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२८० संक्षिस ब्रह्मपुराण

थीं, वे सब निद्राके कारण अचेत पड़ी थीं। | देवताओंने मुझे मार डालनेका यत्र प्रारम्भ किया

वसुदेवजौने चुपकेसे अपने बालकको यशोदाकी | है। किंतु वे मेरे पराक्रमसे भलीभौति पीड़ित हो

शय्यापर सुला दिया और कन्याको लेकर तुरंत | चुके हैँ । अतः मैं उन्हें वीरोकी श्रेणीमें नहीं गिनता।

लौट आये। जागनेपर यशोदाने देखा, मेरे नील | दैत्यवीरो! मुझे तो कन्याकी कही हुई बात आश्चर्य -

कमलके समान श्यामसुन्दर बालक हुआ है ।' | सी प्रतीत होती है । देवता मेरे विरुद्ध प्रयत्न कर रहे

इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । वसुदेवजी भी |हैं-यह जानकर मुझे हँसी आ रही है। तथापि

कन्याको लेकर अपने घर लौट आये ओर | दैत्येश्वरो! अब हमें उन दुष्टोंका और अधिक

देवकीकौ शय्यापर उसे सुलाकर्‌ पहलेकौ भाँति अपकार करनेकी चेष्टा करनी चाहिये। देवकीके

बैठ रहे । इतनेमें ही बालकके रोनेका शब्द सुनकर | गर्भसे उत्पन्न हुई बालिकाने यह भी कहा है कि

पहरा देनेवाले द्वारपाल सहसा उठकर खड़े हो “भूत, भविष्य और वर्तमानके स्वामी विष्णु, जो

गये । उन्होंने देवकौके संतान होनेका समाचार पूर्वजन्ममे भी मेरी मृत्युके कारण बन चुके हैं,

कंससे निवेदन किया। कंसने शीघ्र ही वहाँ, क -न-करहीं उत्पन्न हो गये।' अतः इस भूतलपर

पहुँचकर उस बालिकाको उठा लिया देवको रध | बालकोंके दमनका हमें विशेष प्रयत करना चाहिये।

हुए कण्ठसे 'छोड़ो, छोड़ दो इसे" यों कहकर | जिस बालकमें बलकी अधिकता जान पड़े, उसे

उसे रोकती ही रह गयीं। कंसने उस कन्याको | यत्नपूर्वक मौतके घाट उतार देना चाहिये।'

एक शिलापर दे मारा; किंतु बह आकाशमें ही | असुरॉको ऐसी आज्ञा देकर कंस अपने घर

ठहर गयी और आयुधोंसहित आठ बड़ी-बड़ी | गया और विरोध छोड़कर वसुदेव तथा देवकीसे

भुजाओंवाली देवीके रूपमें प्रकट हुईं। उसने ऊँचे | बोला--' मैंने आप दोनोंके इतने बालक व्यर्थ ही

स्वरसे अद्रृहास किया और कंससे रोषपूर्वक | मारे। मेरे नाशके लिये तो कोई दूसरा ही बालक

कहा--' ओ कंस! मुझे पटकनेसे क्या लाभ हुआ। "गख: 4

जो तेरा वध करेंगे, वे प्रकट हो चुके हैं।

देवताओंके सर्वस्वभूत वे श्रीहरि पूर्वजन्ममें भी |

तेरे काल थे। इन सब बातोंपर विचार करके तू

शीघ्र ही अपने कल्याणका उपाय कर।' यों

कहकर देवी कंसके देखते-देखते आकाशमार्गसे

चली गयी । उसके शरीरपर दिव्य हार, दिव्य ,

चन्दन और दिव्य आभूषण शोभा पा रहे थे और |

सिद्धगण उसकी स्तुति करते थे।

तदनन्तर कंसके मनमें बड़ा उद्वेग हुआ।

उसने प्रलम्ब ओर केशौ आदि समस्त प्रधान

असुरोंको बुलाकर कहा--' महाबाहु प्रलम्ब ! केशी |

धेनुक ! और पूतना! अरिष्ट आदि अन्य सब

वौरोके साथ तुमलोग मेरी बात सुनो। दुरात्मा

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