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गणनाथ पराक्षम वर्णण |] [ ३७६

आलस्य रहित होगयीं थीं और शस्त्र हाथों में लेकर युद्ध करने के लिए

उद्यत हो गयी थीं ।७६। उस दन्ति वदन ने जिनके कलित कण्ठ की ध्वनि

हो रही थी एक जप यन्त्र का सृजन किया था और रात्रि में विनाश कर

दिया था जो बाधक था।७७।

इमं वृत्तांतमाकर्ण्य भंडः स क्षोभमाययौ ।

ससजं च बहुनात्मरूपान्दतावलाननान्‌ ।।७<

ते कटक्रोडविगलन्मदसौरभचञ्चलैः ।

चञ्चरीककुलेरग्रं गीयमान महोदयाः ॥७६

स्फुरहाडिमकिजल्कविक्नेपकररोचिषः ।

सदा रत्नाकरानेकहेलया पातुमूचताः ॥८०

आमोदप्रमुखा ऋद्धिमुख्यणक्तिनिषेविताः ।

आमोदश्च प्रमोदश्च सुमुखो दमु वस्तथा ।।८१

अरिध्नो विध्नकर्ता च षडेते विष्ननायकाः ।

ते सप्तकोटिसंख्यानां हैरंबाणामधीश्वराः ॥८२

ते पूरण्चलितास्तस्य महागणपते रणे ।

अग्निप्राका रवलयाद्विनिगंत्य गजानना: ॥5३

क्रोधहुंकारतुमुला: प्रत्यपद्यंत दानवाच्‌ ।

पुनः प्रचण्डफ्त्कारबधिरीकृतविष्टपा: ॥।८४

इस वृत्तान्त को श्रवर्ण करके भण्ड को बड़ा भारी क्षोभ हुआ था कि

जिसने (गणपति ने) अपने ही समान बहुत से दन्तावलाननों का सृजन किया

था ।७८। उनके कटस्थल से मद निकल रहा था और उसकी गन्ध से बञ्चल

भ्रमरों के समूह आगे मंडरा रहे थे जो गान सा हो रहा था ।७६। उनकी

कान्ति स्फुरित दड़िम के किजल्क के विक्षेपकर रोचि वाले थे जो सदा ही

अनेक सागरों को एक ही बार में पान करने के लिए उद्यत थे ।८०। उनमें

आमोद प्रमुख था और ऋद्धि जिनमें मुख्य थी ऐसी शक्तियों के द्वारा सेवित

थे। येषं विघ्न नायक हैं और सात करोड़ संख्या वाले हेरम्बों के अधीश्वर

थे। इनके नाम--आमोद--प्रमोद--सुमुख--दुमु ख--अरिध्त और बिघ्त

कर्ता ये ये ।८१-८२। ये सब उन महा गणपति के युद्ध में आगे चल दिये ये-।

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