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सूर्यनारायणकी रथयात्राका फल

ख्रह्माजीनेी कहा--हे महादेव! इस प्रकार अमित

ओजैस्वी भगवान्‌ भास्करकी रथयात्रा करनेयाला और दूसरेसे

करनेवाल्त्र व्यक्ति परार्धं यर्षों (त्रह्माजीकी आधी आयु) तक

सूर्यलोकमें निवास करता है। उस व्यक्तिके कुलमें न कोई

दरिद्र होता है न कोई रोगी। सूर्य भगवानके अध्यङ्गके लिये

स्रौ समर्पण करनेवाले तथा अनेक प्रकारक तिलक करनेवाले

व्यक्तिको सूर्यलोक प्रा होता है। गङ्गा आदि तीथोंसे जल

ल्मकर जो सूर्यनारायणको स्वान कराता है, वह वरुणलोकमें

निवास करता है। लाल रेगका भात और गुड़का नैवेद्य

समर्पित करनेवाल्म व्यक्ति प्रजापतिस्प्रेकको प्राप्त करता है।

भक्तिपूर्वक सूर्यनाशयणको स्नान कराकर पूजन करनेवात्प

व्यक्ति सूर्यलोकमें निवास करता है। जो व्यक्ति सूर्यदेवको

रथपर चढ़ाता है, रथके मार्गको पवित्र करता और पुष्प, तोरण,

पताका आदिसे अलेकृत करता है, वह वायुलोकमें निवास

करता है। जो व्यक्ति नृत्य-गीत आदिके द्वारा यृहद्‌ उत्सव

मनाता है, वह सूर्यलोकको प्राप्त करता है । जब सूर्यदेव रथपर

विराजमान होते हैं, उस दिन जागरण करनेवाल्ला पुण्यवान्‌

व्यक्ति निरन्तर आनन्द प्राप्त करता है। जो व्यक्ति भगवान्‌

सूर्यकी सेवा आदिके लिये व्यक्तिकों नियोजित करता है, वह

सभी कामनाओंको प्राप्तकर सूर्यस्थ्रेकमें निवास करता है।

रथारूढ भगवान्‌ सूर्वका दर्शन करना बड़े ही सौभाग्यकी बात

है। जव रथकी यात्रा उत्तर अथवा दक्षिण दिशाकी ओर होती

है, उस समय दर्शन करनेवात्म् व्यक्ति धन्य हैं। जिस दिन

रथयात्रा हो, उसके सालभर बाद उसी दिन पुनः रथयात्रा करनी

चाहिये। यदि वर्षके यद यात्रा न करा सके तो यारहवें वर्ष

अतिश्य उत्साहके साथ उत्सव सम्पन्न कर यात्रा सम्पन्न करानी

"व्क

चाहिये। बोचमें यात्रा नहीं करनी चाहिये ।

इसी प्रकार इन्द्रध्वजके उत्सवे भी यदि विघ्न हो जाय

तो बारहवें वर्षमे ही उसे सम्पन्न करना चाहिये । जो व्यक्ति

रथयात्राकी व्यवस्था करता है, वह इन्द्रादि लोकपालके

सायुज्यको प्राप्त करता है । यात्रामे विघ्न करनेवाले व्यक्ति देह

जातिके राक्षस होते है । सूर्यनारायणकी पूजा किये ब्रिना जो

अन्य देवताओंकी पुजा करता है, वह पुजा निष्कल है ।

रथयात्राके समय जो सूर्यनारायणका दर्शन करता है, यह

निष्पाप हो जाता है। षष्ठी, सप्तमो, पूर्णिमा, अमावास्या और

रविवारके दिन दर्शन करनेसे बहुत पुण्य होता है। आषाढ़,

कार्तिक और माघकी पूर्णिमाकों टर्न करनेसे अनन्त पुण्य

होता है। इन तीन मासि भी रथयात्रा करनी चाहिये। इनमें

भी कार्तिकी (कार्तिक-पूर्णिमा) को विशेष फलदायक होनेसे

महाकार्तिकी कहा गया है। इन सम्यो उपवासकर जो

भक्तिपूर्वकं भगवान्‌ सूर्यकी पूजा करता है, वह सद्रनिको प्राप्त

करता है। सैसारपर अनुग्रह करनेके सवयि प्रतिमापें स्थित

होकर सूर्यदेव स्वयै पूजन ग्रहण करते हैं। जो व्यक्ति मुण्डन

कराकर स्रान, जप, होम, दान आदि करता है, वह दीक्षित

दयेत है। सूर्य-भक्तको अवद्य ही मुण्डन कराना चाहिये । जो

व्यक्ति इस प्रकार दीक्षित होकर सूर्यनाययणकी आराधना

करता है, वह परम गतिको प्राप्त करता है। महादेवजी ! इस

रथयात्राके विधानका मैंने वर्णन किया। इसे जो पढ़ता है,

सुनता है, वह सभी प्रकारके रोगोंसे मुक्त हो जाता है और

विधिपूर्वक रथयात्राका सम्पादनं करनेवात्पर व्यक्ति सूर्यलोकको

जाता है।

(अध्याय ५८)

रथसप्तमी तथा भगवान्‌ सूर्यकी महिमाका वर्णन

ब्रह्माजी बोले--हे रुद्र! माप मासके शुक पक्षको

चष्ट तिथिको उपवास करके गन्धादि उपचारौसे भगवान्‌

सूर्यनारायणकी पूजाकर रात्रिम उनके सम्पुख शायने करे ।

सप्रमीमे प्रातःकाल विधिपूर्वक पूजा करें और उदासतापूर्वक

ब्राह्मणॉंको भोजन कराये । इस प्रकार एक वर्षतक सप्तमीको

ब्रतकर रथयात्रा करे । कृष्णपक्षमें तृतीया तिचिको एकभुक्त,

चतुर्थको नक्तचत, पश्षमीकों अयाचितत्रत' , षा्ठीको पूर्ण

उपवास तथा सप्नमीकौ पारण करे । रथस्थ भगवान्‌ सूर्यकी

अलीभाँति पूजाकर सुवर्ण तथा रत्रादिते अलंकृत तथा तोरण,

पताकादिसे सुसज्जित रथम सूर्यनारायणकी प्रतिपा स्थापित कर

१- विना किसीसे मि जो भोजत सिल जाय, उसे अयाचित-व्रत कण्ट टै ।

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