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आन्चारकाण्ड ]

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<३

पवित्र संगमपर तीन रात्रियोत्क उपवास रख करके

प्रतिदिन तीनों कारलें स्नान करके भी द्विज ब्रह्महत्याके

पापसे मुक्त हो जाता है। सेतुबन्ध रामेश्वरम्‌ ( कपालमोचन

तीर्थं या वागणसीके पवित्र तीर्थ) -में स्नान करके ब्रहह्महत्याके

पापसे मुक्ति हो जाती है।

मद्मपौ द्विज अग्निवर्णे सदृश {अन्तःकरणको

जला देनेवाली) खौलतौ हुईं मदिरा अधवा दृध,

घृत या गोमूत्रका पान करके तज्जनित पापसे मुक्ति प्राप्त

कर लेता है। मुवर्णकौ चोरौ करनेवाला राजाओंके द्वारा

दण्डरूपमें मूसलप्रहारसे पापमुक्त हो जाता है अथवा जीर्ण-

शीर्ण यस्त्र धारण करके वने ब्रह्महत्यानाशक प्रायश्चित्त-

ग्रतको करनेसे पापमुक्त हो जाता है।

कामसे मोहित ब्राह्मण यदि अपने गुरुकी पत्रीके पास

जाता है तो उसे इस गुरुपन्रीगमनरूप पापसे मुक्त होनेके

लिये जलती हुई--तपती हुई लौह-निर्मित स्त्रीका सर्वाङ्गं

आलिङ्गन करना चाहिये। अथवा ब्रह्महत्याके पापसे मुक्तिके

लिये जो त्रत विहिते है, उस त्रतका अनुष्ठान करना चाहिये।

चार या पाँच चान्द्रायणव्र॒त करनेसे भी गुरुपत्रीगमनजनित

पापसे मुक्ति हो सकती है।

जो द्विज पतितजनोंका संसर्गं करता है, उसे विभिन्न

संसगाँसे होनेवाले पापॉंकों दूर करनेके लिये उन-उन

पाषोंके निपित्त कहे गये ख़तोका पालन करना चाहिये।

अथवा वह आलस्यसे रहिते होकर एक संवत्सरपर्यन्त

तप्तकृच्छुक्तका अनुपालन करें। विधिवत्‌ किया गया

सर्वस्वदान सभी पापोंकों दूर करनेवाला होता है। अथया

विधियत्‌ चान्द्रायणन्रत तथा अतिकृच्छरत्रत भी सभी पापको

दूर करनेवाला होता है।

गया आदि पुृष्यक्षेत्रॉंकी यात्रा करनेसे भी ऐसे

पार्पोका विनाश हों जाता हैं। अपावास्या तिथिमें जो

महादेव भगवान्‌ शङ्करकौ सम्यक्‌ू-रूपसे आराधना करके

ब्राह्मणोंकों भोजन प्रदान कराता है, वह सभी पापोंसे मुक्त

हो जाता है।

जो मनुष्य कृष्णपक्षको चतुर्दशों तिधिमें उपवास

रखकर संयतचित्तसे पवित्र नदोमे स्नान करके 3>कारसे

युक्त यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत. काल तथा

सर्व॑भूतक्षय- इन नामोंका उच्चारणकर तिलसे संयुक्त सात

जलाञ्जलिर्योसि तर्पण करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो

जाता है।

इन ब्रतोके पालन करते समय शान्त रहकर तथा

मनका निग्रहकर, ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए भूमिपर

सोना चाहिये और उपवास रखकर ब्राह्मणकी पूजा करनी

चाहिये। (कार्तिक) शुक्लपश्चकौ षष्ठौ तिथिमें उपवास

रखकर सप्तमौ तिथिकों सूर्यदेवकी पूजा करनेसे भी सभौ

प्रकारके पामि मुक्ति हो जाती है।

शुक्लपक्षकी एकादशी तिधिमे निराहार रहकर जो

द्वादशौ तिथिमें जनार्दन भगवान्‌ विष्णुकी पूजा करता है,

वह समस्त महापापोंसे मुक्त हो जाता है।

सूर्य-चन््र-ग्रहण आदि समर्यो मन्त्रका जप,

तपस्या, तौर्थसेवन, देवार्चन तथा ब्राह्मण-पूजन- ये सभी

कृत्य भी महापातकॉको नष्ट करनेवाले होते हैं। समस्त

प्रापोंसे युक्त मनुष्य भी पुण्य-तोर्थोमें जाकर नियमपूर्वक

अपने प्राणोंका परित्यागकर समस्त पारपोमे मुक्त हो

जाता है।

पतित्रता नारी पतिके देहावस्यनके बाद पतिका वियोग

अस्म होनेके कारण पति-धर्मके अनुसार पतिके शरीरके

साथ शास्त्रीय विधिका पालन करते हुए अग्निमे प्रवेश

करती है तो ब्रह्महत्या, कृतघ्नता आदि बड़े-बड़े पातर्कोसि

दूषित भी अपने पतिका उद्धार कर देती है।

जो स्त्री पतिद्रता है, अपने पतिकी सेवा-शुश्रुधामें

दत्तचित्त रहती है, उसको इस लोक तथा परलोकपें कोई

पाप नहीं लगता। यह वैसे ही निर्दोष रहती है, जैसे दशरथपुत्र

श्रीराम पत्री जगद्विख्यात भगवती सीतादेवी लड्ढामें रहकर

भी निर्दोष रहीं तथा (अपने पातिप्रतके प्रभावसे) उन्होंने

राक्षसराज रावणपर विजय प्राप्त की।

है यतब्रत! संयतचित्त होकर विविध शास्त्रीय ब्रतका

अनुष्ठान करनेवाले ! भगवान्‌ विष्णुने मुझसे बहुत पहले ही

यह बताया था कि गयामें स्थित फल्गु (नदी) आदि तीर्थोंमें

यथाविधि श्रद्धाके साथ स्नान करनेवाला व्यक्ति सभी

प्रकारके पातकोंसे मुक्त हो जाता है और समस्त सदाचरणका

फल भी प्राप्त करता है। (अध्याय ५२)

व तन

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