महान् फल प्रदान करनेवाली है। श्रवण-द्वादशोके
दिन नदियोंके संगमपर स्नान करनेसे विशेष फल
प्राप्त होता है तथा बुधवार और श्रवणनक्षत्रसे युक्त
द्वाशशी दान आदि कर्मोमें महान्ू फलदायिनी
होती है॥१-२॥
त्रयोदशीके निषिद्ध होनेपर भी इस ब्रतका
पारण त्रयोदशीको करना चाहिये--
संकल्प-मन्त्र
द्वादश्यां च निराहारो वामन॑ पूजयाम्यहम्॥
उदकुम्भे स्वर्णमयं त्रयोदश्यां तु पारणम्।
*मैं द्वादशीकों निराहार रहकर जलपूर्णं कलशपर
स्थित स्वर्णनिर्मित वामन-मूर्तिका पूजन करता हूँ
एवं मैं ब्रतका पारण त्रयोदशीको करूँगा।'
आवाहन-मन््र
आवाहयाम्यहं विष्णुं वामनं शङ्खुचक्रिणम्॥
सितवस्रयुगच्छन्ने घटे सच्छश्रपाटुके ।
“मैं दो श्वेतवस्त्रोसे आच्छादित एवं छत्र-
पादुकार्ओंसे युक्त कलशपर शङ्खं चक्रधारी
वामनावतार विष्णुका आवाहन करता हूं ।'
स्तानार्पण-मन्त्र
स्नापयामि जलैः शुद्धेर्विष्णुं पञ्चामृतादिभिः ॥
छत्रदण्डधरं विष्णुं वामनाय नमो नमः।
“मैं छत्र एवं दण्डसे विभूषित सर्वव्यापी
श्रीविष्णुको पञ्चामृत आदि एवं विशुद्ध जलका
स्नान समर्पित करता हूँ। भगवान् वामनको
नमस्कार है।'
अर्ध्यदान-मन्तर
अर्ध्यं ददामि देवेश अर्ध्याः सदार्चित ॥
भुक्तियुक्तिप्रनाकीर्तिसर्वशवर्ययुतं कुरु।
"देवेश्वर ! आप अर्घ्यके अधिकारी पुरुषों तथा
दूसरे लोगोंद्वारा भी सदैव पूजित हैं। मैं आपको
अर्घ्यदान करता हूँ। मुझे भोग, मोक्ष, संतान, यश
और सभी प्रकारके ऐश्वर्योंसे युक्त कीजिये।'
फिर “वामनाय नमः' इस मन्त्रसे गन्धद्रव्य
बब 7777772.
समर्पित करे और इसी मन्त्रद्वारा श्रीहरिके उदेश्यसे
एक सौ आठ आहुतियाँ दे ॥ २--७॥
"ॐ नमो वासुदेवाय ।' मन्त्रसे श्रीहरिके
शिरोभागकौ अर्चना करे। ' श्रीधराय नम:।' से
मुखका, "कृष्णाय नम: ।' से कण्ठ-देशका, ' श्रीपतये
नमः।' कहकर वक्षःस्थलकः, ' सर्वास्त्रधारिणे नमः ।'
कहकर दोनों भुजाओंका, ' व्यापकाय नमः ।' से नाभि
और ' वामनाय नमः।' बोलकर कटिप्रदेशका
पूजन करे।'त्रैलोक्यजननाय नमः ।' मन्त्रसे भगवान्
वामनके उपस्थको, 'सर्वाधिपतये नमः।' से दोनों
जक्लओंकी एवं ' सर्वात्मने नमः ।' कहकर श्रीविष्णुके
चरणोंकी पूजा करे ॥ ८--१०॥
तदनन्तर वामन भगवान्कों घृतसिद्ध नैवेद्य
और दही-भातसे परिपूर्ण कुम्भ समर्पित करे ।
रात्रिम जागरण करके प्रातःकाल संगमे स्नान
करे । फिर गन्ध -पुष्पादिसे भगवान्का पूजन करके
निम्नद्भित मन्त्रसे पुष्पाञ्जलि समर्पित करे-
नमो नमस्ते गोषिन्द॒बुधभ्रवणसं्ञित ॥
अघौषयंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव।
प्रीयतां देवदेवेश मम नित्यं जनार्दन ॥
“बुध एवं श्रवणसंज्ञक गोविन्द! आपको
नमस्कार है, नमस्कार है। मेरे पापसमूहका
विनाश करके समस्त सौख्य प्रदान कौजिये।
देवदेवेश्वर जनार्दन! आप मेरी इस पुष्पाञ्जलिसे
नित्य प्रसन्न हो '॥ ११--१३॥
(तत्पश्चात् सम्पूर्ण पूजन द्रव्य इस मन्त्रसे
किसी विदान् ब्राह्मणको दे--)
वामनो बुद्धिदो दाता द्रव्यस्थो कानः स्वयम्।
चामनः प्रतिगृह्धाति वामनो मे ददाति च॥
इव्यस्थो वामनो नित्यं वामनाय नमो नयः।
* भगवान् वामनने मुझे दानकी बुद्धि प्रदान
की है।ले ही दाता हैं। देय-द्रव्यमें भी स्वयं
वामन स्थित हैं।वामन भगवान् ही इसे ग्रहण
कर रहे हैं और वामन ही मुझे प्रदान करते