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उत्तरधागे एकचत्वारिश्लोःप्याय:

तेत्र स्नानं प्रकुर्वति अश्वपेषफल लपेता

वहाँ ब्रह्माजों के पुत्र (महर्षि) अङ्गिरा ने तपस्या के दार

देवेश वृषभध्वज विश्वेश्वर कौ आराधना करके उत्तम योग

प्रात किया था। तदनन्तर समस्त पार्पो का नाल करने वाते

कुशतीर्थं में जाना चाहिये। वहाँ स्नान करने से व्यक्ति

अश्रमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है।

कोटिती्ं ततो गच्छेल्सर्वपापप्रणाशनम्‌॥ ३ ४॥

आजन्मनः कृतं पापं स्नातस्तत्र व्यपोहतति।

इसके पश्चात्‌ सर्वपापनाशक कोटितीर्थं में जाना चाहिये।

वहाँ स्नान कर मनुष्य संपूर्ण जन्म के पापों को दूर कर लेता

है।

चन्द्रधागां ततो गच्छेत्सनान॑ तत्र समाचरेत्‌॥ ३५॥

स्नातमात्रो नरस्तत्र सोपलोके महीयते।

तदुपरन्त चन्द्रभागा नदी में स्नान करना चाहिये। वहाँ

स्नानमात्र से हो मनुष्य सोमलोक में महान्‌ आदर प्राप्त करता

है।

नर्मदादक्षिणे कृले सद्ढमेश्नरमुत्मम्‌॥ ३६॥

त्र स्नात्वा नो राजन्पर्वयज्ञएलं लपेत्‌।

नर्षदाया उत्ते कूले तीव परपन्लोभनप्‌॥ ३७॥

आदित्यायतनं सम्यमीक्रेण तु भापितम्‌।

तत्र स्नात्वा तु राजेन्र दत्वा दाननतु शक्तित:॥ ३८॥

तस्य तीर्थप्रभावेण लभते चाक्षवं फलम्‌।

ददा व्याधिता ये तु ये तु दुष्कृतकर्पिणः॥ ३९॥

मुच्यनो सर्वपापेभ्यः सूर्यलोकं प्रयाति च

राजन्‌ । नर्मदा के दक्षिणी तट पर उत्तम संगमेश्वर (तीर्थ)

है। वहाँ स्तात करके मनुष्य सभी यज्ञों का फल प्रात कर

लेता है। इसो तरह नर्मदा के उत्तरो तट पर आदित्यायन

नामक तीर्थ है जिसे स्वयं ईश्वर ने भो रमणीय कहा है।

गजेन्द्र! वहाँ स्नानकर यथाशक्ति दान करने पर उस तीर्थ के

प्रभाव से अक्षय फल मिलता है तथा जो लोग दरिद्र और

व्याधियुक्त तथा जो दुष्ट कर्म करने वाले हैं, वे सभी पापों

से मुक्त होकर सूर्यलोक को जाते हैं।

मातृतीर्थं ततो गच्छेत्स्तानं तत्र समाचरेत्‌॥ ४०॥

स्तातमाशे नरस्तत्र स्वर्गलोकपयापुयात्‌।

ततः पश्चियतों गच्केन्यस्ताशयपुत्तमम्‌॥ ४ १॥

तत्र स्नात्वा तु राजेद्र शुचिर्भूत्वा समाहित:।

काझ्नज्ञ पतेईद्राद्यताविभवविस्तरम्‌॥ ४२॥

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पष्यकेण विमानेन वायुलोकं म गच्छति।

तदनन्तर मातृतीर्थ में जाना चाहिए और वहाँ स्नान करना

चाहिये। वहाँ स्नानमात्र से हो मनुष्य स्वर्गलोक प्राप्त कर

लेता है। इसके पश्चत्‌ पश्चिम की ओर स्थित श्रेष्ठ वायु के

स्थान में जाना चाहिये। राजेन्द्र! वहाँ स्नान करके

प्रयत्रपूर्वक पवित्र होकर अपनी वैभव के अनुकूल द्विज को

स्वर्ण प्रदान करना चाहिये। ऐसा करने वाला मनुष्य पुष्पक-

विमान के द्वारा बायुलोक में जाता है।

ततो गच्छेन राजेद्र अहल्यातीर्थमुत्तमप्‌त

स्नानमातरादप्मरोपिरमोदते कालमुत्तमम॥ ४३॥

राजेनद्र! तदनन्तर श्रेष्ठ अहल्यातीर्थ में जाना चाहिये। वहाँ

स्नान मात्र से मनुष्य उत्तमकाल पर्यन्त अप्सराओं के साथ

आनन्द करता है।

चैत्रमासे तु सम्प्राप्ते शुक्लफक्षे त्रयोदशी।

कामदेवदिने तस्मिन्नहल्यां पूजयेत्तत:॥ ४४॥

यत्र तत्र सपुत्यन्नों नरोऽत्यर्थप्रियो भवेत्‌।

स्त्रोवल्लभो भवेच्छरौमान्कापदेव इवापरः॥ ४५॥

चैत्रमास में शुक्लपक्ष कौ त्रयोदशो जो कामदेव का दिन

है, इस अहल्यातीर्थ में जो मनुष्य अहल्या कौ पूजा करता

है, वह जहाँ कहीं भी उत्पन्न हुआ हो, वह श्रेष्ठ तथा सबका

प्रिय होता है और विशेषकर स्त्रियों को प्रिय लगने वाला,

शोभायुक्त लक्ष्मीवान्‌ तथा रूप से दूसरे कामदेव के समान

हो जाता है।

सरिद समासाश तोर्थ शक्रस्य विश्वुतम्‌।

स्लातपात्रो नरस्तत्र गोसहस्रफलं लपेतू॥४६॥

इसी उत्तम नदी के किनारे इन्द्र के प्रसिद्ध शक्रतीर्थं है।

वहां आकर स्नान करके मनुष्य हजार गोदान का फल प्राप्त

करता है।

सोमतीर्थं ततो गच्छेत्सानं तत्र सपराचेत्‌।

स्नातपाप्रो नरस्तत्र सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ ४७॥

सोमग्रहे तु राजेद्र पापक्षयकरं भवेत्‌।

ब्ैलोक्यकिश्रुतं राजन्सोमतीर्थ महाफलपृ॥ ४८॥

तदनन्तर सोमतीर्थं में जाकर वहाँ स्नान करना चाहिये।

केवल स्नानमात्र से हो मनुष्य सभो पापों से मुक्त हो जाता

है। हे राजेन्द्र! जिस समय चन्द्रग्हण हो उस समय (वहां

स्नान करने से) विशेषकर पापों का क्षय करने वाला होता

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