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काण्ड-३ सूक्त-२६ २९

हे सी ! कामदेव द्वारा भली प्रकार संधान किया हुआ बाण सरलगामौ है । अत्यधिक दाहक, हृदय में प्रवेश

करके तिल्ली (प्तीहा) को सुखा देने वाले, उस बाण के द्वार हम आपके हृदय को विदीर्ण करते हैं ॥३ ॥

५४४.शुचा विद्धा व्योषया शुष्कास्याभि सर्प मा । मृदुर्निमन्युः केवली प्रिथवादिन्यनुव्रता।

है सी ! इस दाहक, शोकवर्धक बाण के प्रभाव से म्लान मुख होकर हमारे समप आएँ । काम जन्य क्रोध

को!छोड़कर आप मृदु बोलने वाली होकर हमारे अनुकूल कर्म करती हुई हमे प्राप्त हों ॥४ ॥

५४५. आजामि त्वाजन्या परि मातुरथो पितुः। यथा मम क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ॥

है ख्री ! काम से प्रताड़ित आपको, हम आपके माता-पिता के समीष से लाते है, जिससे आप कर्मों और

विचा से हमारे अनुकूल होकर हमें प्राप्त हों ॥५ ॥

५४६. व्यस्यै मित्रावरुणौ हदशचित्तान्यस्यतम्‌। अथैनामक्रतुं कृत्वा ममैव कृणुतं वशे ॥६।

हे मित्र और वरुण देव ! आप इस स्वी के हदय और चित को विशेष रूप से प्रभावित करे और (पूर्व अभ्यास

पणे कर्मों को भुलाकर इसे मेरे अनुकूल आचरण वाली बनाएँ ॥६ ॥

[२६- दिक्षु आत्मरक्षा सूक्त ]

[ऋषि - अर्वा । देवता - रुद्र. १ प्राचीदिशा साग्नि. २ दश्चिणदिशा सकामाअविष्यव्‌ ३ प्रतीचीदिशा

वैराज, ४ उदीचीं दिशा सवाताप्रविध्य, ५ सौषधिकानिलिम्पा, ६ बृहस्पति युक्त अवस्वान्‌ । छन्द - जगती, १

वरिष्टपू, ३४ भुरिक्‌ त्रिष्टप्‌ । |

५४७. ये३स्यां स्य प्राच्यां दिशि हेतयो नाम देवास्तेषां वो अग्निरिषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि बरूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥९॥

हे देवो ! आप पूर्व दिशा की ओर व्र (शतरूनाशक) नाम से निवास करते रै । आपके बाण अग्नि के समान

तेजस्वी है । आप हमारो सुरक्षा करते में समर्थ होकर हमें सुख प्रदान करें हमारे लिए अपनत्व सूचक शब्दों का

उच्चारण करें | हम आपको नपन करते हुए हवि समर्पित करते हैं ॥१ ॥

५४८ येडेस्यां स्थ दक्षिणायां दिश्यविष्यवो नाम देवास्तेषां वः काम इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥२ ॥

हे देवो ! आप दक्षिण दिशा में अवस्यव (रक्षक) नाम से निवास करते हैं । वांछित विषय की इच्छा ही

आपके बाण ह । आप हमे सुख प्रदान करे तथा हमारे लिए अपनत्व सूचक शब्द कहे । आपके लिए हम नमन

करते हुए हवि प्रदान करते है ॥२ ॥

५४९. ये३स्यां स्थ प्रतीच्यां दिशि वैराजा नाम देवास्तेषां व आप इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽभि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥३ ॥

हे देवो ! आप पश्चिम दिशा में “वैराज (विशेष क्षमताचान्‌) नाम से निवास करते है । वृष्टि का जल ही

आपके बाण है । आप हमे सुखी करें तचा हमारे लिए अपनत्व सूचक शब्द कहें । हम आपके लिए. नमनपूर्वक

हवि प्रदान करते हैं ॥३ ॥

५५०. येहेस्यां स्थोदीच्यां दिशि प्रविध्यन्तो नाम देवास्तेषां वो वात इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥४ ॥

हे देवो ! आप उत्तर दिशा मे 'प्रविध्यन्त' विध करने वाले) नाम से निवास करते है । आपके बाण वावु के

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