहते और | भगवान्‌ शिवकी पूजा कर रहे थे। उन्हें न तो

मन-वाणी तथा क्रियाद्वारा भगवान्‌ शिवका भजन | मृत्युके आनेका पता था और न यमदूतोंके।

करते थे। वे सदा भगवान्‌ सदाशिवकी पूजा और | श्वेतके समीप पाशधारी मृत्युको खडा देख

ध्यान करते रहते थे। शिवकरे भजने हौ उनकी दण्डधारी भैरवने विस्मित होकर पूछा-- मृत्युदेव !

आयु पूरी हो गयी । तब यमराजके दूत उन्हें ले | यहाँ क्या देखते हो ?' मृत्युने उत्तर दिया--ै

जानेके लिये आये, परंतु नारदजी ! वे ब्राह्मण- | श्वेतको ले जानेके लिये यहाँ आया हूँ, अतः

देवताके घरमे प्रवेश न कर सके । जब ब्राह्मणकी | इन्हींको देखता हूँ।' भैरवने कहा--' लौर जाओ ।'

भृत्युका सभय व्यतीत हो गया, तब चित्रकनै मृत्युन श्रैतपर अपना फंदा फेंका। यह देखकर

मृत्युसे पूछा--' मृत्यो ! श्वेतका जीवन समाप्त हो | भैरव कुपित हो उठे। उन्होंने शिवके दिये हुए

चुका है, वह अबतक क्यो नहीं आया? तुम्हारे | दण्डसे मृत्युपर गहरी चोट की । मूत्युदेवता पाश

दूत भी अभीतक नहीं लौटे । ऐसा होना उचित | हाथमे लिये हुए ही धरतीपर गिर पड़ । मृत्युको

नहीं।' यह सुनकर मृत्युकों बड़ा क्रोध हुआ और मारा गया देख यमदूत भाग गये । उन्होंने मृत्युके

ये स्वयं ही श्वेतके घरपर पधारे। उनके दूत | वधका समाचार यमराजसे कहा। यह सुनकर

भयभीत होकर बाहर ही खड़े थे । उन्हें देखकर | महिषवाहन यमराजको बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने

मृत्युने पूछा-'दूतों यह क्या बात है?" दूत | अधिक बलवान्‌ चित्रगुप्त, अपनी रक्षा करनेवाले

ब्रोले--' श्वेत भगवान्‌ शिवके द्वारा सुरक्षित हैं।| यमदण्ड, महिष, भूत, वेताल तथा आधि-व्याधिर्योको

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