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३८० | [ अद्याष्ड पुराण

उस अश्नि प्राकार के वलय से गजानन निकलकर चले थे ।८३। उनके क्रोध

पूणं हृङ्कारसे वे परम तुमुल थे और ये सब दानवों के समीप में प्राप्त हो

गये थे । फिर इनकी बड़ी प्रचण्ड फूत्कार शी जिससे विध्टपों को भी वहि-

राकर दिया था ।८४।

पपात दं त्यसंन्येषु गणचक्रचमृगण: ।

अच्छिदन्निशितर्बाणग णनाथ: स दानवान्‌ ॥८५

गणनाथेन तस्याभृद्धिशुक्रस्य महौजसः ।

युद्धमुद्रतहुंकारभिन्नकामु कनिः स्वनम्‌ ८६

भ्रुकुटी कुटिले चक्र दष्टोष्ठमतिपाटलम्‌ ।

विशुक्रो युधि विश्राणः समयुध्यत तेन सः ।८७

शस्त्राघट्टन निस्वान हुँकारंश्च सुरद्विषाम्‌ ।

दं त्यसप्तिखुर कीडत्कुट्‌ालीक्‌टनिस्वनंः ।।८०

फेत्कारंश्च गजद्राणां भयेनाकृन्दनेरपि ।

द्ध षया च हयश्रेण्या रथचक्स्वनैरपि ॥८६ `

धनुषां गुणनिस्स्वान एक चीत्करणैरपि ।।६०

णरसात्कारघोषंश्च वी रभाषाकद'बकंः ।

अट्टहासेमंहेद्राणां सिंहनादं श्च भूरिशः ।।€ १

गण चक्र की सेना का समुदाय देत्यों की सेना में कूद पड़ा था उन

गणनाथ ने अपने तीक्ष्ण बाणों से दानवो को छेद दिया था ।८५। उस गण-

नाथ का महान ओज वाले विशुक्‌ के साथ बड़ा भीषण युद्ध हुआ था जिसमें

बहुत उद्धत हुल्कारें हो रहो थीं ओर धनुषों की टंकार की ध्वनि भी थी।

।८६। विशुक्‌ ने भो टेढो करली थीं और उसके दांत ओर होठ पाठल

वर्ण के थे । ऐसे उसने गणनाथ के साथ युद्ध किया था ।5८७। शस्त्रों के

घट्टन के शब्दों से और असुरों की हुड्लडारों से तथा दैत्यों की सप्तति की

खुरों की कीड़ा से कुद्दालियों के कूट घोषों से दिशाए क्षुब्ध हो रही थीं ।

।८८ गजेन्द्रो के फेत्कारों से तथा भय से जाकृन्दनों से--घोड़ों के हिन-

हिनाने से और रथों के पहियों की ध्वनियों से भी सब दिश'एँ काँपने लगी

थीं ।८६। धनुषों की डोरी की ध्वनियां तथा चक्‌ के चीत्कारें भी उस समय

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