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कारणोंके भी कारणभूत सर्वेश्वर विष्णु कौन हैं? नारदजीका यह वचन सुनकर भगवान्‌

जगत्पते! उन ईश्वरका रूप अथवा कर्म क्‍या है ?| नारायण ऋषि हँसे। फिर उन्होंने त्रिभुवनपावनी

इन सब बातोंपर मन-हो-मन विचार करके आप | पुण्यकथाको कहना आरम्भ किया।

बतानेकी कृपा करें। (अध्याय २९)

नारायणके द्वारा परमपुरुष परमात्मा श्रीकृष्ण तथा प्रकृतिदेवीकी

महिमाका प्रतिपादन

श्रीनारायण बोले- गणेश, विष्णु, शिव, | चिन्तन करो। तुम और हम उन भगवानूकी

रुदर, शेष, ब्रह्मा आदि देवता, मनु, मुनीनद्रगण, | कलाकौ कलाके अंशमात्र है । मनु ओर मुनीन

सरस्वती, पार्वती, गङ्गा ओर लक्ष्मी आदि देवियाँ भी उनकी कलाके कलांश ही हैँ । महादेव और

भरी जिनका सेवन करती हैं, उन भगवान्‌ | ब्रह्माजी भी कलाविशेष हैं ओर महान्‌ विराट्‌-

गोविन्दके चरणारविन्दका चिन्तन करना चाहिये। | पुरुष भी उनकी विशिष्ट कलामात्र है । सहल

जो अत्यन्त गम्भीर और भयंकर दावाग्रिरूपौ | सिरोंवाले शेषनाग सम्पूर्ण विश्वको अपने मस्तकपर्‌

सर्पसे आवेष्टित हो छटपटाते अद्भवाले संसार- | सरसोके एक दानेके समान धारण करते हैं, परंतु

सागरको लाँघकर उस पार जाना चाहता है और | कूर्मके पृष्ठभागमें वे शेषनाग ऐसे जान पड़ते है,

श्रीहरिके दास्य-सुखको पानेकी इच्छा रखता है, | पानो हाथीके ऊपर मच्छर बैठा हो। वे भगवान्‌

बह भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरणारविन्दका चिन्तन | कूर्म ( कच्छप) श्रीकृष्णकी कलाके कलांशमात्र

करे। जिन्होंने गोवर्धन पर्वतको हाथपर उठाकर | दै । नारद! गोलोकनाथ भगवान्‌ श्रीकृष्णका निर्मल

ब्रजभूमिको इनद्रके कोपसे बचानेकी कीर्ति प्राप्त यश वेद और पुराणे किञ्चिन्मात्र भी प्रकट नहीं

कौ है, वाराहावतारके समय एकार्णवके जलें | हआ । ब्रह्मा आदि देवता भी उसका वर्णन करनेमें

गली जाती हुई पृथ्वीको अपनी दाढ़ोंके अग्रभागसे | समर्थ नहीं ह । ब्रह्मपुत्र नारद ! तुम उन सर्वेश्वर

उठाकर जलके ऊपर स्थापित किया तथा जो | श्रीकृष्णका ही मुख्यरूपसे भजन करो।

अपने रोमकूपोमें असंख्य विश्व-ब्रह्माण्डको धारण जिन विश्वाधार परमेश्वरके सम्पूर्ण लोकोंमें

करते हैं, उन आदिपुरुष भगवान्‌ गोविन्दके | सदा बहुत-से ब्रह्मा, विष्णु तथा रद्र रहा ही

चरणारविन्दका चिन्तन करना चाहिये। जो | करते हैं तथा श्रुतिं ओर देवता भी उनकी निवत

गोपाङ्गनाओकि मुखारविन्दके रसिक भ्रमर हैं और | संख्याको नहीं जानते हैं, उन्हीं परमेश्वर श्रीकृष्णकी

वृन्दावनरमे विहार करनेवाले हैं, उन व्रजवेषधारी | तुम आराधना करो । वे विधाताके भी विधाता

विष्णुरूप परमपुरुष रसिक-रमण रासेश्वर श्रीकृष्णके | है । वे ही जगत्प्रसविनी नित्यरूपिणी प्रकृतिको

चरणारविन्दका चिन्तन करना चाहिये। वत्स | प्रकट करके संसारकी सृष्टि करते है । ब्रह्मा आदि

नारदमुने! जिनके नेत्रोंकी पलक गिरते ही | सब देवता प्रकृतिजन्य हैं। वे भक्तिदायिनी

जगल्स्नष्टा ब्रह्मा नष्ट हो जाते हैं, उनके कर्मका | श्रीप्रकृतिका भजन करते हैँ । प्रकृति ब्रह्मस्वरूपा

वर्णन करने भूतलपर कौन समर्थ है? तुम भी | है । वह ब्रह्मसे भिन्न नहीं है । उसीके द्वारा सनातन

श्रीहरिके चरणारविन्दका अत्यन्त आदरपूर्वक | पुरुष परमात्मा संसारकी सृष्टि करते हैं, श्रीप्रकृतिकी

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