* दक्षद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति »
आपको नमस्कार है। सोते हुए, सोये हुए, सोक | एवं सांख्यपरायण हैं। आप एक प्रचण्ड घण्टा
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उठे हुए, खड़े हुए और दौड़ते हुए आपको नमस्कार | धारण करनेवाले और घण्य-ध्वनिके समान बोलनेवाले
है । कुबडे ओर कुटिलरूपमें आपको नमस्कार है । | हे । आपके पास बराबर घण्टा रहा करता है । आप
आप सदा ताण्डव नृत्य करनेवाले ओर मुखसे बाजा
अजानेवाले हैं। आपको नमस्कार है। आप बाधा
निवारण करनेवाले, लुब्ध एवं गाना-बजाना करनेवाले
है । आपको नमस्कार है। ज्येष्ठ और श्रेष्ठरूपमें
आपको नमस्कार है। बलका मन्थन करनेवाले
आपको नमस्कार है। ठग्र रूपवाले आपको सदा
नमस्कार है। दस भुजाओंवाले आपको नित्य प्रणाम
है। हाथमें कपाल धारण करनेवाले आपको नमस्कार
है। श्वेत भस्म आपको अधिक प्रिय है। आप
भयभीत करनेवाले, भयंकर एवं कठोर व्रत धारण
करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है।
आपका मुख नाना प्रकारसे विकृत है, जिह्ना
तलवारके समान है और दाँत बड़े भयंकर हैं।
पक्ष, मास और लवार्ध आदि कालके भेद आपके
ही स्वरूप हैं। आपको तूँबी और वीणा बहुत ही
प्रिय है। आपको नमस्कार है। आपका रूप घोर
और अघोर दोनों ही है। आप घोर और अघोरतर
हैं; ऐसे होते हुए भी आप शिव, शान्त तथा
अत्यन्त शान्त हैं। आपको नमस्कार है। शुद्ध
लाखों घण्टेवाले हैं। घण्टोंकी मालो आपको
अधिक प्रिय है। मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आप प्रार्णोको दण्ड देनेवाले, नित्य एवं लोहितरूप
हैं। आपको नमस्कार है। आप हूँ-हूँ करनेवाले,
रुद्र एवं भगाकारप्रिय हैं। आपको नमस्कार है।
आपका कहीँ पार नहीं है। आप सदा पर्वतीय
वक्षोंकोी अधिक पसन्द करते हैं। आपको नमस्कार
है। यज्ञेकि अधिपतिरूपमे आपको नमस्कार है।
आप भूत एवं प्रस्तुत (वर्तमान) -रूप हैं। आपको
नमस्कार है । आप यज्ञवाहक, जितेन्द्रिय, सत्यस्वरूप,
भग, तट, तटपर होने योग्य तथा तटिनीपति
(समुद्र) ह । आपको नमस्कार है । आप अन्नदाता,
अन्नपति और अन्नके भोगी हैँ । आपको नमस्कार
है। आपके सहस्रो मस्तक और सहस्रं चरण हैं।
आप सहस्रौ शूल उठाये रहनेवाले ओर सहस्त्रो
नेत्रोवाले हैँ । आपको नमस्कार है । आपका वर्णं
उदयकालीन सूर्यके समान लाल है। आप बालकरूप
धारण करनेवाले हैं। आपको नमस्कार है । आप
बालसूर्यस्वरूप हैं और काल आपका खिलौना ह ।
बुद्धिरूप आपको नमस्कार है। सबको बाँटना | आपको नमस्कार है। आप शुद्ध, बुद्ध, क्षोभण
आप अधिक पसन्द करते है । आप पवन, सूर्य | तथा क्षयरूप है । आपको नमस्कार है ।*
* नमो होमाय मन्त्राय शुक्लध्वजपताकिने । नमोऽनेम्याय नम्याय नमः किलकिलाय च॥
नमस्त्वां शयमानाय शयितायोत्थिताय च। स्थिताय धायमानाय कुच्जाय कुटिलाय च॥
नमो नर्तनशीलाय मुखवादित्रकारिणे । वाधापहाय सुग्धाय गीतवादित्रकारिणे ४
नमो ज्येष्ठाय श्रेष्ठाय बलप्रमथनाय च। उग्राय च नमो नित्यं नमश्च दशबाहवे॥
नमः कपालहस्ताय सितभस्मप्रियाय च। विभीषणाय भीमाय भीष्मव्रतधराय च॥
नानाविकृतवक्त्राय खड्गजिो्रदटिणे । पक्षमासलवार्धाय तुम्बीवीणाप्रियाय च॥
अघोरघोररूपाय घोराघोरतराय च। नम: शिवाय शान्ताय नमः शान्ततमाय च॥
नमो युद्धाय शुद्धाय संविभागप्रियाय च। पवनाय पतङ्गाय नमः सांख्यपगाय च॥
नमश्चण्डैकघण्टाय घण्टाजल्पाय घण्टिने । सहस्रशतघण्टाय षषण्टामालाप्रियाय च ॥
प्राणदण्डाय नित्याय नमस्ते लोहिताय च. हंहंकाराय र्द्राय भगाकारप्रियाय च॥