* अध्याय १८९ +
३७५
जज जजजजजजजजजजजचरः
एक सौ अटासीवां अध्याय
द्वादशी तिथिके व्रत
अग्निदिव कहते हैं-- मुनिश्रेष्ठ ! अब मैं भोग
एवं मोक्षप्रद द्वादशी-सम्बन्धी व्रत कहता हूँ।
द्वादशी तिथिको मनुष्य रात्रिकों एक समय भोजन
करे और किसीसे कुछ नहीं माँगे। उपवास करके
भी भिक्षा-ग्रहण करनेवाले मनुष्यका द्वादशीत्रत
सफल नहीं हो सकता। चैत्र मासके शुक्लपक्षकी
द्वादशी तिथिको "मदनद्रादशी ' का ब्रत करनेवाला
भोग और मोक्षकी इच्छासे कामदेव-रूपी श्रीहरिका
अर्चन करे। माघके शुक्लपक्षकी द्वादशी -
को “भीमद्वादशी 'का व्रत करना चाहिये ओर
“नमो नारायणाय।' मन्त्रसे श्रीविष्णुका पूजन
करना चाहिये । ऐसा करनेवाला मनुष्य सब कुछ
प्राप्त कर लेता है। फाल्गुनके शुक्लपक्षे
“गोबिन्दद्वादशी 'का त्रत होता है। आश्विनमें
*विशोकटद्ठादशी 'का त्रत करनेवालेको श्रीहरिका
पूजन- करना चाहिये। मार्गशीर्षके शुक्लपक्षकी
द्वादशीको श्रीकृष्णका पूजन करके जो मनुष्य
लवणका दान करता है, वह सम्पूर्ण रसोंके
दानका फल प्राप्त करता है। भाद्रपदमें
*गोवत्सद्वादशी 'का ब्रत करनेवाला गोवत्सका
पूजन करे। माघ मासके व्यतीत हो जानेपर
फाल्गुनके कृष्णपक्षकी द्वादशी, जो श्रवणनक्षत्रसे
संयुक्त हो, उसे 'तिलद्वादशी” कहा गया है। इस
दिन तिलोंसे ही स्नान और होम करना चाहिये
तथा तिलके लड्डुओंका भोग लगाना चाहिये।
मन्दिरमें तिलके तेलसे युक्त दीपक समर्पित
करना चाहिये तथा पितरोंकों तिलाझलि देनी
चाहिये। ब्राह्मणोंकों तिलदान करें। होम और
उपवाससे ही 'तिलद्वादशी 'का फल प्राप्त होता है।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' मन्त्रसे श्रीविष्णुको
पूजा करनी चाहिये । उपर्युक्त विधिसे छः बार
"तिलद्रादशी"का व्रत करनेवाला कुलसहित
स्वगकि प्राप्त करता है। फाल्गुनके शुक्लपक्षे
“मनोरथद्वादशी " का व्रत करनेवाला श्रीहरिका पूजन
करे। इसी दिन * नामद्रादशी 'का त्रत करनेवाला
“केशव” आदि नामोंसे श्रीहरिका एक चर्षतक
पूजन करे । वह मनुष्य मृत्युके पश्चात् स्वर्गे ही
जाता है। वह कभी नरकगामी नहीं हो
सकता। फाल्गुनके शुक्लपक्षे *सुमतिद्दादशी ' का
व्रत करके विष्णुका पूजन करे। भाद्रपद `मासके
शुक्लपक्षे * अनन्तद्रादशी "का त्रत करे। माघके
शुक्लपक्षमे आश्लेषा अथवा मूलनक्षत्रसे युक्त
“तिलद्वादशी ' करनेवाला मनुष्य ' कृष्णाय नमः।'
मन्त्रसे श्रीकृष्णका पूजन करे और तिलोंका होम
करे। फाल्गुनके ` शुक्लपक्षमे “सुगतिद्वादशी ' का
व्रत करनेवाला "जय कृष्ण नमस्तुभ्यम् ' मन््रसे
एक वर्षतक श्रीकृष्णकी पूजा करे। ऐसा करनेसे
मनुष्य भोग और मोक्ष-दोनों प्राप्त कर
लेता है । पौषके शुक्लपक्षकी द्वादशीको ' सम्प्राप्ति-
द्वादशी ' का व्रत करे॥ १--१४॥
इस ग्रकार आदि आण्तेय महापूराणमें द्वादशीके व्रतोका कणति ' नामक
एक सौ अठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १८८ ॥
एक सौ नवासीवां अध्याय
श्रवण-द्वादशी-व्रतका वर्णन
अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं भाद्रपदमासके | विषयमे कहता हँ । यह श्रवण नक्षत्रसे संयुक्त
शुक्लपक्षमें किये जानेवाले ' श्रवणद्वादशी ' त्रतके | होनेपर श्रेष्ठ मानी जातौ है एवं उपवास करनेपर