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९८ अर्ववेद्‌ संहिता चाग-२

[ सूक्त-१२० ]

[ ऋषि- देवातिधि । देवता- इन्द्र । छन्द्‌- प्रगाथ ।]

५७३९. यदिन्द्र प्रागपागुदङ्ल्य ग्वा हूयसे नृभिः ।

सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे ॥१ ॥

हे इद्धदेव ! आप स्तोताओं द्वारा सहायता के लिए चारो ओर (पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण) से आवाहित

किये जति है । शत्रुनाशक हे इन्द्रदेव ! "अनु" और 'तुर्वश' (अनुगामियों और दुष्टो को वश में रखने वालों ) के

लिए आपको प्रार्थनापूर्वक बुलाया जाता है ॥१ ॥

५७४०, यदवा रुमे रुशमे श्यावके कृप इन्दर मादयसे सचा।

कण्वासस्त्वा ब्रह्मभि स्तोमवाहस इन्द्रा यच्छन्त्या गहि ।॥२॥

हे इद्धदेव आप रुम, रुशम, श्यावक और कृप (ज्ञानियों, शूरो, धनिको तथा श्रमशीलों ) के लिए प्रसन्न किये

जाते दै । कण्ववंशीय ऋषिगण आपको विभिन्न स्तोत्र से प्रभावित करने का प्रयास डते हैं । हे इन्द्रदेव आप

यज्ञार्थं पारे ॥२ ॥

[ सूक्त-१२१ ]

[ ऋषि- देवातिथि । देवता-इन्द्र । छन्द प्रगाथ ।]

५७४१. अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धा इव धेनवः ।

ईशानमस्य जगतः स्वर्दूमीशानमिनद्र तस्थुषः ॥१ ॥

हे शूरवीर इन्द्रदेव ! आप इस स्थावर एवं जंगम जगत्‌ के स्वामी है । दिव्य दृष्टि-सम्पन्न आपके लिए हम

उसी तरह लालायित रहते है, जैसे न टह हुई गौएँ अपने वछड़े के पास जाने के लिए लालायित रहती हैं ॥१ ॥

५७४२. न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते।

अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥२ ॥

हे ऐश्वर्यवान्‌ इद्धदेव आपके समान इस पृथ्वीलोक या दिव्यलोक में न कोई है, न कभी हुआ है और न

कभी होगा । हे देव ! अश्च, गौ तथा धन- धान्य की कामना वाले हम (स्तोतागण) आपका आवाहन करते हैं ॥२ ॥

[ सूक्त-१२२ ]

[ ऋषि- शुनःशेप । देवता- इनदर । छन्द- गायत्री ।]

५७४३. रेवतीर्नः सधमाद इन्द्रे सन्तु तुविवाजाः । क्षुमन्तो याभिर्मदेम ॥१ ॥

जिनकी स्तुति करके हम प्रफुल्लित होते है, उन इन्द्रदेव के लिए की गई हमारी प्रार्थनाएँ हमें प्रचुर धन-धान्य

प्रदान करने की सामर्थ्य वाली हों ॥१ ॥

५७४४. आ ध त्वावान्‌ त्मनाप्त स्तोतृभ्यो धृष्णवियानः । ऋणोरक्षं न चक्रयोः ॥२ ॥

हे धैर्यशाली इन्द्रदेव! आप कल्याणकारी बुद्धि से स्तुति करने वाते स्तोताओं को अभीष्ट पदार्थ

अवश्य प्रदान करें। आप स्तोताओं को धन देने के लिए रथ के चक्रों को मिलाने वाली धुरी के समान ही

सहायक हैं ॥२ ॥

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