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३८४ || | मत्स्य पुराण

अतो देशान्‌ प्रवक्ष्यामि पर्वताश्रयिणश्च ये ।

निराहाराः सवेगाश्चकूपथ। अपथास्तथा ।५५

कुथप्रावरणाण्चैव ऊणदिर्वा सशुद्मक : ।

त्रिगर्ता मण्डलाश्चैव क्रिराताश्चामरेः सह ।५६

चत्वारि भारतेवर्ष युगानि मुनयोउत्र्‌ वम्‌ ।

कृतं त्रेता द्वापरञ्च कलिश्चेति चतुयु गम्‌ ।

तेषां निसर्ग वक्ष्यामि उपरिष्टाच्च कृत्‌स्नशः ।५७

जो अन्य वासिक हैं ओर जो नर्मदा के अन्तर में रदै--भारूकच्छः

समाहेय, सारस्वत, काच्छीक, सौराष्ट्र, अनतं अबु दः---ये सब ऊपर

हैं। अब उनका श्रवण करो जो विन्ध्यवासी हैं--मालव करूष, मकेल

उत्कल आण्ड, माप, दशार्ण, भोज, किष्किन्धक, स्तोशल, कोसल

त्रेपुर, बेदिश, तुमूर, तुम्बर, पद्गम, नैषध, अरूप, शौण्डिकेर, वीति-

होत्र--अनन्ति ये सव जानपद चिन्ध्यचल के पृष्ठ फाग पर निवास

करने वाले ख्यात हुए हैं ।५०-५४। इसके अनन्तर उन देशों को बत-

लाता हूँ जो पर्व॑तो का आश्रय ग्रहण करने वाले हैं । निराहार, कुपथ-

और अपय है अर्थात्‌ कुछ बिना आहार वाले-और कुछ बुरे मार्ग वाले

चिना मार्ग वाले हैं क्रय के आवरण करने वाले---ऊर्णादर्व, समुद्गक

त्रिगत्त, मण्डल, किरात और चामर हैं ।५५-५६। मुनिगण ने इस

भारतवर्ष में चार युगों का वर्णेन किया है । बे चार युग ्रेतायृग)

त्रेता-द्वापर और चौथा कलियुग है-इस तरह से चार युग हैं । अब मैं

उनका पूर्णतया ऊपर से ही निसर्गे बतलाऊंगा ।५७।

एतच्छ _त्वा तु ऋषयः उत्तरं पुनरेव ते ।

ण्न. वस्तमूचुरते प्रकाम लौमहषंणिम्‌ ।५८

यच्च किम्पुरुषंवषं हरिवर्ष तथेव च ।

आचक्ष्व नो यथातत्त्वं कीतितं भारतं त्वया ५९

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